जालना (महाः) विराग अक्षय समाधि तीर्थ में दिनांक ४.०७.२०२५ को प. पू. उपाध्याय श्री 108 विशेषसागर जी महाराज ( ससंघ ) के पावन सानिध्य में प. पू. भारत गौरव युग सर्वोत्कृष्ट समाधि साधक गणाचार्य श्री १०८ विरागसागर जी महामुनिराज का प्रथम समाधि स्मृति दिवस धर्म प्रभावना के साथ प. वैभव जैन जालना व पं. विरेन्द्र शास्त्री तिगोड़ा के मार्ग दर्शन में सानंद सम्पन्न हुआ।
प्रातः ०६:४५ बजे से जिनाभिषेक, शांतिधारा, 7.30 बजे से गणाचार्य श्री विरागसागर जी गुरुदेव की मुर्ति व चरण पादुका का पंचाभिषेक व क्षेत्रिय समाज से पधारे भक्तों द्वारा आचार्य श्री की पूजन व आचार्य विरागसागर विधान सानंद सम्पन्न हुआ | इस अवसर पर जालना सहित अंबड़, छत्रपती संभाजीनगर दे. राजा, बुलढाणा, अकोला,मालेगांव,मलकापुर जयपुर, अजमेर आदि स्थानों से श्रद्धालुओं के आगमन से कार्यक्रम में चार चांद लग गया। दोप: १२:०० बजे से यश खड़के एण्ड पार्टी जालना द्वारा णमोकार गूंजन व ऊँ हूँ आचार्य विराग सागर गुरुभ्यो नमः की संगीत के साथ एक माला की जाप दी गयी। दोपः २.०० बजे से चित्रानावरण, दीप प्रज्जवलन व मंगलाचरण के साच विनयांजलि सभा का शुभारंभ हुआ
इं. अनुप डोणगांवकर, विरेन्द्र धोका, ब्र. वैभव भैया, डॉ योगेश जैन ग्वालियर, जगदीश चवरे कारंजा, लकीभैय्या रोकडे जैन मालेगांव अशोक सोनटक्के मुलावा, सौ. वंदना जैन रिसोड सौ. शिवानी जैन हराल आदि ने अपने विचार रखें। इस अवसर पर विराग अक्षय कीर्ति स्तंभ दातार सौ. वैजयंति रविन्द्र खडकपुरकर परिवार दे. राजा का ट्रस्ट समिति की और से स्वागत किया गया।
इस अवसर पर प. पू. उपाध्याय श्री विशेषसागरजी महाराज ससंघ की चातुर्मास पत्रिका का विमोचन औरंगाबाद समाज से पधारे प्रतिनीधि व विरागअक्षय समाधि तीर्थ के ट्रस्टीयों के द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अन्तिम कड़ी में उपाध्याय श्री विशेष सागर जी गुरुदेव नै धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कहा विश्व में जितने भी धर्म व सम्प्रदाय है वहाँ जीवन जीने की कला सिखाते है पर जैन दर्शन में जीवन जीने के सार मरण की कला भी सिखायी जाती है, मृत्यु से सामान्य व्यक्ति भयभीत होता है पर सच्चे संत दीक्षा काल से समाधि की साधना करते है अंत समय में जब उनको ज्ञात होता है तो वे घबराते नहीं अपितु सावधान हो जाते। पू गुरुदेव को २ जुलाई २०२५ को हमने आंखों से देखा जब उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया वे ध्यान प्रारंभ कर दिये लगभग २ घंटे पश्चात उनका स्वास्थ्य सामान्य हो गया ३ जुलाई को हमें उनके साथ वैय्यावृत्ति निमित्त चौके में जाने का अवसर मिला, हमने देखा पू. गुरुदेव हंसते हुए आहार ले रहे थे, किसे ज्ञात था कि यह अंतिम आहार होगा। आचार्य श्री का अंतिम उपदेश आपने सुना, पू. गुरुदेव ने समाधि के लगभग ग्यारह घंटे पूर्व आगमोक्त विधि नुसार आचार्य पद का त्याग नवीन आचार्य की घोषणा सहित संघ की व्यवस्था व अंतिम उपदेश के माध्यम से प्राणी मात्र से क्षमा, संघस्थ साधुओ से क्षमा मांगकर सभी को क्षमा किये, हमारा सौभाग्य है कि दस वर्षोपरांत पू. गुरुदेव से मिलन हुआ हमारे विशेष प्रार्थना कर “महाराष्ट्र महोत्सव “के निमित पू गुरुदेव महाराष्ट्र आये ४ जुलाई २०२४ को प्रातः २ बजे हम पू. गुरुदेव के कक्ष में पहुँचे पू गुरुदेव ने कमण्डल का संकेत दिया हम कमण्डल उठाकर आ: श्री का हाथ शुद्धि कराये, पू. गुरुदेव दिग्वंदना कर हँसते हुए आशीर्वाद देकर सामायिक में बैठ गये लगभग २ . २१ मिनट में पू. आचार्यश्री को घबराहट होने पर हम वैयावृत्ति करने लगे ऐसा लगा स्थिति गंभीर हो रही है फिर हम लोग णमोकार मंत्र सुनाना प्रारंभ कर दिये हमने अपने आँखों से देखा पू.गुरुदेव को ३ बार हिंसकी आई और आ.श्री हमेशा हमेशा के लिए महाराष्ट्र, के हो गये। इस सभा में लगभग १५० भक्त ऐसे है जिनको बिहार में आचार्यश्री की सेवा – वैय्यावृत्ति करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। पू.उपाध्यायश्री के प्रवचन के पूर्व क्षु. विश्वोत्तीर्ण सागर जी, श्रमण श्री विवक्षितसागर जी के प्रवचन हुए। कार्यक्रम के पश्चात वात्सल्य भोज सम्पन्न हुआ। दिनांक ५.०७.२०२५ को प्रातः उपाध्याय श्री ससंघ का मंगल बिहार सर्वज्ञ तीर्थ पुसेगांव की और हुआ।