समय बदलता है, और समय के साथ मनुष्य भी।
यह परिवर्तन विकास की दिशा में हो तो शुभ होता है, परंतु जब जीवन की गति, उद्देश्य और संतुलन नष्ट हो जाए, तब चिंतन आवश्यक हो जाता है। आज की आधुनिक जीवनशैली ने सुविधा के क्षेत्र में जितनी प्रगति की है, संतुलन के क्षेत्र में उतनी ही गिरावट आई है।
वर्तमान युग में जीवन की गति अत्यधिक तीव्र हो गई है। तकनीकी प्रगति, वैश्विक संपर्क, और उपभोक्तावादी संस्कृति ने जीवन को पहले से अधिक सुविधाजनक तो बना दिया है, परंतु इसके साथ ही यह जीवन शैली अनेक मानसिक, शारीरिक और सामाजिक समस्याओं को जन्म दे रही है। आज का मनुष्य अधिक काम करता है, परंतु कम शांति प्राप्त करता है; अधिक जुड़ा रहता है, फिर भी अकेलापन अनुभव करता है। पहले लोग सूरज उगने के साथ उठते थे, अब मोबाइल अलार्म के बाद भी नहीं उठते। पहले भोजन खेत से आता था, अब फैक्ट्री से। पहले परिवार साथ बैठकर खाता था, अब हर सदस्य स्क्रीन के सामने अकेला।
इस आलेख में हम वर्तमान जीवन शैली की विशेषताओं, इसके प्रभावों और समाधान की दिशा में आवश्यक सोच पर चर्चा करेंगे।
जीवन शैली में परिवर्तन: पूर्व में जीवन प्राकृतिक चक्रों के अनुरूप चलता था। दिन का आरंभ सूर्योदय के साथ होता और रात्रि विश्राम में बीतती थी। परंतु आज की जीवनशैली कृत्रिम रोशनी, 24×7 कार्यसंस्कृति और इंटरनेट की दुनिया में डूबी हुई है। लोगों की दिनचर्या अनियमित हो गई है और संतुलन गायब हो चुका है।
तकनीकी विकास और उसका प्रभाव: मोबाइल, कंप्यूटर, इंटरनेट, सोशल मीडिया आदि ने जीवन को सुविधा से भर दिया है, लेकिन इनका अत्यधिक उपयोग चिंता, नींद की कमी, और सामाजिक अलगाव का कारण भी बनता जा रहा है। “वर्चुअल” दुनिया ने “वास्तविक” संबंधों को पीछे छोड़ दिया है।
भोजन और स्वास्थ्य की स्थिति: व्यस्त जीवन के कारण आज का मनुष्य जंक फूड, डिब्बाबंद और तैलीय खाद्य पदार्थों की ओर आकर्षित हो गया है। इसका परिणाम है—मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, और हृदय रोगों में वृद्धि। शारीरिक श्रम की कमी और मानसिक तनाव ने रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कम कर दिया है।
पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में बदलाव: भौतिकतावादी दृष्टिकोण के कारण परिवारों में संवाद घटा है। संयुक्त परिवारों की जगह एकल परिवारों ने ले ली है। बुज़ुर्ग उपेक्षा के शिकार हैं, और बच्चों का लालन-पालन तकनीकी माध्यमों से हो रहा है। “हम” की जगह “मैं” ने ले ली है।
मानसिक स्वास्थ्य और तनाव: असुरक्षा की भावना, प्रतिस्पर्धा, अपेक्षाओं का बोझ और सामाजिक दिखावे की प्रवृत्ति ने युवाओं में अवसाद, चिंता, और आत्महत्या जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म दिया है। मानसिक शांति दुर्लभ होती जा रही है।
समाधान की दिशा में सोच:
संतुलन आवश्यक है: जीवन में कार्य और विश्राम, परिवार और व्यक्तिगत लक्ष्य, तकनीक और प्रकृति के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।
योग और ध्यान का महत्व: योग, प्राणायाम और ध्यान के अभ्यास से मानसिक तनाव कम किया जा सकता है और जीवन में सकारात्मकता लाई जा सकती है।
प्राकृतिक जीवन की ओर लौटें: रासायनिक रहित भोजन, समय पर निद्रा, नियमित व्यायाम और प्राकृतिक परिवेश में रहना आवश्यक है।
संपर्क और संवाद बढ़ाएं: परिवार और समाज में संवाद को प्रोत्साहित करना, बुजुर्गों का सम्मान, और बच्चों के साथ समय बिताना जीवन को समृद्ध बनाता है।
डिजिटल डिटॉक्स करें : सप्ताह में एक दिन बिना मोबाइल, टीवी और लैपटॉप के बिताएँ।
साधनों के दास नहीं, स्वामी बनें: तकनीकी साधनों का उपयोग करें, परंतु उन पर निर्भर न हो जाएं। आत्मनियंत्रण आवश्यक है।
प्रेरक प्रसंग:
ऋषभदेव की जीवनशैली: प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने भोग से योग की ओर समाज को प्रवृत्त किया। उन्होंने 100 पुत्रों को संयम और संतुलन की शिक्षा दी। उनका जीवन सिखाता है कि भौतिक प्रगति का भी संतुलन आवश्यक है।
महात्मा गांधी का कथन: “साधन शुद्ध होंगे तो साध्य भी शुद्ध होगा।” गांधीजी का जीवन प्राकृतिक, आत्मनिर्भर और संतुलित जीवनशैली का उदाहरण है।
निष्कर्ष: प्रतिस्पर्धा, सोशल मीडिया तुलना और समय की कमी ने मन को अशांत कर दिया है। बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक तनाव, चिंता और अवसाद के शिकार हो रहे हैं। अत्यधिक बैठकर काम करने से मोटापा, पीठदर्द, हृदय रोग आम हैं। फास्ट फूड संस्कृति ने प्राकृतिक पोषण को नष्ट कर दिया है। तत्त्वार्थ सूत्र ग्रंथ में एक प्रमुख सूत्र है-“परस्परोपग्रहो जीवानाम्” , अर्थात जीवन का उद्देश्य है—एक-दूसरे की सहायता करना। लेकिन आज एकल परिवार और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा ने सामाजिक संपर्क और संवेदना को कम कर दिया है।
वर्तमान जीवन शैली ने जहाँ जीवन को सरल बनाया है, वहीं कई नई चुनौतियाँ भी खड़ी की हैं। यदि हम इन परिवर्तनों को समझकर जीवन में संतुलन, संयम और संवेदना का समावेश करें, तो आधुनिक जीवन भी एक सार्थक, शांत और सशक्त जीवन बन सकता है। सुख-सुविधाएँ हों, परंतु उसके साथ आत्म-संतोष और मानवता का भाव बना रहे — यही सच्ची आधुनिकता है। वर्तमान जीवनशैली को पूरी तरह त्यागना संभव नहीं, पर उसमें सुधार लाना आवश्यक है। तकनीक का उपयोग हो, पर जीवन पर अधिकार न हो। हम जितना संयमित, सजग और संवेदनशील बनें, उतना ही जीवन सरल, सुंदर और संतुलित होगा।
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