परम पुज्य मुनि पुज्य सागर जी की मंगल देशना

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राजेश जैन दद्दू
इंदौर, अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज के धर्म प्रभावना रथ का पांचवां पड़ाव श्री 1008 पदम प्रभु दिगंबर जैन मंदिर, वैभव नगर में चल रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत 12 दिवसीय वृहद भक्तामर महामंडल विधान का आयोजन किया जा रहा है। विधान के दसवें दिन, मुख्य पुण्यार्जक मनीष शालिनी जैन और आदर्श मोनिका जैन परिवार और 12 दिवसीय सौधर्म इन्द्र संजय सीमा जैन ने दोनो दिन मिलाकर भक्तामर काव्य के 37, 38, 39 और 40 काव्य की आराधना करते हुए कुल 224 अर्घ्य समर्पित किए। अब तक इस आयोजन में कुल 2240 अर्घ्य समर्पित किए जा चुके हैं। इस विशेष अवसर पर शान्तिधारा का सौभाग्य बालचंद, ब्रह्मचारिणी ज्योति दीदी, अंश देवड़िया परिवार, मिताशी, मनीष, शेफाली, जितेंद्र, उषा परिवार, जयेश, अल्पना, यश, अतिवीर, दीपेश, नीलू, तन्मय इटावाली परिवार को प्राप्त हुआ। दीप प्रज्वलन, चित्रानावरण और मुनि श्री के पाद प्रक्षालन का लाभ डॉली, सरला पाडलिया परिवार को प्राप्त हुआ। शास्त्र भेंट का लाभ मनीष, जितेंद्र जैन, जम्बू गंगवाल, सूर्यकांत जैन परिवार को मिला।

तीर्थ बचाओ, समाज और परिवार बचाओ

अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज में धर्म सभा को सम्बोधित हुए कहा की तीर्थ बचाओ, समाज और परिवार बचाओ विषय पर प्रवचन देते हुए मुनि श्री ने कहा तीर्थ हमारी संस्कृति, संस्कार और इतिहास के साक्षी हैं। जैसे बिन मां का बच्चा प्यार के लिए, दूध के लिए, भोजन के लिए तरसता है, उसकी भाषा को समझने वाला कोई नहीं होता, उसी प्रकार हमें भी तीर्थों की वेदना को समझना चाहिए। मां बिन सुख नहीं, उसी प्रकार तीर्थों के बिना जैनों का कोई अस्तित्व नहीं है।

मुनि श्री ने कहा कि जैसे मां के बिना बच्चा रोता है, उसी प्रकार आज हमारे तीर्थ रो रहे हैं, यह हमें सुनाई भी दे रहा है। आज हमारा दिल इतना कठोर कैसे बन गया कि हम अपने तीर्थों की वेदना नहीं सुन पा रहे हैं। क्या महावीर की संतान आज इतनी कमजोर हो गई है कि अपने तीर्थों के लिए समझौता कर रही है, मुझे तो ऐसा लगता है कि जैसे हम अपनी मां का ही बंटवारा कर रहे हैं। व्यापार, सम्मान, डर, धन आदि के कारण तीर्थों के नाम पर समझौता कर रहे हैं। तीर्थ स्थान ही तो वह उद्गम स्थल है, जहां से संस्कारों और संस्कृति का प्रवाह होता है और जिस समाज का इतिहास नहीं रहता, वह समाज पंगु बन जाता है। एक-एक करके हमारे कई तीर्थ स्थलों पर कब्जे होते जा रहे हैं।

तीर्थों को बचाना है तो संतवाद, पंथवाद से बचो

हमें अपने तीर्थों को बचाना है तो संतवाद, पंथवाद, संगठन के नाम पर राजनीति करना बंद करना होगा। आज एक संस्था, एक व्यक्ति, एक संत एक- दूसरे के साथ काम करने को तैयार नहीं है। एक संघर्ष करता है तो दूसरा जाकर बिना सोचे-समझे समझौता कर लेता है। आपसी लड़ाई में तीर्थ, धर्म और धर्मात्माओं का नाश हो रहा है। माता सीता के गर्भ में जब लव और कुश आए तो उन्होंने मंदिर में पूजा, तीर्थ यात्रा, गुरुओं की वंदना का मन बनाया। उसी का परिणाम था कि दोनों बच्चे सुंदर, शक्तिशाली, गुणवान पैदा हुए और जंगल में जन्म होने के बाद भी सुखी ही रहे और सारी विद्या सीखीं। यह होता है तीर्थों की वंदना का भाव करने मात्र से और आज हम उन्हीं तीर्थों की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।

आवागमन एक राह तीर्थ सुरक्षा की

मुनि श्री ने कहा कि कोई भी जगह तब तक आबाद रहती है, जब तक वहां लोगों का आना-जाना रहता है, उसी प्रकार हमने भी तीर्थों पर आना-जाना जारी रखा तो वे आबाद रहेंगे। तीर्थों को उजड़ने से बचाना है तो जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ जैसे आयोजन भी तीर्थों में जाकर मनाने होंगे। हम वहां जाकर पूजन, अभिषेक और विधान करें तो तीर्थ आबाद रहेंगे।

इतिहास के पन्नो पर तीर्थ सुरक्षा की सीख

मुनि पूज्य सागर ने कहा कि तीर्थों की रक्षा की सीख हमें अपने इतिहास से भी लेनी चाहिए। राजा खारवेल ने 15 वर्ष की आयु तक राजोचित विद्याएं सीखीं। 16 वर्ष की आयु में वह युवराज बने। 24 वर्ष की आयु में उनका अभिषेक हुआ। वर्तमान के ओडिशा में उनका राज्य था। खारवेल का जन्म ईसा पूर्व 190 के लगभग हुआ था। आज भी ओडिशा के उद्यगिरी खंडगिरी में अनेक प्राचीन गुफाएं हैं, जिनमें भगवान की प्रतिमाएं है। जैन साधुओं की साधना के लिए गुफाएं और विश्राम के लिए पहाड़ बनाए हैं। खारवेल ने खुद भी यहीं साधना की थी। इसी प्रकार से गंगराज के नरेश राचमल्ल (राजमल्ल) के महामंत्री चामुण्डराय ने मां की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए आचार्य नेमीचंद्र की आज्ञा से श्रवणबेलगोला में भगवान बाहुबली की प्रतिमा का निर्माण करवाया । इस प्रतिमा के निर्माण से चंद्रगिरी पहाड़ की सुरक्षा भी हो सकी।

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