आचार्य विद्यासागर जी महाराज की समाधि पर अंतर्राष्ट्रीय सामूहिक विनयांजलि का भव्य हुआ आयोजन

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दीक्षा कई जन्मों की आत्म साधना का फल है

आर्यिका विज्ञा श्री

फागी संवाददाता

श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ, गुन्सी (राज.) के तत्वावधान में प. पू. राष्ट्रसंत गणाचार्य 108 श्री विरागसागर जी महामुनिराज की सुविज्ञ शिष्या प. पू. भारत गौरव, पुरातत्व रक्षिका गणिनी आर्यिका 105 श्री विज्ञाश्री माताजी का 30 वाँ दीक्षा दिवस महोत्सव 25.2.2024 को हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया, संघस्थ बालब्रहचारिणी रुचि दीदी ने बताया कि कार्यक्रम का शुभारंभ मंगलाचरण के साथ हुआ। चित्र अनावरण कर्त्ता श्री भागचंद जी कासलीवाल, गुहाटी वालों के साथ कार्यक्रम के मुख्य अतिथि टोंक जिला प्रमुख सरोज जी बंसल द्वारा गुरूदेव विराग सागर जी एवं विद्यासागर जी महाराज की छायाचित्र का अनावरण किया गया। तत्पश्चात् दीप प्रज्वलन करने का सौभाग्य श्री विमलचंद जी अजमेरा, किशनगढ़ वालों ने प्राप्त किया।इस अवसर पर गुन्सी ग्राम
के सरपंच साहब एवं सेकेट्री भी पूज्य गुरू माँ का आशीष प्राप्त करने हेतु पधारे। गुरूमाँ के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य विवेक विहार, जयपुर समाज ने प्राप्त किया। गुरू माँ के कर कमलों में शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य सुशील जी, विकास काला जापान वाले विवेक विहार, जयपुर एवं वस्त्र भेंट करने का सौभाग्य सुरेन्द्र पाटनी जयपुर वालों को प्राप्त हुआ। 30 वें दीक्षा दिवस के उपलक्ष्य में गुरूमाँ के चरणों में 30 शास्त्र भेंट किये गये अष्ट द्रव्यमय पूजन की गई।
विशुद्ध वर्धिनी महिला मण्डल निवाई द्वारा भक्तामर स्तोत्र पर नृत्य प्रस्तुति दी गई। तत्पश्चात् संगीत मय लहरों के साथ 48 दीपक चढ़ाकर सकल महिला मण्डल निवाई द्वारा भक्तामर महार्चना का भव्य आयोजन किया गया। सभी भक्तों ने गुरुमाँ की 300 दीपकों से महाआरती कर पुण्यार्जन किया।
प्रवचन के अंतर्गत संयम की आराधना करते हुए माताजी ने कहा कि- दीक्षा मानव जीवन की बीज से वृक्ष बनने की अथक यात्रा है, सत्यं, शिवं ,सुदरं त्रिवेणी के संगम की यात्रा है। ज्ञान की गहन जिज्ञासा और सत्य की अटल गहराइयों में गवेषित होने की यात्रा है। पढ़ने, सुनने, सोचने, समझने और चिन्तन की सुनहरी अनुभूतियों में अवगाहन करने की यात्रा है। दीक्षा कई जन्मों की आत्म – साधना का फल है। संयम वह पावन सूत्र है, जिसके बिना जीवनरूपी मार्ग पर चलना संभव नहीं। संयम निधि द्वारा ही परमनिधि की प्राप्ति की जा सकती है। धर्म का एक मात्र आधार है संयम, दुर्गति से बचकर मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए संयम परमावश्यक हैं! यदि जीवन में संयम रूपी ब्रेक है तो आपकी गाड़ी सुचारू रूप से गन्तव्य तक पहुँच जायेगी। संयम एक ऐसा रत्न है, जो न स्वर्गों में मिलेगा, न स्वर्गों के खजानों में, न तिर्यंच गति में और न ही नरक में अपितु मनुष्य गति में ही संभव है। संयम का मार्ग कायरों का मार्ग नहीं, वीरों का है। अज्ञानियों का नहीं, ज्ञानियों का है। रागियों का नहीं, वैरागियों का है। ऐसे वैरागी परम श्रद्धेय गुरुदेव विराग सागर जी ने 30 साल पहले जो संयम रत्न दे करके उपकार किया है, उनके उपकारों की मैं ऋणी रहूँगी। भाव सहित संयम का पालन करने से अधिक से अधिक 32 भव में वह जीव नियम से मोक्ष चला जाता है। और समाधि पूर्वक मरण करता है तो अधिक से अधिक 7, 8 भव में एवं कम से कम 2, 3 भव में मोक्ष चला जाता है। आज हमारे बीच से परम पूज्य शुभ संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्या सागर जी महाराज का विगत दिनों सल्लेखना पूर्वक समाधि मरण हुआ,जो हम सभी के लिए बेहत दुःख का विषय है चूंकि साधू का मरण मृत्यु महोत्सव के प्रतीक रूप होता है। आज उन्होंने अपने संयमी जीवन का सार समाधि को प्राप्त कर मंजिल को पा लिया। उनके स्वप्न को साकार करना, जैन धर्म को ऊँचाईयों पर ले जाना एवं समाज में एकता लाना हम सबका कर्तव्य है। तत्पश्चात सभी भक्तों ने आचार्य विद्यासागर जी महाराज के चरणों में भावांजलि समर्पित कर उनके मोक्ष पथ की कामना करते हुए सभी श्रृदालुओं ने नम आंखों से विनयांजलि देकर उनके द्वारा किए गए उपकारों को याद करते हुए जीवन को धन्य किया।

राजाबाबु गोधा जैन गजट संवाददाता राजस्थान

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