अकेले आये थे और अकेले ही जाओगे, यह जीवन का मीठा कड़वा सच है। अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज औरंगाबाद उदगाव नरेंद्र /पियूष जैन भारत गौरव साधना महोदधि सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का महाराष्ट्र के ऊदगाव मे 2023 का ऐतिहासिक चौमासा चल रहा है इस दौरान भक्त को प्रवचन कहाँ की
धीरे धीरे मन को कमज़ोर करने वाली सोच,
चेहरे की खूबसूरती और प्रसन्नता को नष्ट कर देती है।
जैसे ख़त्म होती धूप, गूंजती हुई ध्वनि, उड़ती हुई सुगन्ध और सुनहरा जीवन..!
जीवन में कई बार ऐसे क्षण आते हैं, जब वे मन को प्रसन्न और चेहरे की ख़ूबसूरती को बढ़ा देते हैं। यह तब होता है जब आप अपने आप से खुश होते हैं, या आपका कोई मन-मुताबिक कार्य हो जाता है तब। लेकिन यह कुछ क्षण के बाद फिर वही रोजमर्रा की ज़िन्दगी शुरू हो जाती है। रोजमर्रा की जिन्दगी से बाहर आने के लिये आत्म सन्तोष, वह सुख है जो बाहर नहीं भीतर की प्रसन्न्ता से मिलता है।
_आप सोचो–
निर्वस्त्र आये थे और निर्वस्त्र ही जाओगे।
कमज़ोर आये थे और कमज़ोर होकर ही जाओगे।
बन्द मुट्ठी आये थे, खोलकर मुट्ठी जाओगे।
रोते रोते आये थे, रोते बिलखते छोड़कर जाओगे।
अकेले आये थे और अकेले ही जाओगे, यह जीवन का मीठा कड़वा सच है।जो आज नहीं तो कल स्वीकार करना ही पड़ेगा। यदि आप हमसे पूछते हैं कि आपने 557 दिन की अखण्ड मौन तप साधना में क्या पाया-?मेरा एक लाइन का जबाब होगा — प्रकृति का मौन आनंद और आत्म सन्तोष पाया।
जब आत्मा – आत्म सन्तोष से भरती है तो चेहरे की ख़ूबसूरती और आकर्षण आपोआप बढ़ने लगता है। हम प्रकृति और प्रकृति का जीवन ही पसंद करते हैं। इसके अलावा फिर वो कोई भी हो – नाटकीय, कठपुतली का जीवन ही जिन्दगी भर जीता है और सब छोड़कर मरता है…!!! नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद