परम पूज्य आचार्य श्री आदिसागरजी ( अंकलीकर) महाराज के परंपरा के चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य श्री सुनील सागर जी गुरुदेव का 17 वां आचार्यपदारोहन दिवस संघीजी मंदिर सांगानेर में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ दिनांक 25 जनवरी को मनाया गया। प्रातः कालीन बेला में श्री जिनराज का पंचामृत अभिषेक हुआ। तत्पश्चात संत श्री सुधासागर बालिका छात्रावास की बालिकाओं ने आचार्य भगवान का ढोल बाजों के साथ मंगल प्रवेश कराया। 17 परिवारों ने 17 थालियों में पाद प्रक्षालन किया । संघीजी मंदिर का प्रांगण गुब्बारों और पताका वो से सजाया गया।
जगह-जगह रंगोली से मांडना बनाकर गुरुदेव का आचार्य पदारोहन दिवस मनाया गया। प्रत्येक जनमानस के मुख पर हर्ष,प्रसन्नता झलक रही थी। बड़े उत्साह के साथ 17 परिवारों गुरुदेव की दिव्य अष्ट द्रव्य द्वारा मंगल संगीतमय पूजन की ओर 17 जोडे इन्द्र इंद्रायणी यो द्वारा शास्त्रों को भेंट किए।आनंद की लहरें चारों ओर छा रही थी। कार्यक्रम के शुरुआत में छात्रावास की बालिकाओं ने के माध्यम से मंगलाचरण प्रस्तुत किया। आचार्य भगवान ने अपने उद्बोधन में कहा कि तपस्वी सम्राट सन्मतिसागर जी का अनंत उपकार है। जिन्होंने असंयम के संसार से संयम की राह पर लाया। कुंभकार कच्ची मिट्टी का घड़ा बनाता है ।मिट्टी में घड़ा बनने की क्षमता होती है । पर घड़ा वही बन पाता है जो कुशल कुंभकार होता है। गुरुदेव ने मिट्टी को घड़े का आकार दिया ।जीभ से नहीं जीवन से बोलने वाले गुरु मिले।
आर्यिका सम्पूर्णमति माताजी