अद्भुत शक्तियों एवं आध्यात्मिक तेज का पुंज हैं आचार्य सुनील सागर महाराज संजय जैन बड़जात्या कामां

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संदीप से बने आचार्य सुनील सागर महाराज के 47 वें अवतरण 7 अक्टूबर पर विशेष
परम पूज्य बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य आदि सागर महाराज अंकलीकर परंपरा के चतुर्थ पट्टाचार्य आचार्य श्री सुनील सागर महाराज अद्भुत शक्तियों एवं आध्यात्मिक तेज का पुंज सरीके हैं। आपका नील वर्ण और दमकता चेहरा स्वयमेव ही भक्तों के आकर्षण का केंद्र है। एक बार आपके सम्पर्क में आने वाला स्वमेव ही आपका होकर रह जाता है।
प्रारम्भिक जीवन और कुशाग्र बुद्धि मध्यप्रदेश के सागर जिले में स्थित तिगोडा गांव में श्रावक श्रेष्ठि श्रीमान भागचंद जी जैन एवं माता मुन्नी देवी की कुक्षी से 7 अक्टूबर सन 1977 को आपका प्रादुर्भाव हुआ तो परिवारी जनों ने प्रसन्न होकर संदीप सेठ नाम प्रदान किया। आप प्रारंभ से अत्यंत मेधावी और कुशाग्र बुद्धि थे। एक साथ लौकिक व अलौकिक विद्यालयों में प्रात से शाम तक अध्ययन करते थे। घर से नित्य प्रतिदिन कच्चे रास्ते पर पैदल एक किलोमीटर चलकर आप विद्यालय पहुंचते तो एक बार के अध्ययन में ही पूरी पुस्तक का ज्ञान समाहित हो जाता था। शिक्षा के प्रति आपका जुनून और पुरुषार्थ दोनों ही अतुल्यनीय रहे तो आपने बी काम तक लौकिक शिक्षा पूर्ण की।
आध्यात्मिक सरोवर के हंस लौकिक शिक्षा लेते हुए भी आपका लक्ष्य अलौकिक शिक्षा की ओर रहा। आध्यात्मिक सरोवर में डुबकी लगाने को मन मचल रहा था उसी समय आचार्य श्री भरत सागर महाराज का सानिध्य आपको प्राप्त हुआ और अपने ब्रह्मचर्य अवस्था में उनसे ज्ञान अर्जन किया। परम तपस्वी तृतीय पट्टाचार्य आचार्य श्री सन्मति सागर महाराज के सानिध्य में आते ही आपकी भावनाएं और प्रबलता के साथ उबाल लेने लगी,मानो जैसे अब नये सूर्य का उदय होने वाला हो। वर्ष 1997 में झांसी के बरुआ सागर स्थित गणेश प्रसाद वर्णी विद्यालय में तपस्वी सम्राट सन्मति सागर के अतिशय तपस्वी हस्तो से 19 वर्षीय युवा संदीप को मुनि दीक्षा 20 अप्रैल 1997 महावीर जयंती के अवसर पर प्रदान की गई तो आचार्य ने नया नाम मुनि सुनील सागर महाराज रखा। “सम्भवतया उन्होंने नील वर्ण को देखते हुए ही उन्हें सुनील सागर नाम प्रदान किया” जिसका अर्थ गहरे नीले रंग, नीला पत्थर अर्थात नीलम होता है।
मां विजय मति माताजी ने कहा हीरा आचार्य श्रीसन्मति सागर महाराज से प्रथम गणिनी आर्यिका रत्न विजय मति माताजी ने कहा कि आपने यह हीरा कहां से ढूंढा है और उन्हें बाल मुनि की संज्ञा दी वैसे उन्हें बाल मुनि शब्द कुछ अटपटा लगा किंतु आर्यिका श्री की पारखी नजर ने इस हीरे को पहचान लिया था। इस हीरे का जिक्र आचार्य श्री से कई बार कर महत्त्वता साबित की। यह बात परिपूर्ण हुई जब कुंज वन में 26 दिसंबर 2010 को चतुर्थ पट्टाचार्य की घोषणा की गई। स्वयं की बुद्धि लब्धता,दूरदर्शिता,कार्य कुशलता से बड़े संघ के मुखिया के कर्तव्यग्रहिता को आपने भली भांति सिद्ध किया है। आप कुशल संघ नायक के साथ साथ जैनत्व के महान उन्नायक भी हैं।
विषय विशेषज्ञ व उत्कृष्ट वक्ता आचार्य श्री सुनील सागर महाराज प्रत्येक विषय के विशेषज्ञ तो है ही साथ ही प्रासंगिक व सामयिक विषयों के गहरे चिन्तक व उत्कृष्ट वक्ता के रूप में उभर रहे हैं। आपने गिरनार मुद्दे के साथ-साथ सम्मेद शिखरजी एवं भगवान महावीर 2550 वे जन्म जनकल्याणक जैसे अनेक विषयों पर अपनी बेबाक टिप्पणी रखी है। हर समय आप एक चिंतक की भूमिका के साथ साथ समाज के मार्गदर्शक के रूप में रहते हैं। आप विलक्षण ज्ञान के धारी के साथ साथ पांच भाषाओं व अति प्राचीन ब्राह्मी लिपि व प्राकृत भाषा के ज्ञाता है तो आपको जैनागम की लगभग बीस हजार गाथाये कंठस्थ याद हैं।
अद्धभुत शक्तियों के धारी आपका तेज अतुलनीय है तो आप अद्धभुत शक्तियों के धारी हैं। धर्मनगरी कामां में पंचकल्याणक के दौरान जब गजराज टैंक में गिर गए और हिलडुल नही पा रहे थे तो आपने अपने कमंडल से जल लेकर मंत्रोचार के साथ गजराज पर छिड़क तो गजराज की चेतना वापिस आ गयी आपने कहा कि मत घबराओ इन्हें अब कुछ नही होगा। इसके अतिरिक्त पंचकल्याणक के दौरान ही तूफान और बारिश को दौर चल रहा था। आसपास के क्षेत्रों से फोन आ रहे कि आप क्या कर रहे हो, कैसे टेंट आदि को संभालोगे तो समिति ने आचार्य से निवेदन किया तो मुस्कुराते हुए कहा कि सब निर्विध्न सम्पन्न होगा और ऐसा ही हुआ। आपके शारीरिक,मानसिक व आध्यात्मिक तेज का साक्षात्कार सम्पूर्ण समाज ने किया।
आपके जीवन के 47 वर्ष पूर्ण होने पर हम सभी भक्तों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाई। हे गुरुवर आप शतायु और दीर्घायु हो और इसी तरह हम सब भक्तों पर अपने स्नेह का आशीष बरसाते रहे। नन्ही कलम से सूर्य को दीप दिखाने का प्रयास किया है। गुरुवर के श्री चरणों में त्रिवार नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु।
संजय जैन बड़जात्या कामां,राष्ट्रीय प्रचार मंत्री, धर्म जागृति संस्थान

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