पूर्वजों को याद करने का अनुष्ठान ) पितृ पक्ष—- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

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पितृ पक्ष या श्राद्ध/श्राद्ध, हिंदुओं द्वारा अपने पूर्वजों को याद करने के लिए 15 दिनों का एक अनुष्ठान है। पितृ पक्ष के दौरान, मृतक का सबसे बड़ा पुत्र पितृलोक (स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का क्षेत्र) में रहने वाले पूर्वजों के लिए तर्पण करके श्राद्ध करता है। पितृ पक्ष या श्राद्ध भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दौरान शुरू होता है और 29 सितंबर, 2023 को शुरू होने वाला है। पितृ पक्ष 14 अक्टूबर, 2023 को कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि या सर्व पितृ अमावस्या पर समाप्त होगा।
पितृपक्ष अश्विन अमावस्या पर खत्म होते हैं, इसे सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं। इस वर्ष अधिक मास की वजह से इस साल सावन दो महीने का था जिस वजह से सभी व्रत-त्योहार 12 से 15 दिन देरी से पड़ेंगे। आमतौर पर पितृ पक्ष सितंबर में समाप्त हो जाते हैं लेकिन इस साल पितृ पक्ष सितंबर के अंत में आरंभ होकर अक्टूबर के मध्य तक चलेंगे।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हमारी पिछली तीन पीढ़ियों की आत्माएं ‘पितृ लोक’ में रहती हैं, जिसे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र का नेतृत्व मृत्यु के देवता यम करते हैं। ऐसा माना जाता है जब ऐसा माना जाता है कि जब अगली पीढ़ी का कोई व्यक्ति मर जाता है, तो पहली पीढ़ी को भगवान के करीब लाते हुए स्वर्ग ले जाया जाता है। पितृलोक में केवल अंतिम तीन पीढ़ियों को ही श्राद्ध कर्म दिया जाता है।
पितृपक्ष में श्राद्ध करना क्यों जरूरी
पितृपक्ष में अपने-अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसार उनका श्राद्ध किया जाता है । मान्यता है कि जो लोग पितृपक्ष में पितरों का तर्पण नहीं करते उन्हें पितृदोष लगता है। श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को तृप्ति और शांति मिलती है। वे आप पर प्रसन्न होकर पूरे परिवार को आशीर्वाद देते हैं। हर साल लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए गया जाकर पिंडदान करते हैं।
16 दिन के ही क्यों होते हैं श्राद्ध
शास्त्रों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु इन सोलह तिथियों के अलावा अन्य किसी भी तिथि पर नहीं होती है। यानी कि जब भी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है तो उनकी मृत्यु तिथि के अनुसार ही करना चाहिए । इसलिए पितृ पक्ष सर्फ सोलह दिन के होते हैं। हालांकि जब तिथि क्षय होता है तब श्राद्ध के दिन 15 भी हो जाते हैं लेकिन बढ़ते कभी नहीं।
कैसे करे श्राद्ध
श्राद्ध का काम गया में या किसी पवित्र नदी के किनारे भी किया जा सकता है।
इस दौरान पितरों को तृप्त करने के लिए पिंडदान और ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है।
अगर इन दोनों में से किसी जगह पर आप नहीं कर पाते हैं तो किसी गौशाला में जाकर करना चाहिए।
घर पर श्राद्ध करने के लिए सुबह सूर्योदय से पहले नहा लीजिए।
इसके बाद साफ कपड़े पहनकर श्राद्ध और दान का संकल्प कीजिए।
जब तक श्राद्ध ना हो जाए तो कुछ भी ना खाएं।
वहीं, दिन के आठवें मुहूर्त में यानी कुतुप काल में श्राद्ध कीजिए जो कि 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक रहेगा।
दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बाएं पैर को मोड़कर और घुटने को जमीन पर टिकाकर बैठ जाएं।
इसके बाद तांबे के लोटे में जौ, तिल, चावल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल, सफेद फूल और पानी डालें।
हाथ में कुश लेकर और दल को हाथ में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में 11 बार गिराएं।
फिर पितरों के लिए खीर अर्पित करें।
इसके बाद देवता, गाय, कु्त्ता, कौआ और चींटी के लिए अलग से भोजन निकालकर रख दीजिए।
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन, संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३

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