अन्तर्मना प्रसन्न सागरजी महाराज के सानिध्य मे पंच दिवसीय भगवान महोत्सव हेतु उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री आदित्य नाथ जी योगी जी को समिति द्वारा निमंत्रण

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अन्तर्मना  प्रसन्न सागरजी महाराज  के सानिध्य मे पंच दिवसीय भगवान महोत्सव हेतु उत्तर प्रदेश के  मुख्यमंत्री  श्री आदित्य नाथ जी योगी जी को समिति द्वारा निमंत्रण  औरगाबाद  नरेंद्र पियुष जैन अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज एवं उपाध्याय पियूष सागरजी महाराज ससंघ नोयडा के सेक्टर 50 में विराजमान हैं उनके सानिध्य में वहां विभिन्न धार्मिक कार्योंकम संपन्न हो           तरुण सागरम तीर्थ गाजियाबाद में अंतर्मना गुरुदेव आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज सह संघ द्वारा 26 नवंबर से शुरू होने वाले पंच दिवसीय भगवान महोत्सव हेतु उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री माननीय श्री आदित्य नाथ जी योगी जी को समिति द्वारा आमंत्रण निमंत्रण देते हुए, ब्रह्मचारी तरुण भैयाजी ,सांसद रमेश जी तोमर ,बीजेपी सदस्य रविजी त्यागी ,गुरुभक्त दीपेशजी जैन, राजेश जी पाटनी       आमंत्रण   दिया    हैं उसी श्रुंखला में उपस्थित गुरु भक्तों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने कहा कि
दरवाज़े पर ताला इसलिए लगाया जाता है कि
कहीं कोई ग़लती से ईमानदार व्यक्ति का ईमान ना डगमगा जाये..
वरना चोर के लिए ताला तोड़ना कौन सी बड़ी बात है-?
                   तमसो मा      ज्योतिर्गमय
अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो या अन्धकार से प्रकाश की यात्रा। अन्धकार केवल और केवल प्रकाश की अनुपस्थिति का नाम ही है। अन्धकार तब तक सक्रिय रहता है जब तक प्रकाश नहीं आता। अन्धकार वास्तव में क्या है-? बाहर का अन्धकार तो  सुरक्षा करता है, थामता है, गिरने से बचाता है और भीतर का अन्धकार गुमराह करता है, भटकाता है चार तरह से – (1) अहंकार (2) असत्य (3) अज्ञान (4) अवगुण
 विनम्रता का अभाव ही अहंकार का अन्धकार है। विनम्रता का आभूषण धारण करने से अहंकार का खर्दुषण कभी हावी नहीं हो सकता।
 असत्य का अस्तित्व तभी तक विद्यमान है, जब सत्य का सूर्य प्रकट नहीं हुआ। एक सत्य के आते ही, हजार असत्य के मुखौटे निस्सार हो जाते हैं। सत्य की एक तेल की बूंद को, असत्य के करोड़ टन पानी भी मिलकर नहीं मिटा पाते। इसलिए कहते हैं – सत्य परेशान तो हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं।
 अज्ञान का अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, वह केवल अविवेक और समीचीन ज्ञान की अनुपस्थिति ही है।
 अवगुण का अस्तित्व तब तक हम पर हावी होता है, जब तक व्यक्तित्व में गुणों का समावेश नहीं हो जाता। एक अवगुण हमारे सभी सद्गुणों पर भारी पड़ जाता है।
हमने कब कहा उनसे – घर से वो निकल जाये..
चाहते हैं बस उनकी, आदतें बदल जाये..!
अन्धकार से प्रकाश की ओर जाने का मतलब है – कि अपने भीतर के दुर्गुणों को दूर कर, सद्गुणों से स्वयं को सजाना, सँवारना और मन को मांजना ही है…!!!                 ‌ ‌।              नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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