प्राचीन तीर्थ, मंदिर मूर्तियां हमारी अनमोल धरोहर , तीर्थक्षेत्रों के संरक्षण, संवर्द्धन के लिए आगे आएं -डॉ सुनील जैन संचय, ललितपुर

0
190
श्री  पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र अहिक्षेत्र,  रामनगर किला (बरेली) उत्तर प्रदेश में भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी उत्तरप्रदेश- उत्तराखंड अंचल का दो दिवसीय आंचलिक अधिवेशन 30-31 मार्च 2024 को सम्पन्न हुआ। भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी उत्तरप्रदेश- उत्तराखंड का मंत्री होने के नाते इस आयोजन में मैं भी शामिल हुआ।
श्री अहिक्षेत्र पार्श्वनाथ अतिशय तीर्थक्षेत्र प्राकृतिक जलवायु एवं शुद्ध वातावरण के बीच शांत वातावरण में स्थित एक सुप्रसिद्ध तीर्थ भूमि है। मान्यता के अनुसार यह तीर्थंकर पार्श्वनाथ की केवलज्ञान भूमि है , यहीं पार्श्वनाथ भगवान पर घोर उपसर्ग भी किया था। यहाँ चमत्कार के अनेक कथानक उपलब्ध हैं।विक्रम की छठी शताब्दी में इसी भूमि पर पात्रकेसरी  के द्वारा धर्म प्रभावना की गई थी। प्राचीन कुए के चमत्कार की भी किवदंती प्रसिद्ध है, पास ही पात्र केसरी जी के चरण बने हुए हैं। भव्य चौबीसी भी है। मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ के अतिशय की प्रसिद्धि के कारण यहाँ भक्तों का तांता लगा रहता है, जो मैंने रविवार 31 मार्च को स्वयं देखा। मैं खुद  प्रातः मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ का अभिषेक करने लंबी कतार में लगकर लगभग एक घंटे बाद कर पाया। प्रतिमा दर्शनीय, आकर्षक, दिव्य और भव्य है। मान्यता है कि मूलनायक पार्श्वनाथ की वेदी का निर्माण देवताओं ने किया था। क्षेत्र कमेटी ने आवास भोजन आदि की सुंदर व्यवस्था की। पूरा आयोजन उत्तर प्रदेश उत्तरांचल तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्षश्री जवाहर लाल जैन  जी सिकंदराबाद के संयोजन में हुआ। जहाँ नव निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष समाज श्रेष्ठि जम्बुप्रसाद जी, महामंत्री संतोष जी पेंडारी का भावभीना अभिनन्दन , स्वागत किया गया वहीं राष्ट्रीय कार्यकारिणी के विस्तार की भी घोषणा की गई जिसमें उपाध्यक्ष, मंत्री और कोषाध्यक्ष के नामों की घोषणा की गई।
उत्तर प्रदेश में भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी उत्तरप्रदेश- उत्तराखंड के आंचलिक अधिवेशन में राष्ट्रीय कमेटी के पदाधिकारियों ने उपस्थित होकर तीर्थों के संरक्षण और संवर्द्धन पर विचार मंथन किया। जैन तीर्थ क्षेत्रों का विकास एवं प्राचीनता पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे।
भारत के संपूर्ण सांस्कृतिक वैभव के निर्माण और विकास में श्रमण संस्कृति और कला का अनुपम योगदान है। तीर्थक्षेत्र हमारी आस्था, श्रद्धा के केन्द्रबिन्दु हैं। मूर्तियां, तीर्थ क्षेत्र एवं वास्तुकला के विशिष्ट प्रतिमान हैं। ऐसे स्थानों पर जाकर हम संस्कारित होते हैं।  प्राचीन तीर्थ क्षेत्र, मंदिर हमारे अतीत के गौरव हैं।  तीर्थक्षेत्रों, पवित्र स्थानों के आसपास मांस, मदिरा की दुकानें नहीं होनी चाहिए। तीर्थक्षेत्र हमारी संस्कृति, आस्था के प्रतीक हैं । अनेक स्थानों पर हमारी विरासत बिखरी पड़ी है। उसको सहेजने की जरूरत है। जगह-जगह प्राचीन तीर्थक्षेत्र हैं, ये हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान हैं। इनके संरक्षण के लिए आगे आएं। प्राचीन धरोहरों को सुरक्षित, स्वच्छ रखना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है। सभी इनके संरक्षण के लिए तन, मन और धन  और समय का दान करें। इतिहास को संजोना सभी का कर्तव्य है।
 अनेक प्राचीन ऐतिहासिक विरासत समेटे अतिशय व सिद्ध क्षेत्र हैं। ये हमारी विरासत की अमूल्य धरोहर और हमारी पहचान हैं। हमारे ये तीर्थ हमारी आन-बान-शान हैं ऐसे में हमारा दायित्व बनता है कि इनके संरक्षण और संबर्द्धन के लिए हम आगे आएं।
इसके लिए जल्द ही निर्धारित प्रोफार्मा पर पूरे देश के तीर्थों का सर्वेक्षण कर पूरी जानकारी सुरक्षित कर लेना चाहिए।
जहाँ हमारे तीर्थ हैं और जैन समाज नगण्य है वहाँ कुछ कमजोर स्थिति वाले जैन परिवारों को रोजगार देकर बसाया जाय। एक उच्च स्तरीय ऐसी अंतरराष्ट्रीय कमेटी बने जिसमें बहुत अधिक प्रभावशाली जैन प्रशासनिक, जज, वकील ,राजनेता,प्रोफेशनल, प्रशासनिक अधिकारी और बहुत बड़े उद्योगपति हों । सत्ता का साथ देकर उससे सहयोग लेने की नीति ही एक मात्र मार्ग है जिससे चल अचल तीर्थों का संरक्षण किया जा सकता है ।आशा है इस दिशा में तीर्थक्षेत्र कमेटी के नए अध्यक्ष और उनकी टीम तत्परता से ध्यान देगी।
आज अनेक तीर्थ स्थलों की दशा अच्छी नहीं है, आए दिन हमारे तीर्थों पर हो रहे अतिक्रमण, अबैध कब्जे आदि की घटनाएं किसी से छिपी नहीं हैं , यह गंभीर चिंतन का विषय है। तीर्थ स्थलों के विकास की रफ्तार कभी नहीं रुकना चाहिए, तीर्थ स्थल हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है, इसे बचाने के लिए हमें एकजुट होना पड़ेगा, क्योंकि तीर्थ स्थलों की स्थिति काफी बिगड़ी हुई है, तीर्थ स्थलों की दशा सुधारने की जरूरत है, हम सभी समाज जनों को मजबूती के साथ कार्य करना पड़ेगा। जैन तीर्थ की दशा एवं दिशा पर चिंतन होना बहुत आवश्यक है, समाज एकजुट होना भी बहुत जरूरी है।
अपनी संस्कृति आदि की समृद्धि के लिए जहाँ आवश्यकतानुसार नये मंदिरों, तीर्थों का सृजन आवश्यक है, वहीं अनिवार्य रूप में प्राचीन तीर्थों का संरक्षण और जीर्णोद्धार इन दोनों का समन्वय आवश्यक है।
दो दिवसीय अधिवेशन में अनेक सुझाव और विचार आए, आशा करता हूँ नए राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रेष्ठि जम्बुप्रसाद जी जैन धरातल पर जल्द ही योजनाओं को उतारेंगे, उन्होंने अपना विजन भी पुस्तिका के रूप में जारी किया है। उत्तर प्रदेश के तीर्थों की स्मारिका का भी विमोचन हुआ है। प्रांतीय कमेटियों का आयोजन एक अच्छी पहल है जो शुरू की गई है आशा करता हूँ आगामी समय में और अधिक व्यवस्थित रूप से ऐसे आयोजनों की श्रृंखला जारी रहेगी। शुरुआत अच्छी है परन्तु आगे और अधिक व्यवस्थित और सार्थक आयोजन होंगे ऐसी आशा करता हूँ।
अभी सोशल मीडिया पर जारी एक खबर ने चिंता बढ़ा दी थीं,  जिसमें बताया गया था कि   टोड़ी आक्शन, मुंबई द्वारा ताजमहल पैलेस में प्रस्तावित क्लासिकल इंडियन आर्ट, नीलामी किए जाने के लिए अपनी वेबसाइट पर प्राचीन पूज्य जैन तीर्थंकर की 17 प्रतिमाओं को 16 अप्रैल 2024 को नीलामी की जाएगी।  तीर्थक्षेत्र कमेटी, महासभा ने भी इस दिशा में त्वरित कार्यवाही के लिए पत्र लिखा। सभी लोगों, संस्थाओं की जागरूकता की वजह से यह नीलामी रद्द हुई और संबंधित व्यक्ति ने माफी भी मांगी।
यह हमारी एकजुटता, जागरूकता की निशानी है। ऐसे ही हमें अपनी संस्कृति, विरासत को बचाने के लिए सदैव जागरूक रहना होगा।
आओ सभी मिलकर तीर्थ क्षेत्रों के संरक्षण, संवर्द्धन के लिए आगे आएं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here