साँसों के रुकने के पहले इच्छाओं का रूक जाना है उत्तम समाधि-आचार्य श्री 108 भद्रबाहु मुनिराज

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साँसों के रुकने के पहले इच्छाओं का रूक जाना है उत्तम समाधि-आचार्य श्री 108 भद्रबाहु मुनिराज

झूमरी तिलैया । श्री दिगम्बर जैन समाज के नेतृत्व में श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में परम पूज्य आचार्य श्री 108 भद्रबाहु सागर जी मुनिराज के सानिध्य में आचार्य श्री के गुरु समाधिस्थ आचार्य श्री 108 विपुल सागर जी महाराज का समाधि दिवस मनाया गया
जिसमे प्रातः देवाधिदेव 1008 महावीर भगवान की प्रतिमा का अभिषेक ओर गुरु मुख से बिशेष शांतिधारा पटना से आये अजित जैन और गया से आये कुशाग्र जैन अजमेरा को प्राप्त हुआ इसके पश्चात समाधिस्थ आचार्य श्री के फोटो के समक्ष दीप प्रज्वलित गया,पटना ओर अन्य जगह से आये भक्तो ने किया ।तत्पश्चात अष्ठ द्रब्यो से संगीतमय गुरु पूजा
सुबोध-आशा जैन गंगवाल के द्वारा कराया गया जिसमें समाज के सभी लोगो ने एक एक अर्घ गुरु चरणों मे समर्पित किया इस अवसर पर आचार्य श्री ने गुरु के साथ रहे पल को बताया कि गुरु का आशीष हमारे ऊपर हमेशा है आज से 3 वर्ष पूर्व अयोध्या में गुरु की समाधि हुई थी आगे बताया कि संसार में प्रतिपल सैकड़ों प्राणियों का जन्म मरण हो रहा है और बहुतायत प्राणी जन्म लेकर मात्रजीवन के निर्वाह तक ही सीमित रह जाते हैं, और जीवन की इहलीला विषय भोगों में ही समाप्त कर देते हैं। विरले ही प्राणी, मात्र निर्वाह तक सीमित न रहकर अपनी अनन्त शक्ति और योग्यता को पहचान कर जीवन निर्माण का महान् पुरुषार्थ करते हैं। वही महापुरूष निर्माण के माध्यम से निर्वाण को उपलब्ध होते हैं। गुरुदेव आचार्य विपुल सागर जी ने दीर्घकालीन अस्वस्थता के बाद भी कभी शरीर के उपचार का भाव नहीं किया। तभी जीवन की निर्मलता के साथ उत्तम मरण को प्राप्त हुये।इस कार्यक्रम में विशेष रूप से समाज के पदाधिकारी पुरूष, महिला और बाहर से आये भक्त उपस्थित रहे संध्या में समाज के प्रत्येक घर से एक एक दीपक लाकर समाधिस्थ गुरु के फोटो के समक्ष सभी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित किया।

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