गुजरात के मुख्यमंत्री ने किया आचार्य महाप्रज्ञ के स्मृति-सिक्के का लोकार्पण
लाडनूं। (शरद जैन सुधांशु, लाडनूं) तेरापंथ धर्मसंघ में दसवें आचार्य महान दार्शिनिक-विचारक आचार्यश्री महाप्रज्ञ के 195वें जन्मदिन के अवसर पर भारत सरकार द्वारा जारी किए गए चांदी के 100 रूपए के सिक्के का लोकार्पण गुजरात के अहमदाबाद स्थित कोबा में आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में एवं रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के क्षेत्रीय अधिकारियों की उपस्थिति में मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल द्वारा किया गया। इस अवसर पर आचार्य महाप्रज्ञ के अवदानों का स्मरण किया गया और उन्हें अहिंसा प्रशिक्षण, जीवन विज्ञान, प्रेक्षाध्यान, अहिंसा यात्रा के प्रवर्तक बताते हुए विश्व की वर्तमान स्थिति में उनके विचारों को महत्वपूर्ण बताया गया। इस अवसर पर जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़, जैन विश्व भारत्ती के अध्यक्ष अमरचंद लुंकड़, सुनील सिंधी, भारतीय रिजर्व बैंक के रिजनल डायरेक्ट राजेश, जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष सुरेन्द्र चोरड़िया व दिव्या जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वी प्रमुखा विश्रुतविभा ने भी अपनें विचार व्यक्त किए।
साधु के पास कोई बैंक बैलेंस, जमीन आदि नहीं होते
इस अवसर पर आचार्यश्री महाश्रमण ने अपने उद्बोधन में आचार्य महाप्रज्ञ के योगदानों का वर्णन करते हुए उनके अवदानों से जनता को भी लाभान्वित होने की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही उन्होंने कहा कि अध्यात्म शास्त्र ‘अपरिग्रह’ की बात करता है। हालांकि, परिग्रह के बिना, विभिन्न पदार्थों के बिना जीवन को चलाना भी कठिन होता है। लेकिन त्याग और संयम की बात साधना के लिए की जाती है। साधु के लिए अपरिग्रह एक महाव्रत होता है। साधु अकिंचन होता है, उसके पास किसी भी प्रकार का परिग्रह नहीं होता। एक इंच जमीन, कोई बैंक बैलेंस साधु के पास नहीं होता, यह साधु की अपरिग्रह की साधना होती है। अपने धर्मोपकरण में भी साधु मोह नहीं करता। साधु का जीवन ऐसा ही होना चाहिए। साधु ही नहीं आम आदमी को भी अपने जीवन में मोह-ममता को कम करने का प्रयास करना चाहिए। जहां तक हो सके परिग्रह का अल्प करने का प्रयास करें, तो गृहस्थ जीवन में अकिंचनता का विकास हो सकता है। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल ने इस दौरान आचार्यश्री महाश्रमण से मंगल आशीर्वाद भी प्राप्त किया। कार्यक्रम का संचालन जैन विश्व भारती के मंत्री सलिल लोढ़ा ने किया।
साधु के पास कोई बैंक बैलेंस, जमीन आदि नहीं होते
इस अवसर पर आचार्यश्री महाश्रमण ने अपने उद्बोधन में आचार्य महाप्रज्ञ के योगदानों का वर्णन करते हुए उनके अवदानों से जनता को भी लाभान्वित होने की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही उन्होंने कहा कि अध्यात्म शास्त्र ‘अपरिग्रह’ की बात करता है। हालांकि, परिग्रह के बिना, विभिन्न पदार्थों के बिना जीवन को चलाना भी कठिन होता है। लेकिन त्याग और संयम की बात साधना के लिए की जाती है। साधु के लिए अपरिग्रह एक महाव्रत होता है। साधु अकिंचन होता है, उसके पास किसी भी प्रकार का परिग्रह नहीं होता। एक इंच जमीन, कोई बैंक बैलेंस साधु के पास नहीं होता, यह साधु की अपरिग्रह की साधना होती है। अपने धर्मोपकरण में भी साधु मोह नहीं करता। साधु का जीवन ऐसा ही होना चाहिए। साधु ही नहीं आम आदमी को भी अपने जीवन में मोह-ममता को कम करने का प्रयास करना चाहिए। जहां तक हो सके परिग्रह का अल्प करने का प्रयास करें, तो गृहस्थ जीवन में अकिंचनता का विकास हो सकता है। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल ने इस दौरान आचार्यश्री महाश्रमण से मंगल आशीर्वाद भी प्राप्त किया। कार्यक्रम का संचालन जैन विश्व भारती के मंत्री सलिल लोढ़ा ने किया।
– BY शरद जैन सुधांशु, लाडनूं