जैन परंपरा में अनेक पर्व ऐसे हैं जो आत्मशुद्धि, तप, आराधना और ज्ञान के जागरण से जुड़े हैं। इन्हीं में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है श्रुत पंचमी, जिसे ज्ञान पंचमी अथवा श्रुतपंचमी पर्व भी कहा जाता है। यह पर्व जेष्ठ शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है और विशेष रूप से जैन आगमों (शास्त्रों) की वंदना एवं उनकी शुद्धता की भावना से जुड़ा है। यह पर्व जैन समाज में शास्त्रों की आराधना के रूप में अत्यंत श्रद्धा व समर्पण से मनाया जाता है।
श्रीमत्केवलीभाषितं जिनशासनमुत्तमम्।
श्रुतराजं नमस्यामि सर्वदु:ख विनाशकम्॥
श्रुत पंचमी का ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्व :
जैन परंपरा में आगम को भगवान महावीर की द्वादशांगवाणी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। श्रुत परंपरा जैन -धर्म -दर्शन में ही नहीं वैदिक परंपरा में भी चरमोत्कर्ष पर रही है। इसी के फलस्वरूप वेद को श्रुति के नाम से संबोधित किया जाता रहा।
श्रुत पंचमी जैन धर्म का प्रमुख पर्व है।
पहले भगवान महावीर केवल उपदेश देते थे और उनके प्रमुख शिष्य (गणधर) उसे सभी को समझाते थे, क्योंकि तब महावीर की वाणी को लिखने की परंपरा नहीं थी। उसे सुनकर ही स्मरण किया जाता था इसीलिए उसका नाम ‘श्रुत’ था। एक कथा के अनुसार दो हजार वर्ष पहले जैन धर्म के एक प्रमुख संत धरसेनाचार्य को अचानक यह अनुभव हुआ की उनके द्वारा अर्जित जैन धर्म का ज्ञान केवल उनकी वाणी तक सीमित है। उन्होंने सोचा की शिष्यों की स्मरण शक्ति कम होने पर ज्ञान वाणी नहीं बचेगी। ऐसे में मेरे समाधि लेने से जैन धर्म का संपूर्ण ज्ञान खत्म हो जाएगा, तब धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत एवं भूतबलि की सहायता से “षटखण्डागम” की रचना की और उसे ज्येष्ठ शुक्ल की पंचमी को प्रस्तुत किया। देश की प्राचीन भाषा प्राकृत में लिखे इस शास्त्र में जैन धर्म से जुड़ी कई अहम जानकारियां हैं। इस ग्रंथ में जैन साहित्य, इतिहास, नियम आदि का वर्णन है जो किसी भी धर्म के लिए बेहद आवश्यक होते हैं।
भारत सरकार द्वारा प्राकृत भाषा शास्त्रीय भाषा घोषित : प्राकृत भाषा को हाल में भारत सरकार ने शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा-“हमारी सरकार भारत के समृद्ध इतिहास और संस्कृति का सम्मान करती है और क्षेत्रीय भाषाओं को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि कैबिनेट ने असमिया, बंगाली, मराठी, पाली और प्राकृत को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया है। ये सभी सुंदर भाषाएं हैं, जो हमारी जीवंत विविधता को दर्शाती हैं। सभी को बधाई।”
भारतीय संस्कृति का अक्षय भंडार है जैन साहित्य : जैन परंपरा का साहित्य भारतीय संस्कृति का अक्षय भंडार है । जैन आचार्यों ने ज्ञान -विज्ञान की विविध विधाओं पर विपुल मात्रा में स्व- परोपकार की भावना से साहित्य का सृजन किया। आज भी अनेक शास्त्र भंडारों में हस्तलिखित प्राचीन ग्रंथ विद्यमान हैं ।जिनकी सुरक्षा, प्रचार-प्रसार, संपादन, अनुवाद निरंतर हो रहा है। प्राचीनकाल में मंदिरों में देव प्रतिमाओं को विराजमान करने में जितना श्रावक पुण्य लाभ मानते थे उतना ही शास्त्रों को ग्रंथ भंडार में विराजमान करने का भी मानते थे । यह श्रुत पंचमी महापर्व हमें जागरण की प्रेरणा देता है कि हम अपनी जिनवाणी रूपी अमूल्य निधि की सुरक्षा हेतु सजग हों तथा ज्ञान के आयतनों को प्राणवान स्वरूप प्रदान करें।
पांडुलिपियां हमारी अमूल्य धरोहर : जैन प्राचीन पांडुलिपियों में हमारी सभ्यता आचार-विचार और अध्यात्म विकास की कहानी समाहित है । उस अमूल्य धरोहर को हमारे पूर्वजनों ने अनुकूल सामग्री एवं वैज्ञानिक साधनों के अभाव में रात-दिन खून पसीना एक करके हमें विरासत में दिया है। इस पर्व पर संकल्प लें कि पांडुलिपियों का सूचीकरण करके व्यवस्थित रखवाया जाय, लेमिनेशन करके अथवा माइक्रोफिल्म तैयार करवा कर सैकड़ों हजारों वर्षों तक के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है और अप्रकाशित पांडुलिपियों को प्रकाशित किया जाए । मां जिनवाणी को संरक्षित करने, उसका हम संरक्षण और संवर्द्धन करने के लिए आगे आएं।
परुसा सक्कअ बंधा पाउअ बंधोवि होउ सुउमारो।
पुरुसमहिलाणं जेत्तिअमिहन्तरं तेत्तिअमि माणं ।।
श्रुत पंचमी की पूजा-पद्धति:
इस दिन विशेष रूप से जिनवाणी (शास्त्र) का पूजन किया जाता है। जिनवाणी को पालकी में बिठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है। शास्त्र स्वाध्याय, सामायिक, प्रतिक्रमण और वाचन प्रमुख अनुष्ठान होते हैं।
श्रुत पंचमी और षट्खंडागम:
श्रुत पंचमी पर विशेष रूप से षट्खंडागम की पूजा की जाती है क्योंकि यह ग्रंथ जैन आगम परंपरा का मूल स्तंभ है। षट्खंडागम और कषायपाहुड़ (कसायपाहुड़) को जैन धर्म का आधार माना जाता है।
श्रुत पंचमी और प्राकृत भाषा दिवस: श्रुत पंचमी और प्राकृत भाषा दिवस, दोनों ही भारतीय ज्ञान परंपरा विशेषकर जैन संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये पर्व न केवल शास्त्रों और ज्ञान के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं, बल्कि संस्कृति, भाषा और परंपरा की महत्ता को भी उजागर करते हैं। जैन समुदाय विशेष रूप से इस दिन को प्राकृत भाषा की महानता और उसके साहित्यिक योगदान की स्मृति में मनाता है।
यह दिन लोगों को अपनी मूल भाषाओं और संस्कृति से जुड़ने का संदेश देता है।श्रुत पंचमी और प्राकृत भाषा दिवस एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं, क्योंकि श्रुत का स्वरूप ही प्राकृत में रचित ग्रंथों के रूप में प्रकट हुआ। प्राकृत भाषा ने धर्म, दर्शन, आचार, तप, और मोक्ष जैसे विषयों को जन-जन तक पहुँचाया।
संरक्षण और संवर्धन : आज के युग में जहाँ पारंपरिक भाषाएँ और ग्रंथ विलुप्त होने के कगार पर हैं, ऐसे में श्रुत पंचमी और प्राकृत दिवस हमें धार्मिक-सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा का संकल्प दिलाते हैं।
शिक्षा और शोध : विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में प्राकृत भाषा और जैन आगमों पर पुनः ध्यान केंद्रित हो रहा है। डिजिटलीकरण, अनुवाद, और शोध कार्यों के माध्यम से श्रुत और प्राकृत को पुनर्जीवित करने का प्रयास हो रहा है।
श्रुत पंचमी और प्राकृत भाषा दिवस केवल परंपरागत पर्व नहीं, बल्कि भारतीय बौद्धिक परंपरा के संरक्षण और संवर्धन का संदेश हैं। यह दिवस हमें स्मरण कराते हैं कि शब्दों में शक्ति होती है, और जब वे धर्म और ज्ञान के वाहक बनते हैं, तब वे मोक्षमार्ग के पथ प्रदर्शक बन जाते हैं।
श्रुत पंचमी का समकालीन संदर्भ में महत्व:
आज जब भौतिकता और तर्कप्रधान युग में धर्मग्रंथों से दूर जाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, ऐसे में श्रुत पंचमी हमें धार्मिक ज्ञान, संस्कृति और आध्यात्मिक मूल्यों की पुनः स्थापना की प्रेरणा देती है। यह पर्व इस बात की याद दिलाता है कि—ग्रंथ केवल अध्ययन की वस्तु नहीं, बल्कि आचरण की भी प्रेरणा हैं।
ज्ञान की रक्षा केवल पुस्तकों को सहेजने से ही नहीं, बल्कि उनके अनुशीलन, मनन और प्रसार से होती है।
समकालीन सन्दर्भ में प्रासंगिकता :
आज के सूचना और प्रौद्योगिकी युग में भी श्रुत ज्ञान का महत्व उतना ही है जितना प्राचीनकाल में। क्योंकि—शास्त्र हमारे संस्कारों के स्रोत हैं। शास्त्र आचरण का दर्पण हैं। शास्त्र आत्मा को जागृत करते हैं।
श्रुत पंचमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि ज्ञान, संस्कृति और परंपरा के सम्मान का उत्सव है। यह पर्व हमें स्मरण कराता है कि जितना महत्वपूर्ण मुनियों का तप है, उतना ही महत्वपूर्ण है शास्त्रों का संरक्षण। शास्त्रों के बिना धर्म का आचरण संभव नहीं, और धर्म के बिना आत्मकल्याण नहीं।
अतः श्रुत पंचमी पर संकल्प लें कि हम शास्त्रों का पठन-पाठन करेंगे, बच्चों को इससे जोड़ेंगे, और ज्ञान के इस अमूल्य निधि को पीढ़ियों तक पहुँचाएंगे। यही इस पर्व की सच्ची आराधना है।
जिनवाणीं नमस्यामि जीवदया-विवर्धिनीम्।
मोक्षमार्गप्रदायिनीं धर्मज्ञानविवर्धिनीम्॥
श्रुत पंचमी पर्व हमें प्रेरणा देता है कि हम शास्त्रों की पूजा केवल प्रतीकात्मक न करें, बल्कि उन्हें समझें, पढ़ें और जीवन में उतारें।
आइए, इस श्रुत पंचमी पर हम सब मिलकर ज्ञान, भाषा और संस्कृति की रक्षा का संकल्प लें, और प्राकृत भाषा को उसकी प्रतिष्ठा पुनः प्रदान करें।
-डॉ. सुनील जैन संचय
ज्ञान-कुसुम भवन
नेशनल कान्वेंट स्कूल के सामने, नई बस्ती, गांधी नगर, ललितपुर 284403 उत्तर प्रदेश
9793821108
Suneelsanchay@gmail. com
(आध्यत्मिक चिंतक व जैनदर्शन-प्राकृत भाषा के अध्येता )
(आध्यत्मिक चिंतक व जैनदर्शन-प्राकृत भाषा के अध्येता )