जब से मानव का उदय सृष्टि में हुआ तबसे अपराध होना शुरू हैं। मानव में मन होने से वह अन्य जानवरों से श्रेष्ठ जानवर बन गया या माना जाने लगा। मनयुक्त होने से उसमे विचारणा शक्ति आने से वह विवेक पूर्ण कृत्य करता हैं ,यह जरुरी नहीं हैंकि उसके हर कृत्य सही हों। मन बहुत चंचल होता हैं। मन के बारे में कहा जाता हैं की मन बन्दर के सामान चंचल होता हैं ,उसके बाद वह शराब पी ले और उसे बिच्छू काट ले तब उसका उपद्रव देखो। मम चंचल के साथ कल्पनालोक में कहाँ से कहाँ ले जाए पता नहीं चलता।
सबसे पहले संसार सञ्चालन के लिए नियम बनाये गए ,उन नियमों में जब जब किसी को नुक्सान होना शुरू हुआ तब उनमे संशोधन या सुधार किये गए। या ऐसा भी कह सकते सुधार के लिए संशोधन किये गए। संसार में जितने भी नियम बने हैं वे पंच पापो के लिए बनाये गए हैं। आज पूरे विश्व की कानूनों की किताबों को जोड़ा जाय तो उनकी श्रखंला कश्मीर से कन्याकुमारी तक हो सकती हैं। ये पाप हैं हिंसा ,झूठ ,चोरी,कुशील और परिग्रह।आज हर जगह /मीडिया /पेपर आदि हिंसा आदि पापों से भरे पड़े रहते हैं। जितने भी पाप हैं या अपराध या नियम या कानून इन्ही पंच पापों के लिए बनाये गए हैं। हमारे धार्मिक और न्यायिक ग्रंथों में इन पंच पापों के निराकरण के लिए अपराध सम्बन्ध कानून और व्रत बताये गाये हैं।
पापों का निराकरण पंच व्रतों के पालन से होता हैं –हिंसा का विरोधी अहिंसा ,झूठ का विरोधी सत्य ,चोरी का विरोधी अचौर्य , कुशील का विरोधी ब्रह्मचर्य और परिग्रह का विरोधी अपरिग्रह। इन पांच पापों का यदि मनुष्य अध्ययन कर ले तो उसके जीवन में सदाचार आना शुरू हो जायेगा ,नैतिकता जीवन में आएगी और सद्वृत्ति होने से वह सात्विक जीवन को उतारेगा।
अपराधों की रोकथाम जितना हिस्सा कानूनों का हैं उससे अधिक धार्मिकता जीवन में आ जाये तो बहुत सीमा तक अपराधों की रोकथाम हो सकती हैं। इसके लिए जरूरी हैं जो हमारे समाज के नेता ,संत ,महंत ,मुखिया को अपना चारित्र नैतिकता
युक्त होना चाहिए। आज पर उपदेश कुशल बहुतेरे। यानी जनता ,समाज से यह अपेक्षा की जातीं हैं वे नैतिक हो खुद अनैतिकता
से लिप्त हैं । जब तक समाज में दुहरापन होगा तब तक अपराधों में कमी होना असंभव होगा। हर मनुष्य हर प्रकार की सुविधा चाहता हैं। धरम की मान्यता हैं की हम जो कुछ सुख दुःख पाते हैं वे हमारे द्वारा किये गए पुण्य पाप के फल हैं ,कुछ पूर्व जन्म के और अभी के किये गए कर्म। जैसे कोई चोरी करता हैं तो वह पकड़ा नहीं जाता और कोई तुरंत पकड़ा जाता हैं और दण्डित होता हैं।
यदि बच्चों को शुरू से अच्छे संस्कार देना चाहिए ,गुरुओं के सानिध्धय में कुछ नियम लेना चाहिए ,शालाओं कॉलेजों ,और कार्यस्थल में अच्छा वातावरण रहे तथा सकारात्मक सोच पैदा करना चाहिए। साथ ही इस बात की जानकारी देना चाहिए यदि हम नैतिकता और धार्मिक मान्यताओं को नहीं माना उससे उसके जीवन में विपरीत प्रभाव पड़ेगा और संभव हो आगामी जीवन भी दुःख होगा। हमारे कर्मों की रिकॉर्डिंग हमेशा होती रहती हैं। उनमे कोई बदलाव नहीं कर सकता।
न्याय हमेशा साक्ष्य पर आधारित होता हैं ,कभी कभी साक्ष्य के अभाव में वह अपराध मुक्त हो जाता हैं और कभी कभी साक्ष्य के कारण अपराधी मान लिया जाता हैं। या न्यायलय में लोभ लालच से बच में जाते हैं और कभी कभी दण्डित होकर सजा भुगतना पड़ता हैं। दंड दंड होता हैं जैसे हथकड़ी सोने की हों या लोहे की वह हथकड़ी ही कहलाती हैं। ऐसे कोई कहे में जेल में बड़ा
सुखी रहता हूँ मेरी वहां प्रतिष्ठा हैं। अपराधियों को कभी भी सामाजिक और राजकीय प्रतिष्ठा नहीं मिलती। राजा के द्वारा अपमानित व्यक्ति हर जगह अपमानित होते हैं। अपराधियों को कोई भी सामाजिक ,पारिवारिक सम्मान नहीं मिलता। जबकि धर्म और नैतिकता को पालन करने वालों की हर जगह इज़्ज़त मिलती हैं।
आज जरुरत हैं की व्यक्ति को धर्म और नैतिकता का पालन करना और जो हिंसा ,झूठ ,चोरी ,बलात्कार और अधिक जमाखोरी करने वालों को परामर्श के साथ नैतिकता की शिक्षा देनी होगी। जिस प्रकार तराज़ू के दो पलड़े होते हैं उसी प्रकार पाप और धर्म या व्रतों को समता रूपी ज्ञान से समझना होगा। जो पलड़ा भारी होता हैं वह नीचे जाता हैं और जो हल्का होता हैं वह शिखर पर जाता हैं। यह हमारे ऊपर हैं हम किसको अंगीकार करें। आज क्या हमेशा अपराधियों की हिकारत की नज़रों से देखा जाता हैं। और नहीं से वे अपनी आत्मवंचना से पीड़ित रहते हैं।
अपराधों के नियंत्रण के लिए क़ानून कड़े बनाये जाए साथ ही धार्मिक वातावरण बनाकर उनमे से बुरी आदतों से मुक्त करे और आदर्श नागरिक बने इसको प्रेरित करना होगा। इसके लिए जरुरी हैं की स्कूली शिक्षा से नैतिकता का पौधरोपण करना होगा। “भय बिन प्रीत न होत गुसाईं ” सामाजिक और न्यायिक दंड से सुधार की संभावना हो सकतीहैं।
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
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