गुवाहाटी : पांडु मे विराजित जिन शासन प्रभाविका आर्यिका द्वय 105 परीक्षाश्री एवं 105 प्रेक्षाश्री माताजी ने आज *संसार और सन्यास* पर चर्चा करते हुए कहा कि संसार और सन्यास जीवन को जीने की शैलियों के नाम है। जीते सभी है, लेकिन कुछ ऐसे जीते हैं कि जीवन को जान ही नहीं पाते और कुछ ऐसे जीते हैं कि जीवन में ही परम जीवन की झलक पकङ आ जाती है। मरते सभी हैं, लेकिन कुछ ऐसे मरते हैं कि मरकर अमृत को पा लेते हैं और कुछ ऐसे मरते हैं कि अमृत तो दूर, जीवन भी नष्ट कर डालते हैं। अगर जीवन में जीवन का सत्य पकङ में आ जाए तो उसका नाम है सन्यास। और अगर जीवन में जीवन का सत्य पकङ में न आय तो समझना-संसार।उन्होंने कहा- संसारी अभागा है, क्योंकि वह जीते तो चला जाता है लेकिन अपने में झांकता नहीं। वह जानता तो है कि वह जो जीवन जी रहा है, दुखदायी है, व्यर्थ है, मगर मानता नहीं। वह जीएगा तो जरूर, मगर पायेगा कुछ भी नहीं; वह दौङेगा तो बहुत, मगर पहुंचेगा कभी नहीं। उसके जीवन में बहुत भाग दौङ, बङी चिंता, बङा संघर्ष, बङी आपाधापी के सिवाय कुछ नहीं मिलता। मगर फिर भी वह भागा जा रहा है क्योंकि वह अभी जीवन में आशाओं को संजोये हुए हैं, लालच है- थोङा और थोङा और….., हताश नहीं हुआ है।
उन्होंने कहा कि जब तक वह पूर्ण हताश न हो जाए तब तक मंदिर के द्वार उसके लिए नहीं खुलते; जब तक इस संसार में उसकी सारी आशायें, इच्छायें टूट न जाए तब तक वह अटका ही रहता है- धर्म में प्रवेश नहीं कर पाता; अपने स्वरूप का बोध नहीं होता; अपने भूले घर की स्मृति नहीं होती। वह दौङा जाता है- अपनी कल्पनाओं में, आकांक्षाओं में, आशाओं में – और इसी भाग-दौङ का नाम है-संसार; और इस भाग-दौङ की व्यर्थता को जान लेने का नाम है-सन्यास।उन्होंने कहा- संसारी व्यक्तियों की जीवन यात्रा तो व्यर्थ है ही, मृत्यु की मंजिल भी व्यर्थ हो जाती है, क्योंकि वे परम जीवन से परिचित नहीं होते और अंततः ऐसे ही राख में विलीन हो जाते हैं। दूसरी ओर सन्यासी जीवन को जागकर जीता है; वह जीवन के अंधेरे में धर्म का दिया जला लेता है। वह जीवन को प्रगाढ़ता से जीता है। वह स्वेच्छा से मृत्यु में जाना पसन्द करता है। क्योंकि सन्यासी का हर क्षण धर्म और निर्भय का होता है। सन्यासी जीवन से परिचित रहता है, एक-एक क्षण का सम्यक् उपयोग करता है।_
आर्यिकाश्री ने अंत में कहा कि यह मनुष्य जीवन बहुत ही पुण्योदय से प्राप्त हुआ है, इसको ऐसे ही व्यर्थ मत जाने देना ।।