परम पूज्य अनुष्ठान विशेषज्ञ विशिष्ट रामकथाकर परम पूज्य ध्यान दिवाकर मुनि प्रवर 108 श्री जयकिर्तिजी गुरुराज दिल्ली में विराजमान है
। मेरी लेखनी में वो शब्द ही नहीं जो में अपने गुरु के लिए अलंकृत कर सकूँ गुरुदेव ने 261 दिन तक सम्मेद शिखर तीर्थंराज की लगातार टोंको की वंदना करना फिर प्रत्येक टोक की 108 वंदना की फिर
प्रत्येक टोंक पर सिद्ध चक्र विधान करना और पार्श्वनाथ टोंक पर गुफा में घंटो घंटो तक ध्यान अवस्था में रहना…… रात्रि 1 बजे से वंदना प्रारंभ कर देते थे गुरुदेव… अडोल अडिग अकंपन्न लक्ष्य के प्रति हमेशा सजग रहते थे……
। गुरुदेव ने मानो पूरा तीर्थंराज अपने अंदर समाहित कर लूँ ऐसे भाव बना लिए थे ऊपर तो मौसम भी पल पल में बदलता रहता था कभी मूसलाधार बारिश…. तो कभी हाड़ कपाने वाली ठंड तो कभी तेज हवाएं चलने लग जाती ऐसी विषम परिस्थितियl रहती थी फिर भी गुरुदेव के चेहरे पर तनिक भी चिंता की लकीरें नहीं होती थी जिन्होंने अपने जीवन को सिद्ध की चरण में समर्पित कर दिया उनके लिए अब क्या शेष रह गया था….
. एक दिन गुरुदेव अनंतनाथ टोंक पर सिद्ध चक्र विधान की आराधना कर रहे थे और यकायक भयंकर बिजली कड़कने लगी और मानो गुरुदेव पर ही गिरने वाली थी लेकिन जबरदस्त चमत्कार हुआ बिजली गुरुदेव के चारों ओर गोल-गोल घूमने लगी फिर पुष्पदंत टोंक पर गिरी और वहां की दीवार टूट गई ……. क्या साधना की पराकाष्ठा थी गुरुदेव की जैसे पूरी दुनिया को जीत लिया हो और अब वह साक्षात भगवान के
समवशरण मै बैठे हो…..
. गुरुदेव ने अपने स्वयं का तो कल्याण किया ही लेकिन अपने साथ में कई जीवों का भी कल्याण करने में वह पीछे नहीं रहे एक कुत्ता हमेशा आपके साथ वंदना करने आपके साथ ही चलता था कभी भूखे बंदरो को भोजन का प्रबंध कराते थे तो कभी अपने हाथ से खिलाते थे…जीवो के प्रति वात्सल्यता भी उनके अंदर कूट-कूट कर भरी हुई है
तीर्थराज पर ऐसी अनूठी साधना करने वाले आप वास्तव में एक अनुपम तपस्वी हो अनुपम साधक हो अनुपम दिगंबर श्रमण हो……. स्व कल्याण के साथ में पर कल्याण के भाव को लेकर हमेशा आप अपने जीवन मै आगे बढ़ते हो….. यह सब कार्य कोई साधारण नहीं था…. असाधारण था इसलिए तो एक अदृश्य देवीय शक्ति हमेशा आपके साथ थी जिससे आप निरंतर आगे बढ़ते चले जा रहे थे और आपका चेहरा भी हमेशा तेज, ऊर्जावान, धैर्यता, शांतता, शीतलता, धीरता को समेटे रहता है
धन्य मेरे गुरुदेव धन्य मेरा जिनशासन और धन्य मेरे दिगंबर श्रमण मुनिराज 🙏🙏🙏🙏🙏