मुनि श्री 108 समत्व सागर जी महाराज एक दिगंबर मुनि हैं, जिन्होंने अमेरिका में लाखों के पैकेज वाली नौकरी छोड़कर जैन धर्म की श्रमण परंपरा को अपनाया। उनका जन्म 31 मई 1984 को जबलपुर में अंकुर जैन के रूप में हुआ था। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद अमेरिका की एक कंपनी में काम किया, लेकिन फिर वापस आकर 29 अगस्त 2015 को मुनि दीक्षा धारण की। वे वर्तमान में सागर जिले की शाहगढ़ तहसील में अपना चातुर्मास कर रहे हैं और “वंडरफुल जैनिज्म” जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से जैन धर्म के मर्म को समझाते हैं।
विदिशा के इंजी. अंकुर जैन दस वर्ष पहले बन गए थे मुनि श्री समत्व सागर महाराज, जो अभी सागर जिले की शाहगढ़ तहसील जी में विराजमान हैं।
“मोक्ष मार्ग भी अजब है। अगर मन में गुरु के प्रति विश्वास और मोक्ष मार्ग पर चलने का दृढ़ निश्चय आ जाए तो अमेरिका जैसे देश की चमक दमक, लाखों के पैकेज वाली नौकरी, गीत-संगीत सुनने का शौक, लहरों पर तैरने और स्केटिंग के साथ ही पहाड़ों पर चढऩे जैसे शौक भी तुच्छ लगते हैं। दस वर्ष पहले विदिशा के एक होनहार इंजीनियर के साथ भी यही हुआ था। अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र ने सारी दुनियां की चमक दमक, धन दौलत और शान शौकत को ठुकराकर दिगम्बर वेष धारण किया और चल पड़ा था महावीर के बताए मोक्ष मार्ग पर। जी हां, विदिशा के इंजी. अंकुर जैन दस वर्ष पहले बन गए थे मुनिश्री समत्व सागर महाराज, जो अब सागर जिले की शाहगढ़ तहसील में विराजमान हैं।
तस्वीरें देखकर विश्वास नहीं होता कि कैसे कोई इस कठिन मार्ग पर चलने का हौंसला रखता है, कैसे कोई माता-पिता अपनी इकलौती संतान को वीतराग की ओर बढ़ते देख पाते हैं, लेकिन धन्य हैं वह युवा इंजीनियर और उनके माता पिता जिन्होंने मोक्ष मार्ग और दुनियां में महावीर का संदेश पहुंचाने का मार्ग चुना।
मुनिश्री समत्वसागर महाराज के गृहस्थ जीवन के पिता डॉ एके जैन बताते हैं कि अंकुर का जन्म 1984 में हुआ था, वे हमारे घर में इकलौते पुत्र हैं, एक पुत्री भी है। अंकुर की प्रारंभिक शिक्षा ग्यारसपुर में हुई और फिर उन्होंने एसएटीआइ विदिशा से इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग की डिग्री ली। उन्होंने बिट्स प्लानी से एमटेक किया और फिर हैदराबाद की एक कंपनी में सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर काम करने लगे। धीरे-धीरे उनका पैकेज 20 लाख रुपए तक पहुंच गया। लेकिन मन में कहीं विरक्ति का बीज अंकुरित हो रहा था। इस दौरान विदिशा में 2013 में पंचकल्याणक हुए और आचार्यश्री विशुद्धसागर महाराज का आगमन हुआ। यहीं उन्होंने ब्रम्हचर्य व्रत ग्रहण कर लिया और कहा कि मेरा मन नौकरी में नहीं लग रहा है। इस बीच आचार्यश्री से उन्होंने यह भी कहा कि-गुरुदेव मुझे अमेरिका जाने का ऑफर है, क्या करना चाहिए? आचार्यश्री विशुद्धसागर ने तत्काल कहा- जाओ, दुनियां घूमकर देखना चाहिए कि कहां क्या चल रहा है। इस पर अंकुर चल दिए अमेरिका। वहां वे काफी समय तक जॉब करते रहे, लेकिन प्रभु चरणों की लगन ऐसी थी कि रोजाना डेढ़ सौ किमी दूर मंदिर जाना नहीं भूलते थे। अमेरिका की चमक दमक, 20 लाख का पैकेज और खूब नाम भी उन्हें रास नहीं आ रहा था, इसलिए वे वापस आ गए और आचार्यश्री के संघ के साथ हो लिए। इस बीच मां अनीता जैन और पिता एके जैन ने भी उनके मोक्ष मार्ग का अनुमोदन किया। हालंाकि पिता एके जैन बहुत भावुक हो उठे थे और जब 2014 में भीलवाड़ा में अंकुर जैन को दिगम्बर साधु की दीक्षा दी गई तो उन्होंने पिता की पाती पुत्र के नाम का वाचन जब मंच से किया तो वहां मौजूद हजारों लोगों की आंखों से आंसू बह निकले थे। अंकुर जैन अब मुनिश्री समत्वसागर महाराज हो चुके थे। नौकरी, माया मोह, चमक दमक, लाखों का पैकेज, घर परिवार सब छोड़ मोक्ष मार्ग का यह यात्री प्रिच्छी-कमंडल हाथ में ले दिगम्बर वेष में महावीर के मार्ग पर चल चुका था। यह यात्रा अब भी निरंतर जारी है। इस समय मुनि समत्व सागर जिले की शाहगढ़ तहसील में विराजमान हैं।