ललितपुर। दिगम्बर जैन परंपरा के प्रमुख संत , राष्ट्र संत गणाचार्य श्री विरागसागरजी महामुनिराज की समाधि होने पर प्रभावना जनकल्याण परिषद (रजि.) द्वारा विनयांजलि सभा में उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि समर्पित की गई।
वक्ताओं ने कहा कि अचानक आचार्यश्री के जाने से जैन श्रमण संस्कृति के लिए बहुत बड़ा आघात पहुँचा है। उनकी उत्कृष्ट समाधि सभी के लिए प्रेरणास्रोत है।
परिषद के अध्यक्ष राजेश रागी ने बताया कि आचार्यश्री के 500 से अधिक शिष्य- प्रशिष्य हैं। वे विशाल संघ के नायक थे। उन्होंने अनेक कृतियों का प्रणयन किया।
सह निर्देशक सुनील शास्त्री सोजना ने कहा कि आचार्यश्री को शायद आभास हो गया था इसलिए उन्होंने एक दिन पूर्व ही अपने अंतिम संबोधन में जहाँ पट्टाचार्य का पद आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज को देने की घोषणा की वहीं सभी से क्षमा भी मांगी।
डॉ सुनील संचय ने बताया कि अभी फरवरी में ही संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की समाधि से हम उभर नहीं पाए थे कि अब एक और सूर्य अस्त हो गया है। इससे बहुत ही बड़ा आघात पहुँचा है।श्रमण संस्कृति के एक और दैदीप्यमान नक्षत्र का जाना हम सभी के लिए बहुत बड़ी क्षति है।
प्रद्युम्न शास्त्री ने कहा कि बुंदेलखंड में विशेष प्रभावना करने वाले द्विशताधिक दीक्षा प्रदाता गणाचार्य विरागसागर महाराज का उपकार श्रावक कभी नहीं चुका पाएंगे उनके द्वारा जो श्रमण संस्कृति को अवदान दिया गया है वह हमेशा याद रहेगा ।
राजेन्द्र महावीर ने कहा कि उनकी साधना अद्भुत थी उन्होंने अनेक उपसर्गों को जीतकर कठोर साधना और संयम का परिचय दिया।
कोषाध्यक्ष मनीष विद्यार्थी ने कहा आपसे जिनशासन की महती प्रभावना हो रही थी। आपने अट्ठारह नयी लिपियों का विकास किया था। साहित्य सृजन तो अद्भुत था ही। व्यसन मुक्त और शाकाहार अभियान के माध्यम से लाखों लोगों का जीवन परिवर्तन कर उन्हें नई दिशा दिखाई।
चेतन शास्त्री ने बताया कि गणाचार्य विरागसागर जी का व्यक्तित्व जितना महान था उतना ही उनका कृतित्व महान था। प्रचारमंत्री अनिल शास्त्री ने कहा कि युग प्रतिक्रमण एवं यति सम्मेलन की अति प्राचीन परंपरा को पुनर्जीवित कर उन्होंने ऐतिहासिक कार्य किया था।