दाहोद(गुजरात)। परम पूज्य प्राकृताचार्य श्री 108 सुनील सागर जी महाराज संसंघ के पावन सानिध्य में 21 एवं 22 फरवरी 2025 को आयोजित अंतर्राष्ट्रीय प्राकृत विद्वत सम्मेलन दाहोद नगर में सानंद संपन्न हुआ। प्राकृत विद्वत सम्मेलन में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लगभग 150 विद्वान् सम्मिलित हुए। सभी विद्वानों ने प्राकृत भाषा के विकास एवं उन्नयन पर विभिन्न विचार एवं कार्य योजनाएं प्रस्तुत की। उक्त सम्मेलन प्राकृत एवं जैनागम विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर एवं श्री दिगंबर जैन बीसपंथी ट्रस्ट दाहोद, सकल दिगम्बर जैन समाज दाहोद एवं पंचकल्याण समिति दाहोद गुजरात के तत्वावधान में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन के अवसर पर प्राकृत भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के विशिष्ट उद्देश्य को लेकर प्राकृत भाषा विकास फाउंडेशन का विशिष्ट उपलब्धि रही ।
प्राकृत भाषा विकास फाउंडेशन के माध्यम से भारतीय संस्कृति की प्राणभूत प्राकृत भाषा को साहित्यिक एवं सांस्कृतिक रूप से उन्नत करना प्रमुख उद्देश्यों में सम्मिलित है। प्राकृत भाषा विकास फाउंडेशन के गठन के साथ ही डॉ. ऋषभ जैन फौजदार डीन, कला एवं मानविकी संकाय एकलव्य विश्वविद्यालय दमोह को सर्वसम्मति से फाउंडेशन का प्रथम अध्यक्ष चुना गया। अध्यक्ष महोदय के द्वारा संस्था की गतिविधि को विधिवत् संचालित किए जाने हेतु प्रमुख पदाधिकारी एवं उपसमितियों का भी गठन संपन्न हुआ। प्राकृत भाषा विकास फाउंडेशन के नवनिर्वाचित सभी पदाधिकारी का शपथ ग्रहण जैनधर्म ,दर्शन एवं प्राकृत भाषा के वरिष्ठ मनीषी विद्वान प्रोफेसर धर्मचंद जैन कुरुक्षेत्र ने संपादित कराया। नव निर्वाचित समस्त पदाधिकारीयों ने पद एवं गोपनीयता की शपथ लेते हुए प्राकृत भाषा के विकास एवं उन्नयन में कटिबंध होकर कार्य करने हेतु संकल्प व्यक्त किया। परम पूज्य प्राकृताचार्य सुनील सागर जी महाराज ने अपने विशिष्ट उद्बोधन में समस्त समागत विद्वानों को भारतीय संस्कृति एवं प्राचीन भाषाओं के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि मूल भाषा प्राकृत के ज्ञान के बिना लेखक के वास्तविक विचारों को समझ पाना कठिन होता है अतः जब तक हम मूल भाषा में लिखे गए ग्रंथों को नहीं समझेंगे तब तक उसे ग्रंथ के मूल भाव को नहीं समझ पाएंगे। अतः प्राचीन भाषाओं का ज्ञान एवं उनका विकास किया जाना नितांत आवश्यक एवं वर्तमान समय की मांग भी है। पूज्यश्री ने प्राचीन भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु विशिष्ट आशीर्वाद भी प्रदान किया, साथ ही पूज्यश्री ने प्राकृत भाषा को पुन: सहज एवं जन भाषा बनाने हेतु किए जाने वाले संभावित प्रयासों पर भी उत्कृष्ट मार्गदर्शन प्रदान किया। परमपूज्य प्राकृताचार्यश्री 108 सुनील सागरजी महाराज ने प्राकृत भाषा के क्षेत्र में विभिन्न साहित्य एवं ग्रंथो की संरचना करके प्राकृत भाषा के उन्नयन एवं संवर्धन में महत्वपूर्ण कार्य किया है। इस अवसर पर प्राकृत भाषा के उत्थान एवं उन्नयन हेतु विभिन्न विश्वविद्यालयों के समागत विभागाध्यक्षों ने प्राकृत भाषा के प्राचीन ग्रंथों पर अथवा वर्तमान में प्राकृत भाषा पर कार्य कर रहे दिगम्बर जैनाचार्य एवं मुनिगण की साहित्य सृजना पर शोध कार्य करने वालों को विशेष प्रोत्साहन एवं अध्ययनवृत्ति प्रदान करने की भी घोषणा की। अंतर्राष्ट्रीय प्राकृत विद्वत् सम्मेलन के अध्यक्ष श्री शैलेषभाई सरैया दाहोद, निदेशक डॉ. भागचन्द जैन भास्कर, प्रो. धर्मचन्द्र जैन कुरुक्षेत्र, समन्वयक डॉ. ज्योतिबाबू जैन उदयपुर रहे। संयोजक डॉ. आशीष जैन आचार्य सागर एवं डॉ. आशीष बम्होरी एकलव्य विश्वविद्यालय दमोह ने सम्मेलन में समागत सभी विद्वानों के सम्मान की विशिष्ट आयोजना करते हुए सभी आयोजकों सहयोगियों एवं समागत विद्वानोंका आभार व्यक्त किया।
– डॉ. आशीष जैन आचार्य शाहगढ़
महामंत्री
प्राकृत भाषा विकास फाउण्डेशन