आज आन्चार्य विद्यासागर सूर्यास्त हो गया ।

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भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी महाराज

हमें जो यह जन्म मिला है वह अपने दुखों को दूर करने के लिए मिला है। इस संसार में मानव जाति कर्म चेतना का अनुभव किया करती है अर्थात् अपने ऊपर आयी हुई आपत्ति – विपत्ति का प्रतिकार करने की सामर्थ जिसमें है वह कर्म चेतना बाले प्राणी कहलाते है। यह कर्म न्चेतना जिनागम में में दो प्रकार की बतलाई है- शुभ कर्मचेतना और अशुभ कर्मन्चेतना । अनादि अविद्या-अज्ञान के वश होकर यह प्राणी सदैव अशुभ कर्मन्चेतना का अनुभव करने का आदी है। कर्म के उदय में और नवीन नवीन अशुभ कर्मों का ही बंध अपनी आत्मा के साथ किया करता है। अशुभ कर्मन्चेतना के वश होकर प्राणी अपने ही समान प्राणियों का अहित विचारता रहता है, बन्धुओं। एक बात हमेशा ध्यान रखना – आपके द्वारा यदि किसी दूसरे का अहित विचारा जा रहा है अथवा अहित किया जा रहा है उस अशुभ विचार अथवा अशुभ क्रिया से उस जीव का अहित हो अथवा न हो किन्तु आपके अशुभ विचारों से आपका अहित निश्चित रूप से हो रहा है। शुभ कर्मचेतना वाले जीव प्राणी मात्र का कल्याण चाहते हैं, सब जीवों उपकार करते हैं। सब प्राणियों का हित करते हुए ऐसे शुभ कर्मचेतना वाले प्राणी सहजरूप में ही अपना हित कर लिया करते हैं। इस चेतना के धारी प्राणी साधु-संत-महात्मा हुआ करते हैं। निरंतर शुभोपयोग के सहारे साधु जन शुद्ध कर्म चेतना को प्राप्त कर स्वयं ही परमात्म स्वरूप को प्राप्त कर लेते हैं। बन्धुओं । जिनागम में सल्लेखना दो प्रकार की बतलाई गई है-पहली कषाप सल्लेखना और दूसरी काय सल्लेखना । जैन संत अपने साधना काल में अपनी शक्त्यानुसार काय सल्लेखना के साथ कषाय सल्लेखना की साधना किया करते हैं। यह मानना जीवन हमें मात्र अपने राग-द्वेष आदि कषाय परिणामों को जीतकर समतामय जीवन बनाने के के लिए मिला है। एक जैन संत की साधना का मुख्य ध्येय अपने परिणामों को पूर्णतः राग देष, मोह आदि विकारों से मुक्त पूर्ण शुद्ध बनाने का ही रहा करता है।
विगत दिनों से समाचार प्राप्त हो रहा था कि पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है, पुनः स्वास्थ्य लाभ का भी समाचार प्राप्त हुমা किन्तु आज रात्रिकाल में ही उनकी सल्लेखना पूर्वक समाधि हो गई। बन्धुओं। पूर्व में भी कमी आचार्य श्री विमलसागर सूर्यास्त हुआ, कभी आचार्य श्री सन्मति सागर सूर्यास्त हुआ था और आज आचार्य श्री विद्यासागर सूपांत हो गया है। जैन संत की जीवनभर की सम्पूर्ण साधना का प्रयोजन एक मात्र शुम एवं शुरू भावना पूर्वक समाधि मरण को ही बरठा करने का हुआ करता है। आज समाधि को प्राप्त आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हम महामंत्र का स्मरण करें।

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