भारत में दान देने की प्रथा बहुत पुरानी है, महाभारत में कर्ण को दानवीर की संज्ञा दी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति, उगते सूरज की पूजा करते समय कर्ण से दान मांगता, तो उसे कभी खाली हाथ नहीं लौटना पड़ा। कहा जाता है कि दान से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है।
दान दूसरे इंसान और प्राणियों को खुशी देता है। उसके बदले में आप को भी खुशी मिलती है। इंटरनेशनल चैरिटी दिवस की शुरुआत 2012 से हुई। 5 सितम्बर को मदर टेरेसा की पुण्य तिथि है। इन्हीं की याद में अन्तर्राष्ट्रीय चैरिटी दिवस मनाया जाता है। मदर टेरेसा ने गरीबी दूर करने, जरूरतमंदों की मदद करने और उनकी परेशानियां दूर करने में अपना सारा जीवन लगा दिया। इस लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 5 सितम्बर 2012 से विश्व चैरिटी दिवस मनाने की घोषणा की।
अन्तर्राष्ट्रीय चैरिटी दिवस हर साल 5 सितम्बर को मनाया जाता है। अधिकारिक तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय दान दिवस की मनाने की शुरुआत 5 सितम्बर 2012 से हुई।भारत में दान देने की परम्परा बहुत पुरानी है। किन्तु इसके लिए कोई अधिकारिक तौर पर तारीख निश्चित नहीं की गयी थी। चैरिटी दिवस की घोषणा को पूरा विश्व समर्थन करता है। गरीबी तथा पिछड़े देश को चैरिटी के माध्यम से दान देना है।
इसे देखते हुए 2011 में हंगरी की संसद में एक बिल पेश किया गया था।, जिसमें दान इकट्ठा करने का उल्लेख था। इस विधेयक को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। इसके लिए सभी देश ने बढ़-चढ़कर कर भाग लिया। इसे सफल बनाया। इसी सफलता पर संज्ञान लेते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2012 से अन्तर्राष्ट्रीय चैरिटी दिवस मनाने की घोषणा की।
अन्तर्राष्ट्रीय चैरिटी दिवस मदर टेरेसा की याद में मनाया जाता है। उन्होंने समाज से गरीबी दूर करने, जरूरतमंदों की सहायता करने, देश की गरीबी हटाने के लिए 1967 में भारत में काफी काम किया जिसके लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। पूरी दुनिया इनके इस महान उपकार के लिए इनकी पुण्यतिथि 5 सितम्बर को अन्तर्राष्ट्रीय चैरिटी दिवस मनाने की घोषणा की।
अन्तर्राष्ट्रीय चैरिटी दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को दान के प्रति जागरूक करना है। अंतरराष्ट्रीय दान दिवस का उद्देश्य जरूरतमंदों की मदद करना और गरीबी हटाना है। इसी संकल्प के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2030 तक पूरे विश्व से गरीबी हटाना है। दुनिया में कई ऐसे देश है जो पिछड़े है। इन देशों से गरीबी दूर करना हमारी जिम्मेदारी है। इसी लिए दान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय चैरिटी दिवस मनाया जाता
जैन धर्म के अनुसार सर्वश्रेष्ठ दान “अभयदान” है । किसी जीव को जीवन दान देना, उसकी रक्षा करना सर्वश्रेष्ठ दान है । अन्य सभी दान इसी में निहित हो जाते हैं । जब तक पात्र उसमे निवास करते है किन्तु ज्ञान दानजन्मों जन्मो तक जीव के साथ रहता है इसलिए सर्वश्रेष्ठ दान ज्ञान दान है
जो अपने और दूसरों के उपकार के लिए दिया जाता है उसे दान कहते हैं। जिससे अपना भी कल्याण हो और अन्य मुनियों के रत्नत्रय-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की उन्नति हो, वही दान है। गृहस्थों को विधि, देश, द्रव्य, आगम, पात्र और काल के अनुसार दान देना चाहिए। जैसे मेघों से बरसा हुआ पानी भूमि को पाकर विशिष्ट फल देने वाला हो जाता है वैसे ही दाता, पात्र, विधि और द्रव्य की विशेषता से दान में भी विशेषता आ जाती है।
जो प्रेमपूर्वक देता है, वह दाता है। जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र से विभूमित हैं, वे ही पात्र हैं। आदरपूर्वक देने का नाम विधि है और जो तप तथा स्वाध्याय में सहायक हो वही द्रव्य है।
सज्जन पुरूष तीन प्रकार से अपने धन कोखर्च करते हैं। परलोक में हमें सुख प्राप्त होगा कोई इस बुद्धि से अपना धन खर्च करते हैं। कोई इस लोक में सुख-यश आदि की प्राप्ति के लिए ही धन का दान करते हैं और कोई उचित समझकर ही धन खर्चते हैं किन्तु इससे विपरीत जिन्हें न परलोक का ध्यान है, न इहलोक का ध्यान है और न औचित्य का ही ध्यान है वे न धर्म कर सकते हैं, न अपने लौकिक कार्य कर सकते हैं और न यश ही कमा सकते हैं।
अन्यत्र भी सूक्तिकारों ने धन की तीन ही गति मानी हैं-
दान भोगों नाशः, तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य।
यो न ददाति न भुक्ते, तस्य तृतीया गतिर्भवति। दान, भोग और नाश, धन की ये तीन ही गति हैं। जो न दान देता है और न उपभोग ही
करता है उसके धन का ‘नाश’ हो जाना यही तीसरी गति होती है। तात्पर्य यही है जो अपने धन को पात्र दान आदि सत्कार्यों में लगा देते हैं वे तो अपने धन को इस लोक में भी बहुत काल तक स्थायी रहने वाला बना लेते हैं और परलोक में नवनिधि आदि के रूप में अनेक गुणा प्राप्त कर लेते हैं।
दान के इन चार महान कार्यों को सूचीबद्ध करने पर, कोई इन्हें मानव अधिकारों के लिए चार उपहारों के रूप में भी मान सकता है क्योंकि वे स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण के लिए सभी के अधिकारों को कायम रखते हैं। दरअसल, ये वही उपहार हैं जो सहायता एजेंसियों और अन्य धर्मार्थ संगठनों द्वारा वितरित किए जाते हैं क्योंकि वे आंतरिक रूप से मानव की सुरक्षा से जुड़े हुए हैं।
शायद सबसे महत्वपूर्ण अभय दान है, जिसमें खतरे में पड़े लोगों को आश्रय प्रदान करना शामिल है। यह निश्चित रूप से जैनियों और सभी मनुष्यों को उन लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो किसी भी कारण से, अपने अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकते हैं। एक बार फिर जैन धर्म मानव अधिकारों को बढ़ावा देने के तरीके के रूप में मानव कर्तव्यों को कायम रखता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये ऐसे उपहार हैं जो प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी रूप में प्रदान कर सकता है। प्रत्येक सामान्य जैन, कुछ हद तक, दान के इन रूपों को प्रदान करने में सक्षम है और यह एक जिम्मेदारी है जिसे जैन बहुत गंभीरता से लेते हैं।
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३