मानव को इंसान बनाने की ताकत भारतीय संस्कृति में है – मुनिश्री विलोकसागर

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श्रुत पंचमी पर्व पर निकाली गई भव्य जिनवाणी शोभायात्रा

मुरैना (मनोज जैन नायक) भारतीय संस्कृति में प्रत्येक प्राणी चाहता है कि मैं महावीर, राम और बुद्ध के सिद्धांतों को स्वीकार कर उन जैसा बन जाऊं । लेकिन आज तुमने पाश्चात्य सभ्यता को स्वीकार कर लिया है । विदेशी विचारों को मन मस्तिष्क में रख कर अपने पहनावे तक को विदेशियों की तरह कर लिया है । आज तुम्हें स्वदेशी वस्तुएं, स्वदेशी विचार खटकने लगे हैं और विदेशी वस्तुएं, विदेशी विचार अच्छे लगने लगे हैं। विदेशी सभ्यता, विदेशी विचारों की वजह से आज तुम मानसिक रूप से गुलाम हो चुके हो । आज तुम्हारे देश का मुखिया भी स्वदेशी अपनाने की अपील कर रहा है । हमें अपने देश, धर्म और समाज के लिए स्वदेशी को अपनाना होगा । यदि तुम समय रहते नहीं जागे तो तुम्हारा आने वाला समय अंधकारमय हो जाएगा । यदि स्वदेशी नहीं अपनाएंगे, अपनी संस्कृति को नहीं अपनाएंगे तो तुम्हारी बहुत बुरी हालत हो जाएगी । विदेशी सभ्यता और संस्कृति अपनाने के कारण ही तुम आचरण विहीन होते जा रहे हो । इसी लिए हमारे पूर्व आचार्यों ने कहा है कि मानव मात्र को इंसान बनाने की ताकत केवल भारतीय संस्कृति में ही निहित है । इसलिए हमें अपने शास्त्रों, वेद पुराणों का आवश्यक रूप से अध्ययन करना चाहिए और उनके सिद्धांतों को अपने जीवन में अंगीकार कर संस्कारित, सुखमय जीवन जीते हुए, मानव कल्याण की भावना भाते हुए जीवन निर्वहन करना चाहिए । उक्त उद्गार दिगम्बर जैन मुनिश्री विलोकसागर महाराज ने श्रुत पंचमी महोत्सव के पर्व पर बड़े जैन मंदिर में धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
श्रुत पंचमी महोत्सव के पावन पर्व पर भव्य जिनवाणी शोभायात्रा निकाली गई । जैन ग्रंथों एवं मां जिनवाणी को चांदी की पालकी में विराजमान कर चल समारोह निकाला गया । बड़े जैन मंदिर जी से भव्य शोभायात्रा प्रारंभ होकर गोपीनाथ की पुलिया, पीपल वाली माता, रुई की मंडी, सदर बाजार, हनुमान चौराहा, सराफा बाजार, लोहिया बाजार होती हुई बड़े जैन मंदिर पहुंची ।
शोभा यात्रा में जैन मुनिराज विलोक सागर एवं मुनिश्री विबोधसागर महाराज, क्षुल्लिका अक्षतमति माताजी के साथ पुरुष वर्ग सफेद, महिलाएं केशरिया एवं बालिका व महिला मंडल अपने विशेष परिधान में जयघोष करती हुई चल रही थी ।
मां जिनवाणी की आराधना के महापर्व पर बड़े जैन मंदिर जी में सामूहिक रूप से जिनेंद्र प्रभु का जलाभिषेक किया गया । पूज्य गुरुदेवश्री बिलोकसागर महाराज के मुखारबिंद से उच्चारित प्रथम शांतिधारा करने का सौभाग्य शांतिलाल दिनेशचंद जैन एवं द्वितीय शांतिधारा वीरेंद्र जैन बाबा प्रासुक जैन परिवार को प्राप्त हुआ । इस अवसर पर मां जिनवाणी का अष्टदृव्य से पूजन किया गया । जैन बंधुओं ने 108 ताम्र ग्रन्थ, 108 जैन ग्रंथ एवं 108 जैन ध्वजों की स्थापना की ।
श्रुत पंचमी महोत्सव श्री जिनेंद्र प्रभु की वाणी को समझने और उसे प्रचारित करने के पावन पर्व पर नन्हें मुन्ने बच्चे, पुरुष और महिलाएं जैन ग्रंथों और शास्त्रों को अत्यंत ही भक्ति भावना के साथ सिर पर रखकर चल रहे थे । सभी लोग भक्ति भाव सहित मां जिनवाणी का गुणगान कर अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे । साथ में चल रहे युवा साथी जैन धर्म की पचरंगीन ध्वजा को लहराते हुए जैन धर्म की संस्कृति को गुंजायमान कर रहे थे । चांदी की पालकी में विराजमान मां जिनवाणी को बारी बारी से सभी जैन बंधु अपने कंधों पर लेने के लिए प्रयासरत दिखाई दिए । शोभा यात्रा के दौरान विभिन्न स्थानों पर मां जिनवाणी एवं युगल मुनिराजश्री विलोकसागर व मुनिश्री विबोधसागर महाराज की आरती उतारकर भव्य अगवानी की गई ।

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