आदर्शो-सिद्धांतों का दृढ़ता से पालन करना चाहिए -मुनिश्री विलोकसागर
मुरैना (मनोज जैन नायक) आठ दिवसीय श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के शुभारंभ से पूर्व बड़े जैन मंदिर में निर्यापक श्रमण मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में कैसी भी विषम परिस्थितियां निर्मित हों, हमें आदर्शो और सिद्धांतों को नहीं भूलना चाहिए । हमें अपने आदर्शो का, अपने सिद्धांतों को दृढ़ता से पालन करना चाहिए । सांसारिक जीवन में अनेकों प्रकार की विषम परिस्थितियां आती जाती रहती हैं। समय समय पर कभी दुख अथवा कभी सुख का आवागमन होता रहता है । हमने अपने ईष्ट के सदुपदेशों से, अपने गुरुओं से, साधु संतों से। अपने शास्त्र ग्रंथों आदि से जो भी आदर्श, सिद्धांत सीखे हैं या ग्रहण किए हैं उनके प्रति श्रद्धावान रहते हुए नियमपूर्वक उनका पालन करना चाहिए । यदि हमने अपने आदर्शो का, सिद्धांतों का, नियमों का दृढ़ता से पालन नहीं किया तो हमारा जीवन नरकमय होने से कोई रोक नहीं सकता । यदि कोई व्यक्ति अपने सिद्धांतों से भटक रहा है तो उसे समझाना चाहिए कि ऐसा करना गलत है ।
त्यागी हुई वस्तु को कूड़ा, कचरा, रद्दी समझना चाहिए । जिस वस्तु को हमने त्याग दिया है, वह हमारे लिए अनुपयोगी है, उसे कूड़ेदान में डाल देना चाहिए । त्यागी हुई वस्तु के उपयोग का हमारे मन में ख्याल भी नहीं आना चाहिए । सामान्य तौर पर भी हम ऐसी कोई भी चीज़ जो बेकार, अनुपयोगी या फेंकी हुई हो, उसका पुनः उपयोग नहीं करते फिर संयम साधना के लिए अपने आदर्शो का, अपने सिद्धांतों का, अपने नियमों की अवहेलना कैसे कर सकते हैं। यदि आपने अपने आदर्शो और सिद्धांतों का अक्षरशः पालन नहीं किया तो आप यू ही इस संसार सागर में यू ही भटकते रहेंगे । और यदि अपने आदर्शो। सिद्धांतों पर अडिग रहे तो मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर हो सकते हैं ।
त्याग के संदर्भ में मुनिश्री ने दृष्टांत देते हुए बताया कि एक व्यक्ति ने अपने घर परिवार का त्याग कर दिया और वह साधु बन गया । काफी समय बीतने के बाद उसके मन में ख्याल आया कि मेरे बीबी बच्चे कैसे होगें, मुझे जाकर उन्हें देखना चाहिए । उस व्यक्ति ने अपने गांव पहुंचकर अपनी बीबी को आवाज दी । उस साधु की पत्नी अपने पति को देखते ही समझ गई कि मेरा पति अपने आदर्शो और सिद्धांतों से भटक रहा है । उस पत्नी ने अपने साधु पति को सम्मान एक आसन पर बैठाया और अपने बेटे को एक पात्र देकर खीर खिलाकर वमन (उल्टी) करने को कहा । बेटे ने ऐसा ही किया । फिर उसने अपने पुत्र को उस वमन सामग्री को खाने को कहा । तब साधु बोला क्या तुम पागल हो गई हो, वमन की ही सामग्री को पुनः कैसे ग्रहण किया जा सकता है । तब साधु की पत्नी ने कहा पागल मैं नहीं, पागल तो आप हो गए हैं। त्यागी गई वस्तु वमन के ही समान हैं, जब उसे पुनः ग्रहण नहीं किया जा सकता तो आप भी घर परिवार का त्याग कर संन्यासी हो गए थे, फिर पुनः घर परिवार को कैसे स्वीकार कर सकते हो । हे स्वामी आप अपने आदर्शो और सिद्धांतों को भूल रहे हो । अपनी पत्नी की बात उस साधु की समझ में आ गई और वह तुरंत पुनः घर परिवार को छोड़कर अपने आश्रम चला गया । कहने का तात्पर्य है कि जो हमने त्याग दिया, छोड़ दिया उसे पुनः पाने की लालसा भी मन में नहीं करना चाहिए ।
आज से होगा आठ दिवसीय अनुष्ठान का शुभारंभ
जैन समाज के सुप्रसिद्ध विधान प्रतिष्ठाचार्य पंडित राजेंद्र शास्त्री मंगरोनी ने बताया कि पूज्य युगल मुनिराजों के पावन सान्निध्य में आठ दिवसीय श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के शुभारंभ से पूर्व आगम सम्मत विभिन्न क्रियाएं विधिविधान पूर्वक मंत्रोच्चारण के साथ सम्पन्न कराई जाएगी । आज प्रातः विभिन्न धार्मिक क्रियाओं के साथ साथ श्री जिनेन्द्र प्रभु का अभिषेक। शांतिधारा, नित्यमह पूजन मंगलाचरण, ध्वजारोहण एवं घटयात्रा का जुलूस निकलेगा। सर्वप्रथम पुण्यार्जक परिवार कैलाशचंद राकेशकुमार जैन (सिखाई का पुरा) पूणारावत परिवार के यहां से बड़े जैन मंदिर जी में गाजे बाजे के साथ पूजन हेतु द्रव्य सामग्री आएगी ।












