अंतर्राष्ट्रीय जनमंगल सम्मेलन में संतों ने तप, त्याग और उपवास की गौरवगाथा का किया गुणगान…..

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अंतर्राष्ट्रीय जनमंगल सम्मेलन में संतों ने तप, त्याग और उपवास की गौरवगाथा का किया गुणगान…..

नई दिल्ली के भारत मंडपम में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय जनमंगल सम्मेलन में “हर मास–एक उपवास” का शंखनाद हुआ। औरंगाबाद/सोनकच्छ नरेंद्र पियुश रोमिल जैन
इस अवसर पर जैन जगत के तेजस्वी तपस्वी संत अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज की उपस्थिति में योग गुरु बाबा रामदेव जी, लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला जी, पर्यावरण मंत्री श्री भूपेंद्र यादव जी, आचार्य बालकृष्ण जी, पीठाधीश्वर बाबा बालकनाथ योगी जी, जैन संत लोकेश मुनि जी, श्री रजत शर्मा (चेयरमैन एवं प्रधान संपादक इंडिया टीवी), डा. एस. के. सरीन, डा. अनुराग वारने, एन. पी. सिंह (चेयरमैन, भारतीय शिक्षा बोर्ड) सहित अनेक गणमान्य संतों, विद्वानों एवं जनप्रतिनिधियों ने भाग लिया।

उपवास का महात्म्य – “उपवास वह वैद्य है जो तन और मन को निरोगी बना देता है” : आचार्य प्रसन्न सागर जी….

अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में कहा –

> “उपवास केवल शरीर का नहीं, मन और आत्मा का साधन है। उपवास वह वैद्य है जो तन और मन दोनों को निरोगी बना देता है। यह आत्मविश्वास का उत्सव है।”

उन्होंने कहा कि –

> “दुनिया में खाने से मरने वालों की संख्या अधिक है और न खाने (अर्थात् संयम रखने) से मरने वालों की संख्या बहुत कम। उपवास शरीर का कार्य नहीं, मन का कार्य है। यदि भारत की 140 करोड़ जनता एक दिन उपवास करे तो 7 लाख टन भोजन बच सकता है।”

आचार्य श्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का उदाहरण देते हुए कहा कि –

> “खाने की कमी उनके पास नहीं, फिर भी वे उपवासमय जीवन जीते हैं। यह उपवास संकल्प, अनुशासन और आत्मबल का प्रतीक है।”

उन्होंने सभी को प्रेरित करते हुए कहा –

> “देश की संस्कृति और मातृभाषा को न भूलो, हस्ताक्षर हिंदी में करो, और भारतीयता को जीवन का संदेश बनाओ। उपवास तन को नहीं, मन को तपाता है — और यही मन शुद्ध होकर आत्मा के प्रकाश का माध्यम बनता है।”

योग गुरु बाबा रामदेव जी ने किया आचार्य श्री के तप का गुणगान

योग गुरु बाबा रामदेव जी ने कहा –

> “आचार्य प्रसन्न सागर जी ने केवल उपवास का संदेश नहीं दिया, बल्कि उसे जीवन में जिया है। वे कहते नहीं, जीते हैं — यही उनकी विशेषता है। उपवास वह साधना है जो तन और मन दोनों को संतुलित कर देती है।”

उन्होंने आगे कहा –

> “जैन संतों की परंपरा में जो तप, त्याग और अनुशासन है, वही भारत को आत्मबल और आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाएगा। आचार्य श्री जैसे संत समाज को तपस्या से जोड़ने आए हैं — उनका जीवन ही धर्म का जीवंत स्वरूप है।”

“तपस्या का यह जीवन किसी चमत्कार से कम नहीं” — श्री रजत शर्मा

इंडिया टीवी के चेयरमैन श्री रजत शर्मा ने भावपूर्ण शब्दों में कहा –

> “मेरे जीवन में अनेक लोग आए जो खाने के लिए जीते हैं, पर बाबा रामदेव जी और आचार्य प्रसन्न सागर जी जैसे विरले लोग मिले जो जीने के लिए खाते हैं। मैंने आचार्य श्री की तस्वीरें और उनके उपवास देखे हैं — आज की दुनिया में ऐसी तपस्या किसी चमत्कार से कम नहीं है।”

उन्होंने आगे कहा –

> “उपवास केवल भोजन न करना नहीं, यह मन, वाणी और क्रोध पर संयम का संकल्प है। जब मन के तूफान उठते हैं तो उपवास उस पर नियंत्रण की कला सिखाता है। ऐसे संत इस युग के प्रेरक दीपस्तंभ हैं।”

“मन ठीक होगा तो पर्यावरण भी ठीक होगा” — श्री भूपेंद्र यादव

पर्यावरण मंत्री श्री भूपेंद्र यादव जी ने कहा –

> “मुझे सौभाग्य मिला कि मैंने उस तपस्वी को देखा जिसने 500 से अधिक दिनों का उपवास किया। व्यक्ति दो चीज़ों से परेशान है — एक अपने मन से, दूसरा बाहरी पर्यावरण से। जब मन शुद्ध होगा, पर्यावरण अपने आप सुधर जाएगा। जैन धर्म के पंच महाव्रतों में ही योग की नींव छिपी है।”

डॉ. एस. के. सरीन — “उपवास की शिक्षा बच्चों से शुरू करें”

डॉ. एस. के. सरीन ने कहा –

> “आज जरूरत है कि बच्चे भी उपवास के महत्व को समझें। जब माता–पिता उपवास करें तो बच्चे पूछें – क्यों? तब उन्हें बताएं कि यह स्वास्थ्य, संयम और पुनर्जागरण की साधना है। तभी ‘हर मास–एक उपवास’ हर परिवार का संस्कार बनेगा।”

अन्य संतों और विद्वानों के उद्बोधन

जैन संत लोकेश मुनि जी ने कहा – “आत्मबल और आत्मशुद्धि का मार्ग उपवास से ही संभव है।”

बाबा सत्यनारायण मौर्य जी ने भावपूर्ण शब्दों में कहा –

> “जब उपवास से महावीर का मन न भरा, तो प्रसन्न सागर बनकर वही आत्मा फिर इस धरती पर आया।”

संघत मुनि सौम्यमूर्ति मुनि पीयूष सागर जी ने कहा –

> “उपवास का अर्थ है – अब मैं किसी का गुलाम नहीं। निज पर शासन और अनुशासन स्थापित करना ही उपवास है।”

मुनि सहज सागर जी ने अपने जीवन की आत्मयात्रा सुनाते हुए कहा – “नर से नारायण बनने का मार्ग उपवास और संयम से ही निकलता है।”

आचार्य बालकृष्ण जी ने कहा – “अब मैं भूखे रहकर भी बलवान बनने की कला गुरुदेव से सीख रहा हूं — उपवास अब जीवन का हिस्सा बनेगा।”

एन. पी. सिंह जी ने शिक्षा प्रणाली में उपवास के महत्व को जोड़ने की आवश्यकता बताई।

डॉ. अनुराग वारने ने कहा – “उपवास से न केवल मनुष्य की उम्र बढ़ती है, बल्कि पशु-पक्षियों की भी आयु में वृद्धि होती है।”

लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला जी ने “हर मास–एक उपवास” का संकल्प लेते हुए आचार्य श्री के तप और त्याग की सराहना की।

हर मास–एक उपवास अभियान का विधिवत शुभारंभ….> “इस अभियान का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम महीने में एक दिन उपवास हेतु प्रेरित करना है — ताकि तन, मन और समाज, तीनों की शुद्धि का वातावरण बने।”

कार्यक्रम की शुरुआत आर्या जैन ग्रुप की बालिकाओं ने मंगलाचरण नृत्य से की। तत्पश्चात सभी अतिथियों का अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज द्वारा लौंग की माला और स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया गया।
इस अवसर पर गुरुदेव की पुस्तक “अष्टापद यात्रा” का लोकार्पण भी हुआ।
कार्यक्रम का संचालन ब्रह्मचारी तरुण भैया द्वारा किया गया।
– “हर मास–एक उपवास” आत्मशुद्धि से विश्वमंगल की ओर एक जन–आंदोलन का आरंभ। नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद रोमिल पाटणी सोनकच्छ

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