आचार्या: जिनशासनोन्नतिकराः

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– डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
जैनधर्म में पांच परमेष्ठियों का विशेष महत्त्व है । पांचों परमेष्ठियों में आचार्य तीसरे नंबर के परमेष्ठी हैं। जो पंचाचार का स्वयं पालन करते हैं और शिष्यों से करवाते हैं, संघ के नायक होते हैं और शिष्यों को दीक्षा एवं प्रायश्चित देते हैं वे आचार्य परमेष्ठी कहलाते हैं। आचार्य परमेष्ठी के 36 मूलगुण होते हैं। 12 तप, 10 धर्म, 5 आचार, 6 आवश्यक एवं 3 गुप्ति।  साधुओं को दीक्षा -शिक्षा दायक, उनके दोष निवारक तथा अन्य अनेक गुण विशिष्ट, संघ नायक साधु को आचार्य कहते हैं। वीतराग होने के कारण पंचपरमेष्ठी में उनका स्थान है।
आयारं पंचविहं चरदि चरावेदि जो णिरदिचारं। उवदिसदि य आयारं एसो आयारवं णाम।।
जो मुनि पाँच प्रकार के आचार निरतिचार स्वयं पालता है और इन पाँच आचारों में दूसरों को भी प्रवृत्त करता है तथा आचार का शिष्यों को भी उपदेश देता है उसे आचार्य कहते हैं।
जैन परंपरा में आचार्य और पट्टाचार्य का विशेष महत्व है ऐसे ही महत्वपूर्ण पद पर 18 फरवरी को डोंगरगढ़ में संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज का समाधिमरण होने के बाद उनका आचार्य पद उनके प्रथम शिष्य परम पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि समयसागर जी महाराज को 16 अप्रैल 2024 को सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर में विधि विधान के साथ सौंपा जा रहा है। यह भी संयोग है कि मुनि समयसागर महाराज आचार्यश्री के गृहस्थ जीवन के छोटे भाई हैं। मुनि श्री समयसागर जी महाराज छह भाई-बहनों में छठे नंबर पर के हैं। वर्तमान में वे 65 साल के हैं। आचार्यश्री का भी जन्म स्थल कर्नाटक का सदलगा है। मुनिश्री का जन्म 27 अक्टूबर 1958 को हुआ था। मुनिश्री ने ब्रह्मचर्य व्रत 2 मई 1975 को लिया था। 18 दिसंबर 1975 को उनकी छुल्लक दीक्षा हुई थी। 31 अक्टूबर 1978 को एलक दीक्षा नैनागिरी छतरपुर और मुनि दीक्षा 8 मार्च 1980 को जैन सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरी छतरपुर में हुई थी।
 आचार्यश्री  जैसी छवि और ज्येष्ठ श्रेष्ठ निर्यापक श्रमण व प्रथम शिष्य का गौरव प्राप्त करने वाले निर्यापक मुनि श्री समय सागर जी महाराज में झलकती है। उनकी आचार्य पद प्रतिष्ठा का समाचार सुनकर उनकी आगवानी करने पहुँचे सभी हजारों श्रद्धालुओं ने इतिहास बना दिया , यह आगवानी अब तक के सबसे पड़े और लंबे जलूस के इतिहास को लिखने में कायम हुई है। मुनि दीक्षा के 44 वर्ष बाद मुनि समयसागर जी महाराज आचार्य पद संभालने जा रहे हैं। कुंडलपुर में 16 अप्रैल को आचार्य पद महोत्सव होगा। इसके लिए समय सागर जी महाराज मंगलवार को दमोह के कुंडलपुर पहुंचे।
दमोह के कुंडलपुर में 16 अप्रैल को आयोजित होने जा रहे आचार्य पद महोत्सव में शामिल होने के लिए मुनि संघ कुंडलपुर पहुंच गए हैं। 480 किमी का विहार करते हुए आचार्य पद संभालने मुनि श्री समयसागर जी महाराज भी मंगलवार  9 अप्रैल को दोपहर कुंडलपुर पहुंच गए।  सैकड़ों बसें, हजारों चार पहिया वाहन इस अगुवानी में हिस्सा लेने पहुंचे हुए थे। मुनि संघ का जगह-जगह रंगोली सजाकर भक्तों द्वारा एवं कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी, कुंडलपुर महोत्सव समिति द्वारा पाद प्रक्षालन किया गया । कुंडलपुर की पावन धरा पर पहुंचते ही कुंडलपुर में पूर्व से विराजमान निर्यापक संघ, मुनि संघों एवं आर्यिका संघों ने निर्यापक मुनि समयसागर जी महाराज की भव्य अगवानी की भव्य मंगल मिलन हुआ। सभी निर्यापक मुनि श्री योगसागर जी, मुनि श्री नियमसागर जी ,मुनि सुधासागर जी,मुनि समतासागर जी,मुनि श्री प्रसादसागर जी, मुनि श्री अभयसागर जी, मुनि श्री संभवसागर जी, मुनि श्री वीरसागर जी ,मुनि श्री प्रमाणसागर जी, मुनि श्री प्रणम्यसागर जी सहित सभी पूज्य मुनिराज, आर्यिका माता सहित सभी शिष्यों का भव्य मंगल मिलन का दृश्य अद्वितीय था। बड़ी संख्या में ब्रह्मचारी भैया एवं दीदी भी अगवानी में शामिल थीं।
जानकारी के मुताबिक इस महोत्सव के लिए कुंडलपुर में  40000 वर्ग फीट का त्रिस्तरीय मंच होगा 12 फीट ऊंचा होगा, आचार्य श्री का आसन। कुंडलपुर परिसर में 2,50,000 वर्ग फीट में  लगभग 70,000 लोगों को बैठने का इंतजाम किया गया है और यहां पर 7 एकड़ जगह में पंडाल लगाया गया है।
निश्चित ही कुण्डलपुर में  16 अप्रैल को आचार्य पदारोहण का यह महोत्सव अपने आपमें एक ऐतिहासिक क्षण होंगे। पूज्य मुनि श्री समयसागर जी में संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रतिकृति नजर आती है। अब ‘आचार्या: जिनशासनोन्नतिकराः ‘ को वे  गौरवान्वित करने जा रहे हैं। उनके पावन चरणों में कोटिशः नमोस्तु!!

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