28 दिसंबर 23,सोनीपत , परमपूज्य आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के ससंघ प्रवास के अवसर पर उनकी लेखनी से प्रसूत हिंदी साहित्य जगत को चकित कर देने वाला महाकाव्य ‘ वस्तुतत्त्व महाकाव्य’ जिसे भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित किया गया है ,पर साहित्यकारों की एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें हिंदी,संस्कृत तथा दर्शन जगत के मूर्धन्य साहित्यकारों ने महाकाव्य के विविध पक्षों पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया । संगोष्ठी के निदेशक वरिष्ठ मनीषी ,शास्त्री परिषद के अध्यक्ष डॉ श्रेयांस कुमार जैन ,बड़ौत तथा संयोजक डॉ अमित जैन ,बड़ौत थे ।
प्रातः काल सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रपति सम्मानित प्रो फूलचंद जैन प्रेमी जी ने की । डॉ अमित जैन ,बड़ौत एवं डॉ विपिन शर्मा, उत्तराखंड तथा डॉ श्रेयांस कुमार जैन जी ,बड़ौत ने महाकाव्य के समकालीन संदर्भों और साहित्यिक सौंदर्य और दार्शनिक वैशिष्ट्य की चर्चा की । इस सत्र का कुशल संचालन राष्ट्रपति सम्मानित प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली ने किया ।
इसी सत्र में भारतीय ज्ञानपीठ से सद्यः प्रकाशित इस महाकाव्य का भव्य विमोचन भी हुआ । इस महाकाव्य पर आधारित एक लघु कृति का भी विमोचन हुआ जिसे श्रमण मुनि श्री सुप्रभसागर जी ने लिखा है ।
दोपहर के सत्र की अध्यक्षता व्याख्यान वाचस्पति डॉ श्रेयांस कुमार जैन जी ,बड़ौत ने की तथा संचालन डॉ अमित जैन ,बड़ौत ने किया ।
इस सत्र में डॉ अनामिका जैन , मुजफ्फरनगर, प्रो संगीता जैन ,इंदौर ,प्रो अनेकांत कुमार जैन एवं प्रो फूलचंद जैन प्रेमी जी,वाराणसी ने महाकाव्य में अलंकार , छंद, हिंदी साहित्य में उसका स्थान , उसके रहस्यवाद तथा द्रव्य गुण पर्याय आदि विषयों पर गहन विचार विमर्श प्रस्तुत किया ।
दोनों सत्रों के अंत में पूज्य आचार्य श्री की मंगल देशना सभी को प्राप्त हुई जिसमें उन्होंने कहा कि करोना काल में इस महाकाव्य की सर्जना सहज ही हो गई ।
संगोष्ठी में सभी साहित्यकारों ने एक स्वर में कहा कि यह महाकाव्य दर्शन और साहित्य का संगम है तथा आचार्य श्री की गहरी आध्यात्मिक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति है ।