आचार्य श्री विमलसागर महाराज का समाधि महोत्सव मनाया

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आचार्य श्री विमलसागर महाराज का समाधि महोत्सव मनाया
जैन समाज के महान तपस्वी, वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री विमलसागर महाराज का ३२वाँ समाधि महोत्सव बड़ौत नगरी में अत्यंत श्रद्धा, भक्ति एवं गरिमामय वातावरण में मनाया गया। यह पावन आयोजन आचार्य श्री विमर्शसागर महाराज के पावन सान्निध्य में अजितनाथ सभागार मंडी बड़ौत में संपन्न हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में साधु-संतों, श्रावक-श्राविकाओं एवं श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।
समाधि महोत्सव के अवसर पर धर्मसभा, प्रवचन, पूजन, भक्ति कार्यक्रम एवं श्रद्धांजलि अर्पण किए गए। आचार्य श्री विमर्शसागर महाराज ने अपने उद्बोधन में आचार्य श्री विमलसागर महाराज के त्यागमय, तपस्वी एवं करुणामय जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आचार्य विमलसागर महाराज का संपूर्ण जीवन आत्मसंयम, अहिंसा और धर्मप्रभावना का जीवंत उदाहरण रहा है। ऐसे महापुरुष युगों-युगों तक समाज को दिशा देते हैं।उन्होंने कहा कि आचार्य विमलसागर महाराज ने कठोर तपस्या, हजारों उपवास, आजीवन त्याग एवं अनुशासित साधना के माध्यम से जैन धर्म की गौरवशाली परंपरा को सुदृढ़ किया। उनके द्वारा स्थापित धार्मिक संस्कार आज भी समाज को नैतिकता और संयम के मार्ग पर अग्रसर कर रहे हैं। कार्यक्रम के दौरान श्रद्धालुओं ने भावपूर्ण भक्ति गीतों के माध्यम से आचार्यश्री को नमन किया। समाजजनों ने उनके बताए मार्ग पर चलने तथा धर्म-संस्कारों को जीवन में अपनाने का संकल्प लिया। आयोजन के अंत में सामूहिक शांति पाठ एवं मंगल कामनाओं के साथ महोत्सव का समापन हुआ।
मुनिश्री विचिन्त्य सागर जी ने बताया कि आचार्यश्री का जन्म कोसमा (जिला एटा, उत्तर प्रदेश) में आयुर्वेण कृष्ण सप्तमी, विक्रम संवत १९७३ को हुआ। प्रारंभ से ही आप वैराग्यशील, संयमी एवं धर्मनिष्ठ प्रवृत्ति के रहे।
आचार्यश्री ने जीवन भर कठोर तप, त्याग और साधना का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। आपने आजीवन अन्न त्याग (११ वर्ष से), दही, नमक एवं तेल का त्याग किया। अपने दीर्घ साधना जीवन में आपने ४०५६ उपवास सहित अनेक कठिन व्रत संपन्न किए। शुल्लक, ऐलक, मुनि तथा आचार्य पद तक की दीक्षा-परंपरा में आपने असंख्य आत्माओं को संयम पथ पर अग्रसर किया।
आचार्यश्री को चारित्रचक्रवर्ती, ज्ञानभूषण, समन्वयाचार्य, करुणानिधि, वात्सल्य मूर्ति, कलिकालसर्वज्ञ जैसी अनेक उपाधियों से अलंकृत किया गया। आपके मार्गदर्शन में देश के अनेक तीर्थों पर जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा, मंदिरों का निर्माण, ज्ञानपीठ एवं धार्मिक संस्थानों की स्थापना हुई। आपने जैन साहित्य को भी समृद्ध किया, जिनमें श्रीमज्जिनसहस्रनाम, मंडलविधान, पूजाविधान आदि उल्लेखनीय हैं।
आचार्य १०८ श्री विमलसागर महाराज का संपूर्ण जीवन त्याग, तप, करुणा एवं धर्मप्रचार का जीवंत उदाहरण रहा। जैन समाज उन्हें युगद्रष्टा आचार्य के रूप में सदैव स्मरण करता रहेगा।
सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।
सभा में महेंद्र जैन,मदन लाल जैन,विनोद जैन एडवोकेट,जितेंद्र जैन,मुकेश जैन,प्रदीप जैन,वरदान जैन,वकील चंद जैन,राकेश जैन,विवेक जैन,प्रदीप जैन आदि उपस्थित थे।

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