आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष केवल 13 दिन का होगा

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पश्चिमी देशों में फिर युद्ध के आसार

मुरैना (मनोज जैन नायक) चंद्र माह में दो पक्ष होते हैं एक कृष्ण पक्ष दूसरा शुक्ल पक्ष । दोनो में पंद्रह पंद्रह दिन यानी तिथियां होती है। कई बार एक पक्ष में एक तिथि बढ़ जाती हैं कभी एक तिथि कम हो जाति है।
वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने बताया कि कोई तिथि जब दो सूर्योदय को स्पर्श करती है तो तिथि वृद्धि होती है और जब कोई तिथि किसी भी सूर्योदय को स्पर्श नहीं करती तो क्षय होती है।
इस वार आषाढ़ कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा तिथि और त्रियोदशी तिथि दोनो तिथि सूर्योदय के समय न होने से इनका क्षय हो गया । इससे आषाढ़ कृष्ण पक्ष 15 दिनो की जगह 13 दिनो का रह गया।
जैन ने कहा यह संयोग द्वापर युग के महाभारत काल में बना था । इस बार आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष 23 जून से शुरू होकर 05 जुलाई को समाप्त होगा । शुक्ल पक्ष 06 जुलाई से 21 जुलाई तक चलेगा।
बहुत सालो बाद आषाढ़ कृष्ण पक्ष केवल 13 दिन का पड़ रहा है । ऐसा संयोग महाभारत काल में पड़ा था । यह एक प्रकार का दुर्योग है । इस बार पूरे आषाढ़ माह में पांच शनिवार, पांच रविवार होंगे । शनि ग्रह 29 जून को रात 12:38 बजे वक्री होंगे, जो 15 नवंबर को मार्गी होंगे । बुध 25 जून की रात 04:12 बजे पश्चिम में उदय होंगे और शुक्र ग्रह 05 जुलाई को पश्चिम में मिथुन राशि में उदय होंगे । 29 जून के बाद से जुलाई अगस्त माह में दक्षिण, पश्चिम दिशा शहरो में भारी वर्षा बाढ़ से बड़ी हानि हो सकती है । पश्चिमी दो देशों में नए युद्ध की शुरुआत हो सकती है । जिसमे दूसरे देश भी सामिल हो सकते हैं । ये युद्ध का खतरा 29 जून से 15 अगस्त तक शनि के कुंभ राशि में वक्री रहने तक रहेगा।
आषाढ मास में शुक्र व बुध ग्रह का उदय जल प्लावन , बाढ़, प्राकृतिक प्रकोप, नई बीमारी का भय दे सकता है।
13 दिनो का पक्ष का संयोग बहुत सालों बाद आता है। महाभारत युद्ध के पहले 13 दिन के पक्ष का दुर्योग काल आया था। उस समय बड़ी जन धन हानि हुई थी। घनघोर युद्ध हुआ था।
ज्योतिष शास्त्र में 13 दिनो का पक्ष अच्छा नहीं माना गया है। ऐसा दुर्योग होने से अतिवृष्टि, अनावृष्टि, राजसत्ता का परिवर्तन, जाति भेद, रंग भेद आदि उपद्रव होने की संभावना पूरे साल बनी रहती है। ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है समस्त प्रकृति को पीड़ित करने वाला यह दुर्योग संक्रामक रोगों की भी वृद्धि कर सकता है। इस पक्ष में मांगलिक कार्य, व्रतारम्भ, उद्यापन, भूमि भवन का क्रय विक्रय, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्यों को नहीं करना चाहिए।

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