॰ पहली बार दिल्ली में 100 संत एक ही मंच पर
॰ संतवाद-पंथवाद को मिटा, गूंजा जैन एकता का जयघोष
॰ थोड़े समय में बहुत शानदार तैयारी, प्राचीन श्री अग्रवाल दि. जैन पंचायत धन्यवाद की पात्र
॰ दो-दो अहिंसा रथों से हुई महती प्रभावना
शरद जैन ( चैनल महालक्ष्मी)
दिल्ली। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के न आने की सूचना ने पिछले तीन वर्षों से आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी के सान्निध्य व मार्ग दर्शन में चल रही व्यापक तैयारियों पर एकाएक स्थगन से जो विराम लगा, उसने जैन समाज को स्तब्ध कर दिया। कमेटी के संयोजक सत्य भूषण जैन जी ने समाज को विश्वास दिलाया कि कार्यक्रम निरस्त नहीं हुआ, केवल प्रधानमंत्री की अनुपलब्धता के कारण आगे तिथि बढ़ाई गई है। नई तिथि की सूचना शीघ्र दी जाएगी। पर 26 नवंबर की तिथि इस 2550वें निवाण महोत्सव के लिये पूरे देश में चर्चित हो गई थी और समाज को लंबे समय से इंतजार था। यह जानकारी जैसे ही आचार्य श्री सुनील सागरजी मुनिराज को मिली, उन्होंने यह संदेश दिया कि प्रधानमंत्री के कारण कार्यक्रम चाहे नई तिथि पर हो, पर 26 को तो महोत्सव होना ही चाहिए, चाहे स्थल बदल जाये। कार्यान्वयन शुरू हुआ प्राचीन अग्रवाल श्री दिगंबर जैन पंचायत, धर्मपुरा दिल्ली ने बीड़ा उठाया और आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी एक छोटे से ब्रेक के बाद, फिर लग गये इस नई योजना में, और उसको कितना बखूबी कार्यान्वयन किया, वो रविवार सुबह 26 नवंबर को लाल मंदिर और लालकिले के बीच सड़क पर 100 से ज्यादा संतों के अद्भुत मिलन से ही स्पष्ट दिख गया। उससे दो दिन पूर्व उनका 21 वर्षों बाद गुरु भाई आचार्य श्री विशुद्ध सागरजी से मिलन भी अभूतपूर्व रहा जब कृष्णानगर क्षेत्र में दूर-दूर तक सिर ही सिर दिख रहे थे। तब आचार्य श्री विशुद्ध सागरजी ने स्वयं विहार करते हुए सान्ध्य महालक्ष्मी से कहा कि दिल्ली वालों की भक्ति तो अभूतपूर्व है।
रविवार को आसमान में हल्के बादलों की चादर थी, वहीं प्रदूषण भी अपने रंग दिखा रहा था। पर संतों की ऊर्जा व तेज ने वातावरण को ओजस्वी बना दिया। अपने अनुभव व कर्मठ कार्यशैली के अनुसार आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी ने मंच को संभाला व सीमित समय में असीमित प्रभावना का जीवंत संदेश दिया। हां, अनेक संतों के उद्बोधन समयाभाव के कारण नहीं हो पाये, पर प्रयास यही रहा कि जितनी समय सीमा से मिले, वो अनंत आनंद दे और शायद यही कारण था कि जो लोग प्रात: 8 बजे पहुचं गये थे, डेढ़ बजे भी उठे नहीं। जो कारवां आया, वो जुड़ता ही गया। और बिना किसी राजनेता के किया गया यह कार्यक्रम निश्चित ही 2550वां महामहोत्सव का शुभारंभ था। स्पष्ट संकेत दे दिया कि इस महामहोत्सव की श्रेष्ठता व गरिमा तप त्याग के श्रेष्ठी दिगंबर संतों से ही होती है, न कि राजनेताओं से।
अभूतपूर्व, सफलतम, अद्वितीय, अनुपम रहा यह तीर्थंकर महावीर स्वामी के 2550वें निर्वाण महोत्सव वर्ष का यह शुभारंभ, इस कार्यक्रम ने समाज की एकता का जहां शंखनाद किया, वहीं संतवाद-पंथवाद के काले बादलों का वैसे ही शमन किया जैसे कार्यक्रम में सूरज ने अपनी खिलती धूप से सबमें ऊर्जा का संचार किया। किसी ने कहा है कि शुरूआत अच्छी हो तो सफलता कदम चूमते देर नहीं लगती। इस प्रभावना में जैनत्व की पहचान में नये आयाम पेश किये। हर संत ने सीमित शब्दों में समय की मर्यादा रखते हुए श्रावक-श्राविकाओं में चिर प्रतीक्षित ज्ञान सागर के अमृत का रसोस्वादन कराया।
दमन छोटे का नहीं मन का इन्द्रियों का दमन करो
महोत्सव के अंत में, पर सबसे ओजस्वी तेज से आचार्य श्री विशुद्ध सागरजी ने उद्बोधन में अपने चिरपरिचित अंदाज में कहा – भगवान महावीर स्वामी ने सारे विश्व को जो सिद्धांत दिये, वे लालकिले पर गुंजायमान हो रहे हैं। आज भगवान स्वामी नहीं, पर उनके प्रतिनिधि आपके पास हैं। भगवान महावीर स्वामी का जन्म विश्व कल्याण के लिये हुआ, उनमें जैन-जैनत्तर सभी आते हैं। किसी ने मानव, किसी ने पशु सेवा का पाठ पढ़ाया, लेकिन भगवान महावीर स्वामी ने प्राणी मात्र की सेवा का पठा पढ़ाया। भगवान महावीर ने कहा वनस्पति, तिर्यचों, मनुष्यों सभी में शुद्धात्मा है। घर के मुखिया के समाप्त होने पर आप बचचे को पगड़ी बांधते हो। वह समझ जाता है कि अब वह अपने लिये नहीं, कुटुंब के लिये जिऊंगा। उसी तरह भगवान आदिनाथ से भगवान महावीर की परंपरा में दिगंबर मुद्रा के साथ हाथ में पिच्छी-कमंडल आते ही हमें समझ आता है कि हमें तीर्थंकर महावीर के मार्ग पर चलना है। मित्र, आज यह गूंज पूरे विश्व में जाने वाली है कि दिल्ली में लालमंदिर के सामने लालकिले पर दिगंबरों का समूह बैठा है।
देश का निर्माण 80 साल वालों से नहीं, एक साल वाले बच्चों से होगा। 80 साल वाले तो निर्वाण की साधना करें और एक साल के बच्चे राष्ट्र के निर्माण की साधना करें। श्रमण धर्म सनातन है, आदि से महावीर तो जैन धर्म के प्रोक्ता हैं। वैसे तो कहते हैं परमाणु की खोज कर ली, आज तो बच्चा भी जानता है। परमाणु तो दुनिया ने पहचान लिये, अब भाव परमाणु को पहचानिए। उन्होंने कहा कि दया के बिना मोक्ष के मार्ग का प्रारंभ नहीं होगा और दया ही करते रहें तो मोक्ष प्राप्त नहीं होगा। दमन छोटे का नहीं मन का इन्द्रियों का दमन करो।
आचार्य श्री सुनील सागरजी संघस्थ आर्यिका श्री सुस्वर माताजी ने सुंदर गीत गाया –
आया महानिर्वाणोत्सव,
छाया है हर्ष अपार।
अहिंसा रथ से करे
घर-घर मंगलाचार।।
तत्पश्चात् भगवान महावीर स्वामी के चित्र का अनवारण न्यू रोहतक रोड के महामंत्री श्री ऋषभ जैन, अल्पसंख्यक आयोग के मंत्री श्री धन कुमार गुंडे एवं श्री जयभगवान गोयल ने किया। आचार्य श्री कुंद कुंद देव के चित्र का अनावरण श्री राजेश जैन ने किया। द्वारका महिला मंडल ने वीर, अतिवीर, महावीर सन्मति वीरम्, वर्द्धमान प्रभु को करूं वंदनम् भजन पर सुंदर भक्ति नृत्य प्रस्तुत किया। दीप प्रज्ज्वलन का सौभाग्य श्री प्रमोद जैन मॉडल टाउन वर्द्धमान ग्रुप, डॉ. श्रेयांस जैन बड़ौत एवं श्री अनिल जैन कनाडा ने किया। आचार्य श्री विशुद्ध सागरजी संघस्थ श्री यशोधर मुनि ने एक अक्षरीय मंगलाचरण बहुत ही आध्यात्मिक रूप में किया।
दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है – अहिंसा – संयम – तप
आदिसागर परंपरा के विशाल सूर्य बनकर उभरे आचार्य श्री सुनील सागरजी ने कहा –
प्यास अधिक हो, नीर की याद आती है
मझधार हो, तो पीर की याद आती है
वैमनस्य के माहौल में, तीर्थंकर महावीर की याद आती है।
भगवान महावीर दुनिया में ऐसे इकलौते महापुरुष हुए जिन्होंने एक इन्द्रीय जीवों, पेड़-पौधों पर अत्याचार को निषेध किया। विश्व की सभी समस्याओें का समाधान भगवान महावीर की वाणी में है। इंसान को जीना है तो परस्परोग्रहो जीवानाम् के रास्ते ही चलना होगा। आप लोगों का उत्साह बताता है कि 24 तीर्थंकरों की विशाल परंपरा और वरिष्ठतम् तीन परंपराओं – आचार्य श्री शांतिसागरजी (दक्षिण), (छाणी) और आदिसागर अंकलीकर का यहां संगम है। यह हमारा वर्द्धमान परिवार है। पूरा परिवार भगवान महावीर की 2550वीं मंगल बेला पर उपस्थित है। हम उन वटवृक्षों की छाया में पल रहे हैं और मोक्ष मार्ग पर बढ़ रहे हैं। आप सबका सौभाग्य है कि आज इंसान के चोले में आप भगवान महावीर की छत्रछाया में बैठे हैं। इस घनी छाया में आकर जो बैठता है, उसे जन्म-जन्म की शीतलता प्राप्त हो जाती है। पीछे लालकिला, सामने लालमंदिर है, हमारे दोनों बाजुओं महावीर के लाल हैं। निर्वाणोत्सव मना रहे हैं, यह जिनशासन का भाल है, इतने धर्मात्मा जुड़े, यही तो कमाल है।
वरिष्ठ श्रावकों ने कहा कि देश के मुखिया कार्यक्रम के लिये उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं, तो एक कार्यक्रम इस तारीख को कर लेना चाहिए। जितना उत्साह आज श्रावकों में, उससे ज्यादा उत्साह संतों में है। भगवान महावीर कहते हैं जगत में सभी जीव सक्षम हैं, किसी को कम नहीं आंकना। प्रवचन के साथ आचरण भी जरूरी है। हमारी जुबां, नहीं आचरण बोलना चाहिये। आज जागना जरूरी है, बाहर की आंख से सूरज और भीतर की आंख खुलती है तो शुद्धात्मा दिखती है। एक 26/11 ने आतंकवाद मचाया था, तो एक 26/11 ने देश में अनेकांतवाद रचाया है।
अनेकांतवाद सबको आगे बढ़ने की शिक्षा देता है। आप अपने छोरे-छोरियों को समझायें, शील ऊपर है, और जैन धर्म सबसे ऊपर, इसे खो मत देना। लालकिले के मैदान से जरूर कहेंगे, आप चाहते हैं भगवान महावीर का मंगल ध्वज आगे बढ़ता रहे, तो आपके परिवार में भी योग्य सदस्य होना चाहिये। परिवार को ठीक से बनाईये। अच्छे लोग दुनिया में ज्यादा आयें, ताकि अधर्म मिट सके।
प्रत्येक श्रावक-श्राविका को वीर निर्वाण संवत् का उपयोग करना चाहिये, इस धारा को आगे बढ़ायें। 2550वें निर्वाणोत्सव वर्ष को पूरे देश में धूमधाम – भक्तिभाव से मनायें, प्राकृत भाषा का प्रयोग कीजिये। देश की प्राचीनतम लिपि ब्राह्मी का भी उपयोग कीजिए। जब भी जनगणना हो, तो धर्म में जैन धर्म लिखिये। अपने गोत्र-उपनाम के आगे जैन भी लिखें। जनगणना में जैन जरूर लिखें। भाषा में हिंदी के साथ प्राकृत भी लिखें। जी-20 में प्रधानमंत्री ने प्राचीन शिलालेख पर प्राकृत का उल्लेख किया। हमारे तीर्थ, इतिहास, पुरानी सभ्याताएं न मिट जाए, इसलिये कहीं भी तीर्थों पर अतिक्रमण होता है तो हमें आवाज उठानी चाहिए।
भारत शब्द का उपयोग नेशनल ही नहीं, इंटरनेशनल लेवल पर हुआ। भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश भारत का नाम पड़ा। देश की संस्कृति जानने वाले, नीति धारक, ईमानदारी से कार्य करें। श्रावक भी ऐसा करें कि जैन संस्कृति को किसी प्रकार का आरोप न लगे। संकल्प लेकर जाइये, हमारे परिवार, संस्कृति पर किसी प्रकार का कलंक नहीं लगने देंगे। भगवान महावीर ने कहा दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है – अहिंसा – संयम – तप। यह शंखनाद हुआ है, घंटियां बज रही हैं, इस वर्ष में बहुत सारे कार्यक्रम आएंगे।
समाज ढाई करोड़ पौधे लगाये
आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी ने महामहोत्सव का कुशल संचालन करते हुए कहा कि भगवान महावीर स्वामी के कारण ही हम इतने अहिंसक और सभ्य, आदर्श समाज हैं। हमने आज तक ऐसे आंदोलन नहीं किये कि किसी व्यक्ति, राष्ट्र या समाज को नुकसान पहुंचाया हो। तुम भी जियो, हमें भी जीने दो – ऐसा भगवान महावीर कहते हैं। दुनिया के सामने दो ही विकल्प हैं – एक महाविनाश, दूसरा महावीर महानिर्वाण। विश्व की समस्याओं का समाधान भ. महावीर के पांच मूलभूत सिद्धांतों में समाहित है। उन्हें से विश्व में शांति हो सकती है। भ. महावीर को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करनी है तो जैन और जैनत्तर समाज ढाई करोड़ पौधे लगाये। घर-घर वाटिका, अहिंसा वाटिका का उद्घोष कीजिए और इसके अंतर्गत समाज को ढाई करोड़ पौधे लगाकर धरती को स्वर्ग बनाना है। आप घर-घर में पौधे, फूल लगाकर वाटिका बनाइये और उसका फोटो खींचकर सरकार की वेबसाइट पर लोड करें। पेड़ हमें आक्सीजन देते हैं और हम उन्हें कार्बनडाइआक्साइड। 200 देशों के संयुक्त राष्ट्र के अध्यक्ष ने भी कहा है कि भगवान महावीर के सिद्धांतों से ही विश्व में शांति की स्थापना हो सकती है। भगवान महावीर ही भारत को विश्व गुरु बना सकता है। हमें भगवान महावीर के संदेशों को जन-जन के मन-मन तक पहुंचाना है। सोशल मीडिया पर महावीर वाणी, शास्त्रों में लिखे भगवान महावीर के स्त्रोतों को अनेक भाषाओं में अनुवाद कर जन-जन में फैलायें। हम आचार्य तो प्रस्तोता हैं, वाणी तो भगवान महावीर की है। हम इस 2550वें निर्वाणोत्सव वर्ष में अपने नाम को अलग कर भगवान महावीर को रखो टॉप, अपने नाम पर लगाओ फुलस्टॉप, भगवान महावीर के सिद्धांतों को रखना है टॉप। वर्षों के पुण्यों से हमें महावीर स्वामी का जिनशासन, उनके संतान दिगंबर संतों के हमें दर्शन हो रहे हैं। इस युग में सौभाग्य हुआ कि निर्ग्रन्थ मुनियों के दर्शन हो रहे हैं।
आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी ने कहा कि दिल्ली भोग भूमि नहीं, धर्म भूमि, पुण्य भूमि हैं, जहां 2550वां निर्वाणोत्सव का शंखनाद होता है। ऐसी दिल्ली में महाकुंभ जुटता है। गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी को भी आज याद करते हैं, जिनकी सोच-बोध अबूझ है, उनकी सोने की मूर्ति भी बनाकर बैठा दी जाए, तो भी जैन समाज उनका ऋण नहीं चुका सकता। यह महावीर स्वामी का कार्यक्रम है, अब हमें राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम करना है, उसके लिये पंचवर्षीय योजना लेकर चला करें। आचार्य विद्यानंद जी की प्रेरणा से यह सौभाग्य प्राप्त होगा। मुझे गर्व है कि मैं दो – दो परंपराओं शांतिसागरजी – आदिसागरजी परंपरा से हूं।
आचार्य श्री विशुद्ध सागरजी के व्यक्तित्व का वर्णन प्रज्ञ सागरजी महाराजन ने कुछ इस तरह से किया – जिनके चेहरे में महावीर का चेहरा झलकता है, सौम्य, वात्सल्य मुद्रा, दया, करुणा निधान, वर्तमान में वर्धमान सम चर्या, आनंद का सरोवर झलकता है, छोटी सी मुस्कान भी अनंत कर्मों की निर्जरा कर देती है। एक नजर किसी बालक पर पड़ जाये को निर्ग्रंथ बन जाता है, प्यार से हाथ पकड़ लें, तो वह सिद्ध बन जाए। मुझे गर्व है मैं इनका छोटा भाई हूं, इनके सामने दीक्षा हुई मुझे गर्व है इनके और मेरे गुरु आचार्य विराग सागरजी हैं, गर्व है ऐसे श्रावकों पर, गर्व है लालमंदिर कमेटी पर जो विशुद्ध सागर को यहां लेकर आई। आज तो नाचने, गाने, रोने का मन कर रहा है। आज रोम-रोम, आंखें, चेहरा, दिल दिमाग बोल रहा है – जय विशुद्ध सागर।
महावीर का संदेश जन-जन के मन-मन में जाएं
आचार्य श्री अनेकांत सागरजी ने कहा परमात्मा के प्रति दृढ़ श्रद्धान और महात्माओं के प्रति असीम अनंत श्रद्धान ही मुमुक्षयों का मोक्ष मार्ग है। अरिहन्त भगवान की शरण, वीतराग संतों के चरण, दिल-दिमाग में विराजमान हो जाते हैं, तो भगवान महावीर के 2550वें निर्वाण महोत्सव मनाने वाले जीव के मन में परमानन्द की अनुभूति हो जाएगी। देव-शास्त्र-गुरु के प्रति संशय छोड़ दो, तीर्थों – धर्म का संरक्षण- सवंर्धन होगा। जीवंत संतों का आश्रय ले लो, तीर्थों का संरक्षण हो जाएगा, जिन धर्म की ध्वजा का संरक्षण हो जाएगा। जिन धर्म की ध्वजा को दिल्ली के लालकिले से सन् 1930 में, जो आचार्य श्री शांतिसागरजी ने लहराया, फिर 2500वां महोत्सव मनाया और आज प्रज्ञावान, सर्वनीतियों के ज्ञाता, धर्म नीति को जानने वाले प्रज्ञ सागरजी ने भगवान महावीर का संदेश जन-जन में जाए, मन-मन में जाएं, ये महत्वपूर्ण उपक्रम किया है। इस सफल बनाने के लिये विशुद्धि के सागर, आये हैं, जहां धर्म का अच्छा होगा, अतिवीर का शासन जयवंत होगा। प्राणियों के जीवन में सौभाग्य आएगा ही। निर्भय हो जाएगा तो सुरत्न स्वमेव आ ही जाता है। निर्ग्रन्थ संत ही हमारे प्राण और वीर भगवान ही हमारे प्राणप्रिय हों। जैन धर्म का अस्तित्व और वर्चस्व इस भारत में होना ही चाहिये, क्योंकि दुनिया में जितने भी सम्मेलन होते हैं, वह अहिंसा के संदेश से ही होते हैं। उन्होंने लाल मंदिर पंचायत की प्रशंसा करते हुए कहा कि यहां सदैव धर्म का चक्र चलता रहे, ऐसे हैं चक्रेश और पुनीत कार्यों के आयोजन पुनीत जैन इसी तरह करते रहें।
पंचपरमेष्ठी को भाने से पांच पाप से दूर हो जाओगे
आचार्य श्री सौभाग्य सागरजी ने इन शब्दों से अपना उद्बोधन दिया – साथ साधु का हो तो आकार दिखाई देता है
जहां पर संत मिलते हैं, वहां हर दिन त्यौहार दिखाई देता है।
उन्होंने कहा आचार्य श्री विद्यानंद जी ने जो परंपरा प्रारंभ की, उन्हीं के शिष्य ने आज उस परंपरा को आगे बढ़ाया है। दो संतों की प्रेरणा से देश में दो रथों का प्रवर्तन चल रहा है, जो भगवान महावीर के सिद्धांतों का प्रचार कर रहे हैं। ऐसे 25 रथ पूरे देश में चलने चाहिए। उन्होंने बताया कि महावीर में ही सभी धर्मों का सार है। ‘म’ में जो महादेव को मानते हैं वे महावीर को मानते हैं, ह- वी – विष्णु को मानने वाले एवं ‘र’ – राम -रहीम को मानने वाले। इस तरह सभी धर्म महावीर में समाहित हैं। उन्होंने कहा आज लालकिले पर इतने साधु-संतों को देख पा रहे हैं, यह दिगम्बरत्व का संदेश आज दुनिया में जा रहा है। 2550 में 2 और 5 अंक का महत्व उन्होंने कुछ इस तरह से बताया – 2 का मतलब राग-द्वेष इन दो चीजों को छोड़ दीजिए, 5 – पंचपरमेष्ठी को भाने से पांच पाप से दूर हो जाएंगे।
आज साधु जागा है,
श्रावक सोया पड़ा है
आचार्य श्री अतिवीरजी ने कहा आज 26 नवंबर का दिन अर्थात् 26.11, और आप सबको याद होगा कि इतिहास में भी एक 26.11 आई थी, जब मुंबई में आतंकवाद का अटैक हुआ था, और आज 26 नवंबर शांति के लिये आई है। 50 वर्ष पीछे जाएं तो यह वही लालकिला है, जहां से भगवान महावीर स्वामी के 2500वें निर्वाणोत्सव का शंखनाद हुआ था। साहू शांति प्रसाद जी के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया था, जिसका अध्यक्षा इंदिरा गांधी थी और उन्होंने संसद में अध्यक्षता करते हुए कहा कि वे भी जैन हैं, पूरा देश महावीर की मानता है। 2500वें महोत्सव में जब श्रावक आचार्य श्री देशभूषण महाराज से निवेदन करने पहुंचे, तो उन्होंने कहा मनाना तो तुम्हें हैं, हमें तो प्रवचन करने आना है, जहां बुलाओगे, आ जाएंगे। आज समय बदल गया है। साधु जागा है, श्रावक सोया पड़ा है। भगवान महावीर को, जुबां का नहीं, हृदय का विषय बनाओ। उन्होंने तीर्थंकर पार्श्वनाथ के 2900वें जन्म कल्याणक महोत्सव की जानकारी देते हुए कहा कि 07 जनवरी 2024 को लाल मंदिर के 432 साल के इतिहास में प्रथम बार मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ का 2900 कलश से महामस्तकाभिषेक किया जाएगा। साथ ही उन्होंने कहा लालमंदिरजी के इतिहास में अनेकों अतिशय चमत्कार हुए हैं। 7 जनवरी को ही इसे अतिशय क्षेत्र घोषित किया जाएगा तथा प्रत्येक अभिषेककर्ता को एक चांदी का कलश भेंट किया जाएगा।
वीर निर्वाण संवत् लिखें
आचार्य श्री निर्भय सागरजी ने कहा भगवान महावीर स्वामी के सिद्धांत पूर्णतया वैज्ञानिक हैं। आचार्य कुन्द कुन्द स्वामी ने एक सिद्धांत लिखा कि किसी पदार्थ को न बना सकते हैं, न मिटा सकते हैं, सिर्फ उसे बदला जा सकता है। यह मूल सिद्धांत भगवान महावीर स्वामी का ही था। उसी सिद्धांत की खोज कर आज के वैज्ञानिकों ने उसका नया नाम दिया। यह आज सिद्ध हो चुका है कि हम भगवान के दर्शन, अभिषेक करते हैं, तब आप अपने शरीर के सेल्स (उी’’२) में परिवर्तन ला सकते हैं। परिणामो को विशुद्ध करके जो भक्ति करेगा, वह भगवान बन सकता है। आज प्रत्येक जैन, व्यापारी को संकल्प लेना चाहिए कि वह भगवान महावीर के सिद्धांतों पर चलते हुये वीर निर्वाण संवत् लिखें। हमें चिंतन करना होगा कि जैन अधूरे नहीं, अभागे नहीं, पर अभी जागे नहीं।
आचार्य श्री सुरत्न सागरजी ने कहा कि आज जो शुभारंभ 108 संतों के सान्निध्य में हुआ है, तो पूरे वर्ष के कार्यक्रम कीर्ति को प्राप्त करेंगे। हमने महावीर को नहीं देखा, पर उनके रूप में यहां विराजमान संतों में, उनका रूप देख सकते हैं।
आचार्य श्री विभक्त सागरजी ने जहां एक मंच पर इतने साधु हो और उनके सान्निध्य में 2550वां महामहोत्सव मनाया जाये, ये कोई मेला नहीं, महासागर कहलाता है। इसी तरीके से प्रतिवर्ष भगवान महावीर का महोत्सव मनायें। भगवान महावीर की जब तक नहीं मानोगे, तब तक आप एक नहीं हो पाओगे। एक होकर ही आप ‘महावीर’ बन पाओगे।
उपाध्याय श्री विशोक सागरजी ने कहा भगवान महावीर के पांच सूत्रों – अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अनेकांतवाद, अचौर्य को हम अपनी चर्या में उतारे। भारत ही नहीं, पूरे विश्व में इन सिद्धांतों का प्रचार कर प्रभावना करें।
उपाध्याय शशांक सागरजी ने कहा भगवान महावीर के सिद्धांत आज भी जीवंत है, उसी का प्रमाण है कि इतने संत लालकिला पर उपिस्थत हैं। आचार्य श्री सुनील सागरजी के आज शंखनाद ने सबको एकता के सूत्र में पिरो दिया है। इंदिरा गांधी स्टेडियम से नहीं, तो लालकिला से उठाई है भगवान महावीर स्वामी के 2550वें निर्वाणोत्सव की आवाज, संत के वचन कभी खाली नहीं जाते हैं। सुनील सागरजी की कृपा से ये समोशरण यहां बन पाया है। ये बगीचा है भगवान महावीर का, खुशबू तो महकेगी ही।
स्वामी रविन्द्र कीर्ति जी ने गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का मंगल संदेश पढ़कर सुनाया जिसमें सभी आचार्यों, उपाध्यायों, मुनियों के चरणों में नमोस्तु तथा सभी आर्यिका माताओं को कोटिश: आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि आप सभी संपूर्ण विश्व में अहिंसा परमो धर्म: के संदेश को आकाश की ऊंचाइयों तक पहुंचायें। इस कार्यक्रम के आयोजक, कार्यकर्ताओं को बहुत-बहुत मंगल आशीर्वाद दिया। स्वामी श्री रविन्द्र कीर्ति जी ने कहा कि 2550वें भगवान महावीर निर्वाणोत्सव शुभारंभ पर एक ही मंच पर 12 आचार्य और 100 से अधिक संत का मौजूद होना, लालमंदिर के इतिहास में स्वर्णमयी अक्षरों में लिखा जाएगा। कवि कमलेश बसंत ने अपने जोशीले अंदाज में कहा कि दिगंबर संतों का यह महाकुंभ लालकिले की प्राचीर से इतिहास रचने जा रहा है।
मूडबिद्री के भट्टारक स्वामी जी ने अहिंसा परमो धर्म: के जयकारे के साथ कहा कि यह सौभाग्य है कि उत्तर भारत का केन्द्र दिल्ली में भगवान महावीर के संदेशों का प्रचार कर दिगंबर और श्वेताम्बर परंपरायें एक साथ पूरे वर्ष मनाएंगे। भगवान महावीर के संदेशों को अपनाकर ही विश्व में शांति का संचार हो सकता है।
भट्टारक श्री सौरभ सेन जी ने कहा भगवान महावीर चुतर्थ काल में थे, लेकिन उनकी परंपरा का पालन करने वाले आचार्य संघ आज यहां विद्यमान है।
गणिनी आर्यिका श्री चन्द्रमति माताजी के मंगलाचरण से ऐतिहासिक धर्मसभा का शुभारंभ हुआ। स्वामी रविन्द्रकीर्तिजी ने मंगलाष्टक के प्रथम श्लोक का वाचन कर ध्वजारोहण किया, जिसमें प्राचीन अग्रवाल दिगंबर जैन पंचायत के अध्यक्ष श्री चक्रेश जैन बिजली वाले, संपूर्ण पंचायत के साथ पुरानी दिल्ली के सभी 9-10 मंदिरों के मैनेजर लोग शामिल हुए। ‘लहर-लहर लहराये केसरिया झंडा जिनमत का’ संगीतमय लहरियों ने भगवान महावीर स्वामी 2550वें निर्वाण महामहोत्सव का एतिहासिक लालकिला मैदान से उद्घोष किया। भजन सम्राट रूपेश जैन ने महोत्सव का शंखनाद इन पंक्तियों से किया –
आया 2550वां वर्ष वीर निर्वाण का
शंखनाद हम करें अहिंसा और विश्व कल्याण का
लालकिले की प्राचीर से संतों का संदेश यही
तीर्थ सुरक्षा, जैन एकता, अपना हो उद्देश्य यही
हम जियो और जीने दो का मंत्र दोहराये
तो प्रेम परस्पर जगत में विश्व शांति को पाये।
शीघ्र ही आएगी स्थगित कार्यक्रम की तिथि
राष्ट्रीय रूप में मनाएगी सरकार
आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी ने इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में होने वाले स्थगित कार्यक्रम के बारे में बताया कि कुछ ही दिन में भगवान महावीर के 2550वें निर्वाण महामहोत्सव को राष्ट्रीय रूप में सरकार मनाएगी, जिसे सारी समाज सैकड़ों वर्षों तक निरंतर याद रखेगी। जब एक देश का राजा संतों के चरणों में जाकर नतमस्तक होता है, और उसे आशीर्वाद मिलता है तो निश्चित ही भारत का जो भविष्य है, वह बहुत सुंदर बन जाया करता है। हमारे पूज्य गुरुदेव विद्यासागरजी के चरणों में नतमस्तक होने वाले राजा अपने आप में ये बताते हैं कि हम कितने अहिंसक और साधु-संतों के प्रति कितना समर्पित भाव रखते हैं। इस देश में बरसों के बाद ऐसे राजा मिले हैं।
इस अवसर पर कर्इं ग्रंथों का विमोचन किया गया। पंचायत के अध्यक्ष चक्रेश जैन बिजली वाले एवं लालमंदिर मैनेजर पुनीत जैन ने सभी संतों को विनयांजलि अर्पित की। संतों के आगमन पर भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने संतों का आशीर्वाद प्रदान किया। महिला मंडल द्वारका ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। अंत में सभी संतों का पाद प्रक्षालन किया गया। डॉ. कमलेश जैन व विवेक जैन ने संचालन किया।
समारोह में सर्वश्री राजीव जैन (आईएएस), शरद कासलीवाल, सत्यभूषण जैन, पवन गोधा, पुनीत जैन- मैनेजर लाल मंदिर, अतुल जैन एडवोकेट, मनोज जैन- दरियागंज, प्रमोद जैन-लेजर, अनिल जैन- कमल मंदिर, डॉ. श्रेयांस कुमार जैन, रमेश जैन एडवोकेट नवभारत टाइम्स, डॉ. जीवन प्रकाश जैन, हेमचंद जैन, राकेश जैन- टुडे चाय, स्वेदश भूषण जैन, पीके जैन कागजी, जिनेंद्र जैन- कूचासेठ, अनिल जैन-कनाडा, प्रदुमन जैन धारूहेड़ा आदि अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।
अहिंसा और पावापुरी रथ
इस अवसर पर आचार्य श्री सुनील सागरजी एवं आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी की प्रेरणा से देश में जन-जन के बीच भगवान महावीर के सिद्धांतों का प्रचार कर रहे दो रथ – अहिंसा रथ एवं पावापुरी रथ विचरण कर रहे हैं। दोनों ही रथ लालकिला मैदान पर दर्शकों के लिये आकर्षण का केन्द्र बने हुए थे, वहीं स्याद्वाद युवा क्लब के सदस्यों द्वारा रथ में विराजमान भगवान महावीर की धवल विशाल पदमासन प्रतिमा का 1008 कलशों से अभिषेक किया गया। आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी ने इस महोत्सव का सारा श्रेय चक्रेश जैन को दिया और कहा कि उन्हीं के प्रयासों से 2500वें निर्वाणोत्सव का इतिहास आज 2550वें निर्वाणोत्सव में दोहराया गया है। लालमंदिर जी पूरे देश की शान है और जैनों की जान है।
मुनि सेवा समिति रोहिणी – पीतमपुरा ने 2550वें निर्वाण महोत्सव में दिल्ली के अनेक स्थानों से 84 बसें लाने की व्यवस्था की।