तीर्थंकर पार्श्वनाथ जयंती 15 दिसम्बर 2025 पर विशेष :

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तीर्थंकर पार्श्वनाथ जयंती 15 दिसम्बर 2025 पर विशेष :
काशी में जन्मे तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान की शिक्षाओं की शाश्वत प्रासंगिकता
— डॉ. सुनील जैन ‘संचय’, ललितपुर

भारत की आध्यात्मिक धरोहर में काशी का विशिष्ट स्थान है। यह नगरी जहाँ हजारों वर्षों से ज्ञान, ध्यान, धर्म और साधना का केंद्र रही है, वहीं यह चार तीर्थंकरों की जन्मभूमि होने के कारण जैन परंपरा में विशेष आदरणीय है। मंदिरों की इस नगरी को लोग विश्व की धार्मिक राजधानी, पुरातन संस्कृति का केंद्र तथा पारसनाथ भगवान की पावन धरती भी कहते हैं। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन ने लिखा था—
“बनारस इतिहास से भी पुरातन, परंपराओं से भी पुराना, किंवदंतियों से भी प्राचीन है— और इन सबको मिलाकर भी उससे दोगुना प्राचीन!”
काशी की इस दिव्य संस्कृति और अध्यात्म का साक्षात अनुभव मुझे वहाँ बिताए पाँच वर्ष के दौरान मिला। गंगा के घाटों की शांति, सौंदर्य और आध्यात्मिक स्पंदन आज भी मन में अंकित हैं।
“बनारस का हर शाम इतना सुहाना लगे,
इसे भुलाने में कई सदियाँ, कई जमाना लगे।”
काशी : चार जैन तीर्थंकरों की पावन जन्मभूमि :
गंगा तट पर बसी वाराणसी में सप्तम तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ, अष्टम चन्द्रप्रभ, ग्यारहवें श्रेयांसनाथ, और तेईसवें पार्श्वनाथ का जन्म हुआ। यह इन चार-चार कल्याणकों से पवित्र भूमि है। मेरा सौभाग्य रहा कि मैं स्वयं जैन घाट पर स्थित सुप्रसिद्ध स्याद्वाद महाविद्यालय, ( भगवान सुपार्श्वनाथ की जन्मभूमि) का विद्यार्थी रहा।
तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ : काशी का गौरव :
पार्श्वनाथ भगवान का जन्म पौष कृष्णा एकादशी को काशी नरेश महाराजा अश्वसेन व महारानी वामादेवी के घर भेलूपुर क्षेत्र में हुआ। यही स्थान उनकी जन्मभूमि, कर्मभूमि और तपभूमि है।
वर स्वर्ग प्राणत को विहाय, सुमात वामा सुत भये।
अश्वसेन के पारस जिनेश्वर, चरन जिनके सुर नये।।
जनमे त्रिभुवन सुखदाता, एकादशि पौष विख्याता
श्यामा तन अद्भुत राजै, रवि कोटिक तेज सु लाजै ॥
जन्म भूमि भेलूपुर, वाराणसी में  भव्य जैन मंदिर स्थित है। चार फ़ीट ऊँची काले पत्थर की प्रतिमा, राजस्थानी शैली में निर्मित विशाल परिसर तथा भित्ति शिल्प इसे अद्वितीय बनाते हैं। प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।
ऐतिहासिकता और प्रभाव : भगवान पार्श्वनाथ  प्राचीन ग्रंथों—अवशेषों, शैलों, स्तुतियों, जैनाचार्यों और विदेशी विद्वानों—के आधार पर वे अत्यंत प्रभावशाली ऐतिहासिक महापुरुष माने गए हैं। जर्मन विद्वान डॉ. हर्मन याकोबी ने अपने शोध “स्टडीज़ इन जैनिज़्म” में उन्हें ऐतिहासिक व्यक्तित्व प्रमाणित किया।
पार्श्वनाथ : सामाजिक क्रांति और अहिंसा के प्रणेता : पार्श्वनाथ भगवान ने कर्मकांड, अज्ञान और पशुहिंसा के विरुद्ध अद्भुत क्रांति की। उनके जीवन में प्रसिद्ध घटना है—गंगाघाट पर कमठ द्वारा किए जा रहे पंचाग्नि यज्ञ में लकड़ी के भीतर जल रहे नाग-नागिन को उन्होंने णमोकार मंत्र का उद्घोष कर मुक्त किया। यह घटना अहिंसा और करुणा के अद्वितीय संदेश का शाश्वत प्रतीक है।
उनके संदेशों की विशेषताएँ :  अहिंसा को व्यक्ति से समाज तक विस्तृत करना। सही कर्म, सही विचार और सही व्यवहार का मार्ग। क्रोध, हिंसा, दंभ और आडंबर का विरोध। सभी जीवों के प्रति करुणा का भाव। पुरुषार्थ से भाग्य परिवर्तन का सूत्र।
इस कारण बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा सहित अनेक स्थानों पर आज भी सराक, सदगोवा, रंगिया तथा भील समाज भगवान पार्श्वनाथ को कुलदेवता मानता है।
विहार और दिव्य प्रभाव : आर्यखंड के अनेक प्रदेशों—मालव, अवंती, कर्नाटक, सौराष्ट्र, मेवाड़, कलिंग से लेकर कश्मीर, कच्छ और विदर्भ—में भगवान पार्श्वनाथ ने विहार किया। मध्यप्रदेश के नैनागिरि सिद्धक्षेत्र में उनका समवशरण आया था। उनकी साधना आत्मकल्याण की चरम ऊँचाई थी—
राग, द्वेष, भय और प्रलोभन से परे।
पार्श्वनाथ भगवान के मंदिरों और प्रतिमाओं की संख्या भारत में सर्वाधिक है। प्रत्येक राज्य में वे विभिन्न विशिष्ट उपाधियों —अंतरिक्ष पार्श्वनाथ, चिंतामणि पार्श्वनाथ, तिखाल वाले बाबा
के रूप में पूजित हैं।
स्तोत्र साहित्य : भक्ति की स्वर्ण-धारा : जैन आचार्यों ने भगवान पार्श्वनाथ के अतिशय प्रभाव से विभोर होकर अनेक स्तोत्र रचे। ये रचनाएँ भक्ति, श्रद्धा और आराधन की अमूल्य विरासत हैं।
निर्वाण और शाश्वत स्मृति : पार्श्वनाथ भगवान ने श्रावण शुक्ला सप्तमी को झारखंड स्थित सम्मेद शिखरजी के स्वर्णभद्रकूट- पार्श्वनाथ हिल पर्वत से निर्वाण प्राप्त किया। आज निकटस्थ रेलवे स्टेशन पारसनाथ इन्हीं की स्मृति का प्रतीक है। लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष इस तीर्थ की यात्रा करते हैं।
आज के वैज्ञानिक युग में पार्श्वनाथ के संदेशों की प्रासंगिकता :आज जब मानव हिंसा, द्वेष, अनियंत्रित इच्छाओं और भौतिकता की होड़ में घिरा है, पार्श्वनाथ भगवान का मार्ग और अधिक आवश्यक हो उठा है। उनकी शिक्षाएँ हमें बताती हैं—अहिंसा केवल व्रत नहीं—जीवनशैली है। क्रोध का प्रतिकार क्षमा से है। वैर का समाधान करुणा से है।सुख धन में नहीं—मन की पवित्रता में है। वर्तमान तनावपूर्ण समाज में यह दर्शन मनुष्य को शांति, संतुलन और आत्मनिर्माण का पथ प्रदान करता है।
उपसंहार : तीर्थंकर पार्श्वनाथ जन्म कल्याणक केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि अहिंसा, करुणा, मानवता और नैतिकता के पुनर्स्मरण का पावन अवसर है। काशी की यह दिव्य भूमि, जहाँ पार्श्वनाथ ने जन्म लेकर धर्म, दर्शन और संस्कृति को अमर संदेश दिया—आज भी उसी प्रकाश से आलोकित है।

— डॉ. सुनील जैन ‘संचय’
नेशनल कान्वेंट स्कूल, गाँधीनगर, नईबस्ती, ललितपुर – 284403 (उ.प्र.)
मो. 9793821108
(आध्यात्मिक चिंतक एवं जैनदर्शन के अध्येता)

संलग्न चित्र : वाराणसी, भेलूपुर स्थित पार्श्वनाथ भगवान की जन्मभूमि मंदिर में विराजमान दिव्य प्रतिमा

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