अशोक स्तंभ यथार्थ मूल रूप से जैन दर्शन का ही प्रतीक स्तंभ है।

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अशोक स्तंभ यथार्थ मूल रूप से जैन दर्शन का ही प्रतीक स्तंभ है।
1.स्तंभ के चक्र में 24 तीलियां 24 तीर्थंकरों का प्रतीक

2.चारों दिशा में शेर जो अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का चिन्ह,क्योंकि वर्तमान शासन के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर है इसलिए चारों दिशा में उनके चिन्ह को प्रस्तुत किया

3.चक्र के पास क्रमशः बैल जो प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ जी, हाथी जो द्वितीय तीर्थंकर भगवान अजीतनाथ जी व घोड़ा जो तृतीय तीर्थंकर भगवान संभवनाथ जी और पुनः शेर जो भगवान महावीर के प्रतीक हैं।अर्थात यह 24 तीर्थंकरों को दर्शाते हैं

जैन धर्म में ही तीर्थंकरों के साथ उनके प्रतीक चिन्ह हमेशा रहते हैं जो जग विख्यात हैं प्रत्येक जैन प्रतिमा के साथ उनके चिन्ह अवश्य होते ही है अन्य किसी भी धर्म में प्रायः ऐसी व्यवस्था नहीं है।

और सम्राट अशोक के दादा मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने दिगंबर जैनाचार्य भद्राबाहु स्वामी से दीक्षा लेकर मुनि बनकर कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में समाधि की साधना की जहां के पत्थर पत्थर पर हजारों शिलालखे मौजूद हैं।

इन्हीं की स्मृति में सम्राट अशोक ने राजकीय स्तंभ के रूप में यह स्तंभ बनवाया था

सारनाथ जैन धर्म के 11वे तीर्थंकर भगवान श्रेयांसनाथ जी की जन्मभूमि है यही श्रेयांसनाथ शब्द चिरकाल से अप्रभंष होते होते सारनाथ है।

सारनाथ के अत्यंत निकट स्थान चंद्रपुरी,भेलपुर काशी में क्रमशः 8वे तीर्थंकर चंद्रप्रभु,7वे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ,23 वे तीर्थंकर पारसनाथ जी अतः कुल 4 तीर्थंकरों का जन्म और पूरे उत्तरप्रदेश में 24 में से कुल 17 तीर्थंकरों ने जन्म लिया।
सुभाष कला

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