जैन दर्शन के महान संत,कालिकल समंतभद्र वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री कनकनंदी जी गुरुराज का पारडा ईटीवार में वर्षायोग सन 2024 हेतु होगा मंगल विहार

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गणाधिपति गणधराचार्य श्री कुंथुसागर जी ऋषिराज के सबसे ज्येष्ठ व श्रेष्ठ नंदन स्वाध्याय तपस्वी आचार्य श्री कनकनंदी जी गुरुराज का योगेंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र से कल दिनांक 11 जुलाई को शाम 4.30 बजे भीमदड़ी के लिए मंगल विहार होगा

पूज्य गुरुदेव ने विगत दशकों से जहा जहा भी वर्षायोग या प्रवास रहा वहा वहा उनकी प्रतिज्ञा पूर्वक कलश स्थापना की बोलिया,पद पक्षालन,शास्त्र भेट, पिच्छी भेट आदि अन्य किसी भी प्रकार की बोली – नीलामी व सौदेबाजी का निषेध रहा।

पूज्य गुरुदेव के मुख्य सूत्र -⬇️

1.➡️”मै आत्म शिव सोख्य सिद्धि के लिए साधु बना हु,प्रसिद्धि के लिए नही”,”धर्म आत्म दर्शन के लिए है – प्रदर्शन के लिए नही”,इस सूत्र को ध्यान में रखकर गुरुदेव समस्त आडम्बर दिखावो से पूर्णतया दूर रहते है,उनके प्रवास वर्षायोग हेतु किसी भी प्रकार की निमंत्रण पत्रिका,होर्डिंग,बोर्डिंग,बड़े बड़े मंच पंडाल,धूम धड़ाका,हाथी घोड़ा आदि सभी दिखावा अपव्व्यो का निषेध रहता है।*

2.➡️ “मांगण मरण समान है मत मांगो कोई भीख, मांगन से मरना भला यह सदगुरु की सीख” पूज्य गुरुदेव कहते है की बड़े बड़े चक्रवर्ती,राजा,महाराजा भी आत्मिक शांति के लिए पूरा का पूरा वैभव,लौकिक सुख,संपत्ति छोड़कर तीन लोक में पूज्य मुनि पद धारण कर साधना करते है तो फिर दिगंबर वितरागी मुनि बनकर एक पैसे की याचना करना,चंदा चिट्ठा करना या अन्य कोई याचना करना तो थूक कर चाटना,स्वयं के द्वारा किए हुए वमन (उल्टी) को पीने के समान है।

3.➡️ “जो साधक निर्माण में लग जाता है वो निर्वाण से दूर हो जाता है” आचार्य श्री कनकनंदी जी गुरुदेव ने अपने पूरे साधक जीवन में किसी भी भौतिक निर्माण,ईट पत्थर की न तो कभी प्रेरणा दी ,न ही इसका कभी मार्गदर्शन किया

4.➡️ मुझे कभी सिंहासन व पट्ट से नही बंधना,जिनको समाधि से पूर्व त्यागना अनिवार्य तो फिर उससे ममत्व ही क्यों??? इसलिए पूज्य गुरुदेव सर्वाधिक श्रमणो व सर्वाधिक आचार्यों के शिक्षागुरु,सर्वाधिक भाषाओं के ज्ञाता,सर्वाधिक साहित्यों के रचियता व सर्वाधिक आध्यात्मिक सारभूत काव्य के रचीयता आचार्य साधक होते हुए भी सिंहासन का त्याग कर साधारण पट्ट पर विराजते है।

5.➡️ आजकल सभी पंच कल्याणक, विधान आडम्बर,धन संग्रह,मंच माला से ही भरे होते है,धार्मिक सभाओं का अधिकांश हिस्सा बोलियो व मान सम्मान में व्यय कर दिया जाता है,इन पंच कल्याणको में आत्मा का शून्य और पंचों का भरपूर कल्याण होता है,इसलिए पूज्य गुरुदेव जिन्होंने सभी शिष्यों को पंचकल्याणक व विधान की क्रियाएं तक सिखाई उन्होंने पंचकल्याणक में सानिध्यता देना छोड़ दिया।

6.➡️ पूज्य आचार्य भगवंत ने अनेक त्याग संकल्प से अपने स्व संघ को सादगी से परिपूर्ण इतना सरल व सहज कर दिया है की विगत दशकों से इनका चातुर्मास व प्रवास प्रायः छोटे छोटे एकांत गावो में होता है,मात्र एक एक परिवार के पुण्य पुरुषार्थ से पूरा चातुर्मास सानन्द संपन्न हो रहे है,इस वर्ष का वर्षायोग भी पंडित कीर्ति -पंडित पंकज बंधु मात्र एक परिवार के पुण्य पुरुषार्थ द्वारा हो रहा है

7.➡️ धर्म में व्याप्त इन बुराइयों की वजह से इनकी व्याख्या करते करते पूज्य आचार्य श्री अत्यंत द्रवित हो रो तक देते है।

8.➡️पूज्य गुरुदेव अपनी 50 वर्षो के संन्यास जीवन में होने वाले अनेकानेक अनुभवों से सतत सिखते है वे इतने महाज्ञानी संत होते हुए भी स्वयं को विद्यार्थी कहते है,गुरुदेव के पास कभी भी लौकिक चर्चा नही होती,वे पांच प्रकार के स्वाध्याय को छोड़कर मौन रहते है,विहार हो या आहार जब भी गुरुदेव के समीप जाओ तो उनके द्वारा होने वाले स्वाध्याय का सारांश ही बोलने की अनुमति होती है।अन्य कोई चर्चा नही

9.➡️ पूज्य गुरुदेव इतने सरल सहज व समता धारी है की बाल हो या किशोर,वृद्ध हो या युवा,राजा हो या रंक सब उनसे एक समान लाभ को प्राप्त करते है।

10.➡️ पूज्य आचार्य श्री सेवाभावी,गुणी,उदार,जिज्ञासु लोगो को ज्यादा प्राथमिकता देते है।

11. अनेकानेक विलक्षण क्षमता व निस्पृहता में पूज्य आचार्य श्री कनकनंदी जी गुरुराज वर्तमान युग में एक आश्चर्य है।

12.➡️पूज्य आचार्य श्री अपने दीक्षा,शिक्षा व प्रेरणा देने वाले 7 गुरुओं का बार बार गुणानूवाद करते है जिनमे आचार्य श्री देशभूषण जी,वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री विमलसागर जी,दीक्षा गुरु आचार्य श्री कुंथुसागर जी,आचार्य श्री अभिनंदन सागर जी,आचार्य श्री भरतसागर जी,प्रथम गणिनी आर्यिका श्री विजयमति माताजी व गणिनी प्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमतीमाताजी आदि

इस 21वी सदी में भी ऐसे सत्यनिष्ठ,समताधारी निस्पृही आचार्य श्री कनकनंदी गुरुराज श्री संघ की सेवा वैयवृत्ति करने वाला श्रावक अपने जीवन में छाए हुए दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में तब्दील कर लेता है

पूज्य आचार्य श्री के चरणों में अविनाशी नमन

शब्द सुमन -शाह मधोक जैन चितरी

नमनकर्ता -श्री राष्ट्रीय जैन मित्र मंच भारत

 

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