मुरैना (मनोज जैन नायक)
12 जून से गुरु तारा अस्त चल रहा था जो 06 जुलाई को पूर्व दिशा में उदय होगा। इस वजह से विवाह, नवीन गृह प्रवेश, देव प्रतिष्ठा आदि कार्यों के मुहूर्त नहीं थे। अब 06 जुलाई रविवार आषाढ़ शुक्ल एकादशी को ही भगवान विष्णु जी चार माह के लिए योग निंद्रा में चले जाने से शुभ कार्यों पर रोक रहेगी।
वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने बताया कि 06 जुलाई आषाढ़ शुक्ल एकादशी रविवार से 02 नवंबर कार्तिक शुक्ल एकादशी रविवार तक का समय हरिशयन काल कहलाता है। इस समय शुभ कार्य जैसे विवाह, नवीन गृह प्रवेश देव प्रतिष्ठा, विद्या आरंभ, यज्ञोपवीत, मुंडन जैसे कार्यों के मुहूर्त नहीं हैं । (इनमें सिंध, पंजाब, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश आदि क्षेत्रों में विशेष धर्म/ संप्रदाय को छोड़कर)
ये कार्य मुहूर्त सभी स्थानों पर रहेंगे :- सगाई, टीका, रोका, वाहन क्रय – विक्रय मशीनरी संयंत्र संचालन, व्यापार प्रारंभ, जीर्ण गृह प्रवेश, गृह आरंभ/ नींव, भूमि पूजन, नामकरण, अन्न प्रशासन आदि ये कार्यों के मुहूर्त सभी स्थानों पर रहेंगे।
इस के अलावा चातुर्मास काल में व्रत, पर्व त्यौहार मनाए जाएंगे।
चातुर्मास काल के दौरान प्रमुख व्रत ,पर्व एवं त्यौहार:- 10 जुलाई गुरु पूर्णिमा, 24 जुलाई श्रावण हरियाली अमावस्या, 09 अगस्त रक्षाबंधन, 15 अगस्त भारतीय स्वतंत्रता दिवस ,श्री कृष्ण एकादशी व्रत स्मार्त , 16 अगस्त श्री कृष्ण एकादशी व्रत वैष्णव, 26 अगस्त हरितालिका तृतीया, 27 अगस्त, श्री सिद्धि विनायक व्रत, 28 अगस्त ऋषि पंचमी, श्री दिगम्बर जैन दशलक्षण व्रत आरंभ, 31 अगस्त श्रीराधा अष्टमी, श्री महालक्ष्मी व्रत आरंभ, 02 सितंबर धूप दशमी जैन पर्व, 03 सितम्बर पद्माझूलनी एकादशी, 06 सितंबर अनंत चतुर्दशी (जैन दशलक्षण व्रत पूर्ण), 07 सितम्बर से 21 तक श्राद्ध पक्ष, 08 सितम्बर क्षमावाणी जैन पर्व, 22 सितम्बर से 01 अक्टूबर तक शारदीय नवरात्र प्रारंभ, 02 अक्टूबर विजयादशमी, शमी पूजा, अपराजिता पूजन, 06 अक्टूबर शरद पूर्णिमा, 10 अक्टूबर करवाचौथ, 18 अक्टूबर धनत्रयोदशी, श्री धनवंतरी जयंती, 20 अक्टूबर नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी, दीपावली महा लक्ष्मीपूजन, 21 अक्टूबर श्री भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव, 22 अक्टूबर गोवर्धन पूजा, अन्नकूट, जैन वीर निर्वाण संवत 2552 आरंभ, 23 अक्टूबर भाई दूज, 01 नवम्बर देवप्रबोधनी एकादशी स्मार्त, भीष्म पंचक व्रत आरंभ, 02 नवम्बर देव प्रबोधिनी एकादशी वैष्णव
इन चार महीनों में साधु जन एक ही स्थान पर संयम, त्याग, तप से रह कर धर्म साधना करते हैं।