“सत्य की राह पर भेड़ों की भीड़ नहीं मिलती” – अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी

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सत्य की राह पर भेड़ों की भीड़ नहीं मिलतीअंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी
औरंगाबाद(29 मई) अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज की उत्तराखण्ड के बद्रिनाथ से हरिद्वार से उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरपुर तक तरुण सागरम अहिंसा संस्कार पदयात्रा चल रही है आज विहार दरम्यान उपस्थित गुरु भक्तों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने कहा कि
हक की बात बोलने के लिए कलेजा चाहिए.. तलवे चाटने वाले के लिये, एक जीभ ही बहुत है..!
यह ज़िन्दगी एक अमानत है। सावधान रहिये! चित्त की चौकसी ही परम ज्योति को पाने का द्वार है। अभी तुम एक पत्थर हो। परमात्मा के घटते ही सब पत्थर प्रतिमाएं बन जाते हैं। तुम प्रतिमा बन सकते हो क्योंकि तुममे प्रभु बनने की प्रतिभा है।प्रभु बनना है तो मन को माजना होगा। केवल तन को माजना ही पर्याप्त नहीं है। तन को क्यों माजना? तन को माजना तो ऐसा ही है जैसे —
           कोयला धोया दूध से, निकला इतना सार। कोयला तो उजला नहीं, दूध गया बेकार।।
मन को माजो तो कोई बहादुरी होगी। मन को माज कर ही तो कोई वीर, अतिवीर और महावीर बन पाता है। सिकन्दर जैसे विश्व विजेता तो इस पृथ्वी पर बहुत हुए, लेकिन मन के किले पर फतह करने वाले महावीर तो कुछेक ही है। सिकन्दर “विश्व-विजेता” का प्रतीक है तो महावीर “आत्म-विजय” के प्रतीक है। सिकन्दर और महावीर में बस इतना ही अन्तर है कि एक विश्व विजेता है परन्तु स्वयं से हारा है। दूसरा आत्म विजेता है मगर विश्व का मसीहा है। जो जाग गया, वह महावीर बन गया और जो ना जाग पाया, सोये सोये जिया और सोये सोये ही मर गया, वह सिकन्दर बन गया। कहीं आप सिकन्दर तो नहीं है–?क्योंकि — सच्चाई के रास्ते पर चलने में ही फायदा है। क्योंकि — सत्य की राह पर भेड़ों की भीड़ नहीं मिलती…
दिनांक 31 में तक रहेगा संघ मुजफ्फरनगर नगर में !!!
नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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