30/05/25 ,श्रुत पंचमी पर्व और प्राकृत भाषा दिवस की पूर्व संध्या पर श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली के जैनदर्शन विभाग में प्रो वीरसागर जी की अध्यक्षता में श्रुत पंचमी प्राकृत भाषा दिवस संगोष्ठी का आयोजन किया गया ।
इस अवसर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो अनेकान्त जी ने कहा कि हमने स्वाध्याय में आम्नाय नामक भेद की बहुत उपेक्षा की है जिसमें मूल पाठों को दुहराने की परंपरा थी । वैदिक परंपरा में चारों वेद इसलिए सुरक्षित हैं क्यों कि वहाँ मूल पाठों को प्रतिदिन दोहराने की परंपरा आज भी विद्यमान है । बहुत मुश्किल से उपलब्ध षटखंडागम आदि मूल भगवान् की वाणी को दुहराने और याद करने की परंपरा न श्रावकों में है न साधुओं में है । कितने ही जिनालय भी ऐसे हैं जहाँ षटखंडागम की प्रकाशित प्रति भी उपलब्ध नहीं है । ऐसी प्रवृत्तियों से ही मूल श्रुत नष्ट होता है ।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते प्रो वीरसागर जी ने कहा कि आचार्य विद्यानंद जी कहते थे कि हम लोग रोटी पानी के कारण जिंदा नहीं हैं हम लोग ज्ञान के कारण जिंदा हैं । भारत शब्द में भा का अर्थ ज्ञान है अर्थात जो ज्ञान में रत रहता है वह भारत कहलाता है । भारत ज्ञान के कारण प्रसिद्ध है और इसमें जैन दर्शन का बड़ा योगदान है क्यों कि वह सम्यग्ज्ञान की बात करता है । हम लोग भारत को माँ कहते हैं और सैनिक भारत माँ के लिए अपनी जान भी कुर्बान कर देते हैं ,उसी प्रकार जिनवाणी को हम माँ कहते हैं हमे भी सैनिकों की भांति इसकी रक्षा में अपना तन मन धन समर्पित कर देना चाहिए ।
इस अवसर पर अनेक शोधार्थियों ने अपने विचार व्यक्त किये और जैन दर्शन पढ़ कर अपने जीवन में आये बदलाव को भी बताया ।
इस अवसर पर सर्व प्रथम श्रुत पीठ पर वेष्टन युक्त जिनवाणी को विराजमान किया गया और विभाग के आचार्यों द्वारा प्रकाशित श्रुत साधना के समस्त शोध आलेख एवं ग्रंथों की प्रदर्शनी भी सभी के लिए लगाई गई ।
सभा का कुशल संचालन शोध छात्र प्रशांत जैन ने किया ।