(१५ अक्टूबर)
(ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ )
अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस—–विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल
प्रति वर्ष १५ अक्टूबर को संपूर्ण विश्व में ‘अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस’ मनाया जाता है। ‘अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस’ को मनाने का उद्देश्य कृषि विकास, ग्रामीण विकास, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण गरीबी उन्मूलन में महिलाओं के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करना है।
गौरतलब है कि बीजिंग में महिलाओं पर चौथे विश्व सम्मेलन में नागरिक समाज संगठनों द्वारा १९९५ में पहली बार ‘ग्रामीण महिलाओं का अंतर्राष्ट्रीय दिवस- ’ मनाया गया था और वर्ष २००७ में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस दिवस को आधिकारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र दिवस के रूप में घोषित किया गया था।
वर्ष २०२२ का मुख्य विषय “सभी के लिए अच्छे भोजन की खेती करने वाली ग्रामीण महिलाएं”, दुनिया की खाद्य प्रणालियों में ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों की आवश्यक भूमिका पर प्रकाश डालती हैं।
अर्थव्यवस्था में ग्रामीण महिलाओं की भूमिका
अपनी देखभाल सुविधाओं के अलावा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण महिलाओं को ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित होने वाले उद्योगों एवं कुटीर उद्योगों में ग्रामीण महिलाओं के द्वारा श्रम बल के रूप में महती भूमिका निभाई जाती है।
इसी के साथ ग्रामीण महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से कई सारे उत्पादन गतिविधियों में शामिल होकर आपूर्ति श्रृंखला में अपना योगदान देती है।
विकासशील देशों में कृषि का अधिकांश कार्य महिलाओं के द्वारा किया जाता है जैसे विकसित देशों में कुल कृषि श्रम बल में महिलाओं का आंकड़ा ८० % तक है तो वहीं भारत में है ४३ % है। हालांकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और डीआरडब्ल्यूए के शोध के निष्कर्षों से पता चलता है कि महत्वपूर्ण फसलों के पैदावार के संदर्भ में महिलाओं के श्रमबल का हिस्सा ७५ % तक है।
बागवानी और फसल कटाई के उपरांत अन्य कार्यों में महिला का श्रम बल में हिस्सा क्रमशः हिस्सा ७९ % और ५१ % है।
पशुपालन और मत्स्य उत्पादन में यदि महिला श्रम बल का हिस्सा देखा जाए तो यह क्रमशः ५८ % और ९५ % है।
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार पुरुषों के शहरों की ओर पलायन होने से भारतीय कृषि में महिलाओं का हिस्सा निरंतर बढ़ता जा रहा है। महिलाएं सभी कृषि गतिविधियों उदाहरण के लिए बुवाई से लेकर रोपाई, निराई, सिंचाई, उर्वरक डालना, पौध संरक्षण, कटाई, भंडारण इत्यादि से व्यापक रूप से जुड़ी हुई है।
इसके साथ ही वह पशुपालन और अन्य सहायक कृषि गतिविधियों जैसे मवेशी पालन, चारे का संग्रह, दुग्ध उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन, सूकर पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन आदि में भी अपनी पर्याप्त भूमिका सुनिश्चित कर रही है।
अपनी आर्थिक सहभागिता के साथ-साथ घरेलू कार्यों में भी ग्रामीण महिलाएं महती भूमिका निभाती हैं जिसका उन्हें कोई परिश्रमिक नहीं मिलता। इसमें खाना बनाना, साफ सफाई, बच्चों का पालन पोषण इत्यादि जैसी गतिविधियां शामिल है।
ग्रामीण महिलाओं की प्रमुख चुनौतियां:
शिक्षा से वंचित किया जाना:
सभी विकासशील देशों में कमोवेश यह देखा गया है कि ग्रामीण महिलाओं को सामाजिक रूढ़िवादिता के कारण शिक्षा से वंचित कर दिया जाता है। भारत में ASER की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों की प्रत्येक १०० लड़कियों में से मात्र एक लड़की ही कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करती है।
लैंगिक भेदभाव:
ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव किया जाता है एवं उन्हें सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने को हतोत्साहित किया जाता है। भारत के कई राज्यों में विशेषकर राजस्थान हरियाणा और उत्तर प्रदेश में ग्रामीण महिलाओं को उनके घरों तक सीमित रखा जाता है और उन्हें किसी भी गतिविधियों जैसे चुनाव, चर्चा, प्रमुख त्योहारों में भाग लेने आदि की अनुमति नहीं दी जाती है।
बाल विवाह:
हालांकि कई देशों ने बाल विवाह को गैरकानूनी घोषित किया है लेकिन कमोवेश विकासशील देशों में बाल विवाह सामान्य बात है। भारत में एनएसओ के आंकड़ों के अनुसार लगभग ४५ % लड़कियों की शादी १८ वर्ष से पूर्व कर दी जाती है।
समुचित पोषण,स्वच्छता एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव:
२१ वी सदी के दौर में भी ग्रामीण महिलाओं को वर्तमान में बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं की समस्या का सामना करना पड़ता है। आज भी ग्रामीण महिला खुले में शौच हेतु मजबूर है। ग्रामीण महिलाओं में निम्न पोषण स्थिति का होना एक आम बात है जिससे उनके स्वास्थ्य के समक्ष विकट परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं खासकर गर्भावस्था के दौरान। इसके अलावा प्रसव सुविधाओं इत्यादि का ना होना उनके जीवनकाल को संकट में डाल देता है। भारत के संदर्भ में भी ग्रामीण क्षेत्रों एवं पिछड़े राज्यों में मातृत्व मृत्यु दर ज्यादा है। महिलाओं में जागरूकता के अभाव के कारण सेनेटरी पैड इत्यादि का कम प्रयोग किया जाता है जिससे उन्हें संक्रामक रोगों के प्रति सुभेद्य बना देती है।
शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक उत्पीड़न:
ग्रामीण परिवेश में जागरूकता, सशक्तिकरण और पुलिस-प्रशासन से दूरी के कारण ग्रामीण महिलाओं पर शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक उत्पीड़न के मामले बढ़ जाते हैं। ग्रामीण समाज का बंद परिवेश, पितृसत्तात्मक मानसिकता महिलाओं के विरुद्ध ना केवल शारीरिक हिंसा की जाती है बल्कि महिलाओं के विरुद्ध लैंगिक हिंसा के प्रति सुभेद्य बना देती है। वहीं महिलाओं की आर्थिक स्थिति एवं उपयोगिता को ही न मानते हुए उन पर दहेज इत्यादि स्वरूपों के माध्यम से इनका आर्थिक उत्पीड़न भी किया जाता है।
सामाजिक सुरक्षा एवं सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच ना होना:
सांस्कृतिक मानदंडों, सुरक्षा मुद्दों और पहचान दस्तावेजों के अभाव के कारण ग्रामीण महिलाओं को सार्वजनिक सेवाओं, सामाजिक सुरक्षा, रोजगार और बाजारों तक पहुंचने में पुरुषों की तुलना में अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
आर्थिक संसाधनों तक पहुंच ना होना:
पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण भूमि संबंधी अधिकारों में महिलाओं को प्रतिनिधित्व नहीं लिया जाता जिसके कारण उनके प्रगति की संभावना क्षीण हो जाती है। इसके साथ ही संपत्ति संबंधी दस्तावेजों के अभाव में वे वित्तीय सुविधाओं को हासिल करने में भी प्रायः विफल होती हैं।
ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु सुझाव
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु निम्नलिखित प्रमुख नीतिगत प्राथमिकताओं पर जोर दिया जाना चाहिए है:
१ . ग्रामीण महिलाओं से संबन्धित योजनाओं और निर्णयों में महिलाओं को समान प्रतिनिधित्व देकर
आर्थिक नियोजन और आपातकालीन प्रतिक्रिया सहित सभी क्षेत्रों में निर्विवाद रूप से यह देखा गया है कि जिन नीतियां अथवा निर्णय लेने में महिलाओं से परामर्श नहीं लिया गया या उन्हें शामिल नहीं किया गया, वे कम प्रभावी रही हैं।
व्यक्तिगत महिलाओं के साथ महिलाओं के संगठन उदाहरण के लिए महिलाओं के लिए कार्यरत स्वयं सेवा समूह समेत अन्य महिला संगठन जो अक्सर समुदायों में प्रतिक्रिया की अग्रिम पंक्ति में होते हैं, उनका भी प्रतिनिधित्व और समर्थन किया जाना चाहिए।
२ . वैतनिक और अवैतनिक देखभाल में समानता सुनिश्चित करके :
वेतन के संदर्भ में नीति निर्माण की दिशा में ग्रामीण क्षेत्रों में अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत श्रम बल को यथोचित महत्व दिया जाना चाहिए जिससे उनका आर्थिक सशक्तिकरण हो। इसके साथ ही कुछ ऐसी नीतियों को भी फलीभूत करने की आवश्यकता है जो घरों में सम्पूर्ण देखभाल का कार्य करने वाली महिलाओं से संबंधित हो क्योंकि अक्सर यह समुदाय उपेक्षित होता है।
३ . सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रमों में महिलाओं और लड़कियों को शामिल करके:
राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेजों और सामाजिक सहायता कार्यक्रमों को तैयार करते समय लैंगिक दृष्टिकोण को निश्चित रूप से ध्यान में रखा जाना चाहिए। ताकि महिलाओं और लड़कियों को अधिक समानता, अवसर और सामाजिक सुरक्षा प्राप्त हो सके।
दीर्घकालिक योजनाओ के तहत सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में महिला-विशिष्ट रोजगार उत्पन्न करने पर जोर देना होगा। इसके साथ ही महिलाओं के भविष्य को केन्द्र में रखकर सामाजिक एवं आर्थिक नीतियां को धरातल पर उतारना होगा।
४ . पर्याप्त रूप से कौशल विकास प्रदान करना
ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण का सबसे बड़ा मंत्र ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में है। सरकार एवं नीति निर्माताओं को ना केवल ग्रामीण महिलाओं के कौशल विकास हेतु सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए जिससे वह आत्मनिर्भर की दिशा में आगे बढ़ सके तो वहीं दूसरी ओर ऐसे स्वयं सहायता समूह को प्रोत्साहित करना चाहिए जो उनके कौशल का लाभ उठाते हुए उनमें उद्यमी के रूप में रूपांतरित कर सके।
५ . उत्पादक संसाधनों पर समान पहुंच और नियंत्रण प्रदान करके
उत्पादक संसाधनों जैसे भूमि और वित्तीय सेवाओं पर समान पहुंच और नियंत्रण प्रदान करके महिलाओं की आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ाया जा सकता है। इसके साथ ही वित्तीय सेवाओं तक उनकी पहुंच उपलब्ध करवाकर उनकी उत्पादकता एवं उद्यमिता को भी प्रोत्साहित किया जा सकता है।
६ . ग्रामीण महिलाओं के संदर्भ में सकारात्मक मनोदशा का निर्माण करके
ग्रामीण महिलाओं के हितों के संवर्धन हेतु उठने वाली सभी आवाजों को सामाजिक संवाद के द्वारा बढ़ावा दिया जाना चाहिए एवं विभिन्न संगठनों में पर्याप्त मात्रा में उनके प्रतिनिधि को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इससे महिलाओं की सामूहिक सौदेबाजी में स्थिति मजबूत होगी और वह क्षेत्रीय समिति राष्ट्रीय स्तर पर अपने हितों के संवर्धन हेतु निर्णय भागीदारी में अपनी सामूहिक सौदेबाजी स्थिति को मजबूत कर सकेंगी।
आगे की राह
वर्तमान समय में ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सेवा और देखभाल सेवाओं के विस्तार के लिए जेंडर आधारित निवेश कभी भी इतने अधिक चिंतनीय नहीं रहे हैं। ग्रामीण महिलाओं के उत्थान हेतु सरकार,नागरिक समाज समेत सभी हितधारकों को आगे आना होगा जिससे ग्रामीण महिलाओं का आपूर्ति श्रृंखला में ना केवल सक्रिय योगदान सुनिश्चित किया जाए बल्कि उनका सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक सशक्तिकरण भी किया जाए।
ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों को समर्पित इस दिवस द्वारा महिलाओं के भूमि अधिकारों को महत्व और प्रोत्साहन देकर हम ना केवल महिलाओं को उनके जीवन यापन के स्रोतों से विस्थापन से बचाने में मदद दे सकते हैं बल्कि ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों को भविष्य में ऐसे संगठन एवं महामारीयों से बेहतर ढंग से निपटने में उन्हें तैयार भी कर सकते हैं।
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
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