बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर व्यक्तित्व- कृत्तित्व राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी सफलतापूर्वक हुई संपन्न
आगम साधु के नेत्र हैं : आचार्य श्री वर्द्धमानसागर
आचार्यश्री बोले समाज को धर्म के लिए संगठित होना बहुत जरूरी है
संगोष्ठी आलेखों की पुस्तक का हुआ भव्य विमोचन
आचार्यश्री ने दिया समन्वय का सूत्र- हम अपनी छोड़ेगे नहीं और आपकी बिगाड़ेंगे नहीं।
टोंक। चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के आचार्य पद प्रतिष्ठापना शताब्दी वर्ष के अवसर पर बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर व्यक्तित्व- कृत्तित्व राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी का आयोजन वात्सल्य वारिधि पंचम पट्टाचार्य वर्द्धमानसागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य व डॉ. सुनील जैन संचय ललितपुर के संयोजकत्व में जैन नसिया, भगवान महावीर मार्ग, टोंक , राजस्थान में दिनांक 23 व 24 अगस्त 2025 को वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमानसागर वर्षायोग समिति एवं सकल दिगम्बर जैन समाज टोंक के तत्वावधान में सफलतापूर्वक संपन्न हुई। विद्वत् संगोष्ठी में देश के मूर्धन्य मनीषी विद्वानों ने अपने आलेखों के माध्यम से बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के अवदान को रेखांकित किया।
23 अगस्त को प्रातः 8 बजे से उदघाटन सत्र पुण्यार्जक परिवार द्वारा ध्वजारोहण व मंगल कलश की स्थापना के साथ शुरू हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत- अध्यक्ष अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्रि-परिषद ने की। संचालन डॉ. सुनील संचय ललितपुर ने किया। इस सत्र में प्रोफेसर फूलचन्द्र प्रेमी वाराणसी, डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन भारती बुरहानपुर, डॉ. अनेकांत जैन दिल्ली ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। दूसरा सत्र दोपहर में प्रोफेसर फूलचन्द्र प्रेमी वाराणसी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। संचालन डॉ. सोनल जैन दिल्ली ने किया। इस सत्र में प्रोफेसर जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर, प्रोफेसर नरेन्द्र कुमार जैन टीकमगढ़, प्रोफेसर नलिन के शास्त्री दिल्ली, प्रोफेसर जयकुमार उपाध्ये दिल्ली, पंडित विनोद कुमार जैन रजवांस, डॉ आनंद प्रकाश जैन कोलकाता, डॉ. ज्योतिबाबू जैन उदयपुर, डॉ. पंकज जैन इंदौर ने अपने आलेख प्रस्तुत किए।
24 अगस्त को प्रातः तृतीय सत्र प्रोफेसर जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। संचालन डॉ. पंकज जैन इंदौर ने किया। इस सत्र में डॉ. शीतलचंद्र जैन जयपुर , डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत, ब्र. जयकुमार निशान्त टीकमगढ़, डॉ. सोनल कुमार जैन दिल्ली ने अपने आलेख प्रस्तुत किए।
दोपहर में चतुर्थ सत्र डॉ. शीतलचंद्र जैन जयपुर की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। संचालन डॉ. आनंद प्रकाश जैन कोलकाता ने किया। इस सत्र में डॉ. सुनील जैन संचय ललितपुर, डॉ. आशीष जैन आचार्य सागर, डॉ. सुधीर जैन बारामती, डॉ. आशीष जैन (बम्होरी) दमोह ने अपने आलेख प्रस्तुत किए।
संगोष्ठी आलेखों की पुस्तक का हुआ भव्य विमोचन : इस मौके पर 24 अगस्त को चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के आचार्य पद प्रतिष्ठापना शताब्दी वर्ष के अवसर पर बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर व्यक्तित्व- कृत्तित्व राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी में विद्वानों द्वारा प्रस्तुत आलेखों की पुस्तिका का भव्य विमोचन संगोष्ठी में उपस्थित विद्वानों द्वारा किया गया। पुस्तक का संपादन डॉ. सुनील संचय ललितपुर ने किया है। पुस्तक की प्रथम प्रति आचार्यश्री के कर कमलों में भेंट की गई इसके बाद सभी को पुस्तक प्रदान की गई।
23 अगस्त को शाम को आचार्य श्री वर्द्धमानसागर जी महाराज के साथ विद्वानों की अंतरंग चर्चा हुई जिसमें अनेक बिंदुओं पर चर्चा हुई।
इस अवसर पर वात्सल्य वारिधि पंचमपट्टाचार्य श्री वर्द्धमानसागर जी महाराज ने कहा कि साधु के नेत्र आगम है, साधु को आगम अनुसार चलना चाहिए ।साधु का लक्षण परिग्रह रहित , कषाय रहित होकर स्वाध्याय प्रेमी होना चाहिए। सभी को समाज को जोड़ना चाहिए, यदि समाज जोड़ नहीं सकते तो तोड़ने का कार्य नहीं होना चाहिए। वर्तमान में समाज को संगठित होना बहुत जरूरी है। सभी को प्रेम ,वात्सल्य भाव रखकर समाज को संगठित करना चाहिए।
वर्तमान में व्याप्त अनेक विसंगतियों के लिए अपना समन्वय सूत्र बताते हुए कहा कि हम अपनी छोड़ेगे नहीं,और आपकी बिगाड़ेंगे नहीं। यह सूत्र हमने जीवन में 57 वर्षों के संयम जीवन में अपनाया है और शिष्यों को भी यही प्रेरणा देते हैं। उन्होंने विद्वानों से कहा कि अपनी ठेस बचाने के लिए आगम को ठेस नहीं लगना चाहिए।
प्राचीन आगम परंपरा में परिवर्तन, बदलाव करने से समाज में विवाद और विघटन होता है। साधु का हमेशा उदासीन भाव रहना चाहिए। ट्रस्ट मंदिर संपति का निजी उपभोग हानिप्रद हैं। उन्होंने कहा कि एकल विहार का मतलब अपनी प्रभावना करना है, इससे धर्म की प्रभावना नहीं होती है। साधु संघ सहित विहार करे, एकल विहार न करे।
आचार्यश्री ने कहा कि पहले मकान कच्चे होते थे लेकिन उनमें रहने वाले श्रावक पक्के होते थे लेकिन आज मकान पक्के हैं परंतु श्रावक कच्चे।
आचार्य श्री शांतिसागर जी श्रमण साधु परम्परा कुल के पितामह थे हैं और रहेंगे ।आचार्यश्रीआत्म विद्या के महाज्ञानी थे उनमें आत्मज्ञान बहुत था ,आत्मा ही सर्वश्रेष्ठ है, वह अनासक्ति के सर्वोच्च शिखर पर रहे। गृहस्थ अवस्था से वह अनासक्ति और निष्प्रही रहे, उनमें बचपन से वैराग्य और चारित्र था , वह अपने ज्ञान से सभी को वह स्वाध्याय की प्रेरणा देते थे। हम उनके जैसी तपस्या नहीं कर सकते किंतु समन्वय का गुण, संघ परंपरा अनुसार आज भी विद्यमान हैं।
इस अवसर पर मुनि श्री हितेंद्रसागर जी महाराज ने आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज को चारित्र चक्रवर्ती की उपाधि की उपादेयता के बारे में अपने ओजस्वी प्रवचनों में बताया। उन्होंने कहा कि बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी ने मुनिचर्या का पुनरूत्थान, चतुर्विध संघ की स्थापना, जिनालय संरक्षण, गृहीत मिथ्यात्व का त्याग, जैन मंदिर संकट निवारण आदि अनेक ऐतिहासिक कार्य किए। उन्होंने कहा कि विद्वानों में वह पावर है जिसके पावर से पूरे समाज को एक झंडे के तले ला सकते हैं।
विद्वानों का हुआ सम्मान : इस अवसर पर सभी विद्वानों का वात्सल्य वारिधि आचार्य वर्द्धमानसागर वर्षायोग समिति एवं सकल जैन समाज टोंक के पदाधिकारियों अध्यक्ष धर्मचंद जैन दाखिया, भागचंद जैन, संयोजक कमल आंडरा, अशोक झिराणा, राजेश जैन, अनिल कंटान, सुमित दाखिया, अमित दामुनिया, लोकेश जैन आदि ने प्रमाण पत्र, माला, तिलक, स्मृति चिन्ह, साहित्य, दुप्पट्टा आदि के द्वारा भव्य सम्मान किया।
इस मौके पर टोंक जिला प्रमुख श्रीमती सरोज बंसल प्रमुख रूप से उपस्थित रहीं। संगोष्ठी में स्थानीय विद्वान राजीव जैन शास्त्री, अनिल जैन शास्त्री, रजनीश शास्त्री लावां आदि भी उपस्थित रहे।
संगोष्ठी को सफल बनाने में स्थानीय प्रभारी सुमित दाखिया, अमित छमुनिया, अनिल कंटान, अंशुल आरटी, सुनील जैन आदि का उल्लेखनीय योगदान रहा।
इस मौके पर आचार्यश्री के संघ में सल्लेखनारत मुनि श्री चिन्मय सागर जी महाराज के दर्शन करने विद्वान पहुंचे और संवाद किया।
आचार्य पद प्रतिष्ठापना शताब्दी महोत्सव पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमानसागर जी की प्रेरणा से पूरे भारत में वर्ष मनाया जा रहा है उसी उपलक्ष्य में इस संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
– डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
9793821108
संयोजक विद्वत्संगोष्ठी