अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून 2025) पर विशेष :


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हर वर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भारत की प्राचीन आध्यात्मिक परंपरा की वैश्विक स्वीकृति का प्रतीक बन चुका है। यह केवल एक योगाभ्यास का अवसर नहीं, बल्कि मानवता की आत्मिक उन्नति और संतुलित जीवन की प्रेरणा का दिवस है। योग वह कला है, जो शरीर को मंदिर, मन को शुद्ध और आत्मा को दिव्य बनाती है। योग केवल व्यायाम नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है। यह आहार-विहार, आचार-विचार और ध्यान-धारण का संयोजन है, जो मनुष्य को बाह्य व आंतरिक रूप से परिष्कृत करता है। हर वर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाना, भारत की प्राचीन आध्यात्मिक परंपरा की वैश्विक स्वीकृति का प्रतीक है। यह दिन न केवल शरीर को स्वस्थ रखने की कला को स्मरण करता है, बल्कि मानसिक संतुलन, आत्मिक शुद्धता और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को भी सशक्त करता है। योग प्रकृति के, आत्मा के, ईश्वर के गुणों को उत्पन्न करता है; मनुष्य को मानसिक तनाव से दूर रखता है; चिन्ता व भय से मुक्ति में मददगार रहता है; मनुष्य को ईर्ष्या, द्वेष, घृणा से बचाता है। योग की खूबसूरती यह है कि यह हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक की देख-रेख करते हुए बराबर उनकी मरम्मत करता है। शरीर लयबद्ध योगासन द्वारा प्रशिक्षित व स्वस्थ किये जाते हैं तो मन या मानस को ध्यान एवं प्राणायाम द्वारा। इन सबसे ऊपर है हमारी आध्यात्मिक आवश्यकताएं जिसकी देखभाल और पूर्ति दिव्यता पर एकाग्रता के जरिए योग ही करता है। जब कभी मन में दुविधा हो, मन भ्रमित हो या व्याकुल हो तो योगाभ्यास करते ही हम पाते हैं मन में एकदम निश्चलता आ जाती है। योगासन का यही बड़ा प्रभाव है कि मन की सब दुविधाएँ और द्वन्द शान्त हो जाते हैं।

योग शरीर को केवल व्यायाम के माध्यम से नहीं, बल्कि मन, वाणी और आत्मा को संतुलित और परिष्कृत करके जीवन को उच्चतर बनाता है।

विश्व में भारत की पहचान : अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस ने भारत की सांस्कृतिक गरिमा को वैश्विक मंच पर स्थापित किया है। न्यूयॉर्क के यूएन हेडक्वार्टर से लेकर पेरिस, टोक्यो, सिडनी, मॉस्को तक योग का स्वर गूंज रहा है। यह भारत के ऋषियों की मानवता के प्रति सच्ची सेवा है।






अध्यात्म और योग: आत्मा से आत्मा की यात्रा -योग और अध्यात्म दोनों ही भीतर की यात्रा हैं। यह बाहर से कुछ पाने की नहीं, भीतर से अनावश्यक को छोड़ने की प्रक्रिया है। जब हम योग को सिर्फ शरीर की फिटनेस तक सीमित कर देते हैं, तब वह आध्यात्मिक गहराई खो देता है। जब हम ध्यान को केवल एक एप्प से जोड़ देते हैं, तो वह अनुभूति की ऊष्मा खो देता है। योग दिखाने का नहीं, अनुभव करने का मार्ग है। योग दूसरों को चकित करने के लिए नहीं, स्वयं को शांत करने के लिए है।
जैन दर्शन में योग : यह एक आध्यात्मिक अभ्यास है, यह पहले समय में, हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों द्वारा किया जाता था। वास्तव में योग भारतीय परंपरा की एक समृद्ध देन है । भारत में प्राचीन काल से ही जैन परंपरा ने योग एवं ध्यान विषयक महत्वपूर्ण अवदान दिया है। जैन धर्म में योग अत्यन्त प्राचीन है। जैन धर्म के अनुसार योग के प्रवर्तक भगवान ऋषभदेव जी है, वे संसार के प्रथम योगी थे।जैन धर्म में तीर्थंकर महाप्रभु पद्मासन और खड्गासन कि मुद्राओ में नजर आते हैं। पुरातात्विक साक्ष्यो के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता में मिली जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां कार्योत्सर्ग योग कि मुद्रा में थी। सभी जैन मुनि योग अभ्यास करते हैं। जैन ग्रंथों में योग को शरीर, वाणी और मन की गतिविधियों से जोड़ा गया है। तप, ध्यान, स्वाध्याय, संयम आदि जैन साधना के अंग भी योग के ही रूप हैं। जैन धर्म में योग आत्मा की शुद्धि और मोक्ष के मार्ग का साधन है।
निष्कर्ष : योग केवल आसनों की श्रृंखला नहीं, यह मानव जीवन के हर आयाम को संतुलित करने की विद्या है। यह दिवस एक स्मरण है कि सच्चा विकास भीतर से शुरू होता है। योग न तो किसी धर्म का विषय है, न ही केवल स्वास्थ्य की तकनीक – यह मानवता का उपहार है। यह दिन एक निमंत्रण है – स्वयं से मिलने का, भीड़ में भी एकांत का अनुभव करने का, और जीवन को संतुलित व सार्थक बनाने का। आइए, इस योग दिवस पर हम सब यह संकल्प लें कि योग को केवल उत्सव नहीं, बल्कि दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।
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