शीर्षक – सामुहिक विवाह कर दें ना भाई

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शादी जन्म-जन्मांतरों का बंधन है,
दो दिलों को जोड़ने वाला पवित्र संगम है,
दो अलग-अलग दिलों में बजने वाला सरगम है,
मुश्किल घड़ीयों में साथ देने वाला मरहम है।
इस पवित्र बंधन की व्यथा तुझे समझ ना आई,
तभी तो तलाक जैसी प्रथा उच्च कुल में गरमाई,
और तेरी इन हरकतों से समाज भी शरमाई,
तेरी शादी की सफलता में सप्त वचनों की कसमें हैं खाई,
और तलाक जैसी ओछी सोच, सामूहिक विवाह कर दें ना भाई‌।
माना कि तेरे पास पैसा बहुत ज्यादा है ,
पर ये मत भूल की तू ईश्वर का प्यादा हैं,
रिश्तों को तार-तार करने का तेरा इरादा है,
क्या तेरे बच्चों के भविष्य से, ये आडम्बर ज्यादा हैं,
ये फिजूलखर्ची और ये दिखावा , मुझे समझ ना आई,
क्यों फिजूलखर्ची का झंझट,तू तो सामूहिक विवाह कर दें ना भाई।
समाज और कूल की मर्यादा को ताक पर रखने वाली तेरे बच्चों की फरमाइश,
प्रिवेडिंग के नाम पर अपनी ही बहू के अंतरंग पलों की नुमाईश,
अर्धनग्न होकर फोटो सेशन और इज्जत को तार-तार करने वाली ख्वाहिश,
आधुनिकता की होड़ में तेरे बच्चों की ये झूठी फरमाइश,
इस झूठे दिखावे की कामना, तुझे तनिक भी शर्म ना आई,
अगर तेरी इज्जत का तुझे ख्याल हैं तो प्रिवेडिंग बंद कर दें ना भाई।
माना कि तेरे बच्चों की शादी तेरा फर्ज हैं,
पर कर्ज लेकर भविष्य खतरे में डालना, कोई मर्ज हैं,
हम बुद्धिजीवी वर्ग का हिस्सा हैं, फिर कर्ज तो कर्ज हैं,
पर किसी का महल देखकर झोपड़ी जलाना कोई तर्ज़ हैं,
लोग आयेंगे, जायेंगे, खायेंगे और भूल जायेंगे, ये भी कोई बात हैं,
आधुनिकता की चकाचौंध में चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात हैं,
तू तो बुद्धिजीवी, समझदार हैं, फिर भी तुझे समझ ना आई,
कर्ज की जिंदगी रुलाती हैं, इसीलिए तो कहता हूं ,सामूहिक विवाह कर दें ना भाई‌।
जब जागो तभी सवेरा ये बात तुझे समझ में आ गई,
इसीलिए कहता हूं,सामूहिक विवाह कर दें ना भाई।

भरत गांधी उर्फ़ भारत “मस्ताना” नौगामा, बांसवाड़ा, राजस्थान 9549177600

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