जयपुर। आचार्य सौरभ सागर महाराज के सानिध्य और पंडित संदीप जैन सजल के निर्देशन में नारायण सिंह सर्किल स्थित भट्टारक जी की नसियां में चल रहे दस दिवसीय सिद्धचक्र महामंडल विधान पूजन के नवें दिन जिनेंद्र भगवान का स्वर्ण एवं रजत कलशों से कलशाभिषेक, शांतिधारा एवं नित्य नियम पूजन कर विधान पूजन आरंभ किया गया। सोमवार को भगवान की शांतिधारा करने का सौभाग्य अशोक जैन जयपुर और रजनीश जैन मेरठ ने प्राप्त किया। मंगलवार को दस दिवसीय विधान पूजन का निष्ठापन विश्व शांति महायज्ञ अनुष्ठान और श्रीजी की शोभायात्रा के साथ होगा।
अध्यक्ष आलोक जैन ने बताया की सोमवार को श्रद्धालुओं ने भजन, भक्ति के साथ जिनेन्द्र प्रभु की आराधना की ओर कुल 1024 अष्ट द्रव्य पूजन में चढ़ा प्रभु से विश्व में शांति की मंगल भावना की। पूजन के दौरान प्रातः 8.30 बजे आचार्य श्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित किया और आशीर्वचन दिए। मंगलवार को प्रातः 6.15 बजे महोत्सव के दसवें और अंतिम दिवस की शुरुवात श्रीजी के कलशाभिषेक के साथ होगी। इस दौरान शांतिधारा, नित्य नियम पूजन, विधान पूजन होगा, पूजन के दौरान आचार्य श्री के प्रवचन होगे, इसके बाद मंत्रोच्चारण के साथ महायज्ञ प्रारंभ होगा साथ ही महोत्सव के सहयोगियों, कार्यकर्ताओं, इंद्र – इंद्राणियों और अतिथियों का सम्मान किया जाएगा अंत ने श्रीजी को रथ पर विराजमान कर बैंड – बाजों और जयकारों के नगर शोभायात्रा निकाली जायेगी और श्रीजी मुख्य वेदी पर विराजमान किया जायेगा। सोमवार को हुई धर्म सभा में रमेश जैन तिजारिया, ताराचन्द पाटनी, हेमंत सोगानी, चिन्तामणि बज, अशोक जैन नेता, सुरेन्द्र मोदी, कमलबाबू जैन, मनोज झांझरी, पदम बिलाला, रमेश बोहरा सहित बडी संख्या में गणमान्य श्रेष्ठीजन उपस्थित थे।
एक सिद्धचक्र विधान की आराधना मात्र से 700 कोढ़ीयों का दुख दूर हो सकता तो सोचो क्या नही हो सकता है, बस केवल आस्था होनी चाहिए – आचार्य सौरभ सागर
सोमवार को आचार्य सौरभ सागर महाराज ने कहा कि ” फूलों से ज्यादा आचरण की खुशबू की महत्ता होती है, जैन कुल में जन्म लेने पर देव, शास्त्र, गुरु का समागम मिलता, यदि व्यक्ति जैनत्व के आचरण के विपरीत कार्य करता है तो वह सिर्फ जन्म है ना जैन है, ना कर्मना है। ”
आचार्य सौरभ सागर ने ” पूजन के मध्य विधान की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि ” इस विधान की महिमा अपरंपार है, जिस किसी ने भी आस्था और विश्वास के साथ सिद्धचक्र विधान पूजन किया है उसके प्रत्येक दुखो का हरण हुआ है। मैना सुंदरी ने जब इस विधान पूजन को किया था तब अपने पति सहित 700 कोढ़ीयों के तन पर यंत्र अभिषेक का गंदोधक क्षेपन किया तो उनका कोड दूर हो गया था, जबकि उस समयकाल के दौरान इतने संसाधन नहीं हुआ करते थे जितने संसाधन आज उपलब्ध हैं। अगर उस समय आज के जितने संसाधन होते तो आज इसकी महिमा का वर्णन करने की आवश्यकता नहीं होती। अब साधु और श्रावक मिलकर इस विधान को ओर प्रभावशाली बनायेगे।
दोपहर में आचार्यश्री के सानिध्य में भारतवर्षीय दिगम्बर जैन धर्म संरक्षिणी महासभा के तत्वावधान में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर रमेश तिजारिया, सुनील बख्शी, प्रदीप जैन, विनोद जैन कोटखावदा, पदम बिलाला, मनीष बैद, आलोक जैन तिजारिया, भाग चन्द मित्रपुरा सहित बडी संख्या में जैन बन्धु शामिल हुए। मंच संचालन कमल बाबू जैन एवं राजेन्द्र बिलाला ने किया। सायंकाल गौरवाध्यक्ष राजीव जैन गाजियाबाद, अध्यक्ष आलोक जैन, कोषाध्यक्ष देवेंद्र बाकलीवाल, मंत्री मनीष बैद के नेतृत्व में संगीतमय महाआरती की गई। तत्पश्चात आनन्द यात्रा का आयोजन किया गया।