आचार्य श्री विद्यानंदजी के जन्म शताब्दी समारोह पर-कुंद भारती में राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी

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नई दिल्लीः परम पूज्य सिद्धांत चक्रवर्ती श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज के जन्म शताब्दी वर्ष के शुभारंभ पर 22 अप्रैल को कुंद-कुंद भारती में राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी आयोजित की गई। आचार्य श्री श्रुतसागरजी, मुनि अनुमान सागरजी एवं मूडबिद्री के भट्टारक चारूकीर्ति स्वामी जी ने सान्निध्य प्रदान किया। संयोजन अखिल भारतीय जैन पत्र सम्पादक संघ ने किया। मंगलाचरण के बाद आचार्य श्रुतसागरजी ने कहा कि आचार्य श्री बडे गुणग्राही और दूरदृष्टा थे, जिनवाणी के संरक्षण में उनका अदभुत योगदान रहा है। ज्ञान को आगे बढाने से ही उद्धार होगा। मुनि श्री अनुमान सागरजी ने कहा कि यदि हम उनका एक गुण भी अपना लें तो कल्याण हो सकता है, उन्होने लेखन, वक्तृत्व, ज्योतिष, ब्राह्मी लिपि, न्याय शास्त्र हर विषय का गहरा अध्ययन किया था।  डा. नलिन के शास्त्री ने आचार्य श्री द्वारा अनेक विषयों पर लिखी पुस्तकों का विवरण देते हुए कहा कि उनमें भावों का अथाह सागर हिलोरे लेता था, उनकी लेखन कला अदभुत थी। डा. अनुपम जैन- इंदौर ने वैदिक और जैन गणित का अंतर बताते हुए आचार्य श्री के विशाल गणित ज्ञान पर प्रकाश डाला। अनुपम जी ने गणित पर आचार्य श्रुतसागरजी को एक ग्रंथ भी भेंट किया। डा. राजीव प्रचंडिया-अलीगढ ने जैन इतिहास व पुरातत्व पर उनका अदभुत योगदान बताया। डा. ऋषभचंद फौजदार-दमोह ने आचार्य श्री के साहित्य का मूल्यांकन प्रस्तुत करते हुए कहा कि वे कहते थे कि पहले पढों, फिर समझो, फिर लिखो।
डा. चिरंजीलाल बगडा-कोलकाता ने बताया कि आचार्य श्री की विद्वता की शुरूआत कोलकाता से ही हुई, उन्होने क्षु्ल्लक अवस्था में कोलकाता में विशाल लाइब्रेरी की सभी 56 हजार पुस्तके पढी थी। तभी तो उन्हे सिद्धांत चक्रवर्ती की उपाधि दी गई थी। वे बडे अनुशासन प्रिय थे।
अनूपचंद जैन एडवोकेट-फिरोजाबाद ने कहा कि उन्होने डा. निजामुद्दीन, कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर व अन्य अनेक अजैन विद्वानों को सम्मानित कराया। अजैन लोग भी आचार्य श्री का बडा सम्मान करते थे। डा. जयकुमार उपाध्येय ने आचार्य श्री को वास्तु शास्त्र का ज्ञाता बताते हुए कहा कि यहां भरत मंदिर, प्राकृत भवन, खारवेल भवन आदि सभी वास्तु के हिसाब से ही बने हैं। आचार्य श्री का दृष्टिकोण बडा विशाल था, उन्होने कहीं भी अपना नाम नही लिखवाया। डा. अनेकांत जैन ने आचार्य श्री का दार्शनिक योगदान बताते हुए कहा कि वे कभी भी अनर्गल अथवा अनावश्यक बात नही करते थे।
रमेशचंद्र जैन एडवोकेट-नवभारत टाइम्स ने आचार्य श्री की सन्निधि में अपनी 50 साल की यादें ताजा करते हुए सहारनपुर क्षेत्र में 1969 में उनके विहार व महत्ती धर्म प्रभावना का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय क्षेत्र में गूर्जर समुदाय ने उनका बडा सम्मान किया था। उनका धार्मिक दृष्टिकोण आकाश से भी ऊंचा, पृथ्वी से भी भारी और समुद्र से भी गहरा था। समाज के लिए उनका मुख्य उपदेश था- किसी को मत ठुकराओ, सबको गले लगाओ, धर्म सिखाओ। डा. कल्पना जैन -नौएडा ने कहा कि वे पहले तोलो फिर बोलो का सिद्धांत अपनाते थे। डा. मीना जैन- उदयपुर ने उनके तप, त्याग और ध्यान पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डा. श्रेयांश कुमार जैन-बडौत ने 1968 में चातुर्मास के दौरान उनके द्वारा की गई धर्म प्रभावना का विवरण देते हुए कहा कि तब क्षेत्र के समस्त जाट समुदाय ने आचार्य श्री का भव्य स्वागत किया था। उन्होने विश्व स्तर पर महत्ती धर्म प्रभावना की, उनका एक विशाल स्मृति ग्रंथ निकलना चाहिए। डा. रमेश चंद जैन- बिजनौर ने आचार्य श्री का सामाजिक व सांस्कृतिक योगदान बताते हुए कहा कि वे जाति-सम्प्रदाय और देश काल से भी परे सभी
विद्वानों का सम्मान करते थे।
संगोष्ठी का कुशलतापूर्वक संचालन करते हुए संयोजकद्वय डा. वीरसागर जैन ने कहा कि उनका कहना था कि सैनिक के हाथ से शस्त्र और वक्ता के हाथ से शास्त्र कभी नही छूटना चाहिए। आचार्य श्री सदा आगम के अनुसार बोलते थे। डा. अखिल जैन बंसल- जयपुर ने समन्वय वाणी के विद्यावदान विशेषांक का विमोचन कराते हुए कहा कि आचार्य श्री ने देश में ही नही, विश्व भर में ज्ञान का प्रचार- प्रसार किया। कुंद-कुंद  भारती के अध्यक्ष सतीश जैन -एससीजे और मंत्री
अनिल पारसदास जैन ने सभी विद्वानों को अंग वस्त्र और प्रशस्तिपत्र प्रदान कर सम्मानित किया और आभार व्यक्त किया।
प्रख्यात न्यूरोसर्जन डा. डी सी जैन, संघपति राजेंद्र जैन, सुश्री तानिया जैन, राकेश जैन गौतम मोटर्स, अजय जैन-माडल टाउन ने भी आ. श्री को विनयांजलि अर्पित की। आरंभ में जिन दर्शन व सामूहिक पूजन, चित्र अनावरण व पाद प्रक्षालन किया गया।
प्रस्तुतिः रमेश चंद्र जैन एडवोकेट, नवभारत टाइम्स नई दिल्ली

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