जिनवाणी का स्वाध्याय आत्मा को शांति और स्थिरता प्रदान करता है। – अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज

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जिनवाणी का स्वाध्याय आत्मा को शांति और स्थिरता प्रदान करता है। - अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज
मुजफ्फरनगर मै पहलीबार
श्रुतपंचमी महापर्व  पर श्रुताभिषेक महोत्सव सानन्द सम्पन्न
औरंगाबाद नरेंद्र /पियुष जैन    साधना महोदधि अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने विशाल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुये कहा –
“श्रुतं मे भगवान्मुखात्, तेन श्रुतेन मोक्षमार्गो ज्ञातव्यः।”
(अर्थात — मैंने यह श्रुतज्ञान भगवान के मुख से प्राप्त किया है, इसी श्रुति के द्वारा मोक्षमार्ग को जाना जा सकता है।)
ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी के पावन अवसर पर हम सब श्रुतपंचमी महापर्व का उल्लासपूर्वक आयोजन करते हैं। यह पर्व न केवल ज्ञान की पवित्रता का प्रतीक है, बल्कि यह उस अमूल्य धरोहर का उत्सव भी है जो हमें तीर्थंकर भगवान की वाणी के रूप में प्राप्त हुई — जिनवाणी माता भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण (मोक्षगमन) के पश्चात उनकी दिव्यध्वनि से प्राप्त शासन वाणी का संरक्षण अत्यंत आवश्यक था। इस महान कार्य को सम्पन्न किया आचार्य पुष्पदंत और भूतबलि स्वामी ने, जिन्होंने षट्खंडागम नामक प्रथम श्रुतग्रंथ की रचना की। जिनवाणी के प्रथम लेखन की पूर्णता ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को हुई थी, और तभी से यह दिन श्रुतपंचमी के रूप में एक विशेष पर्व बन गया। यह पर्व केवल ज्ञान का उत्सव नहीं, अपितु मोक्षमार्ग का प्रवेश द्वार है।
“ण मं कुणइ अप्पाणं, जहा मं समणो तित्थयराओ।
ण सेसइ संसारं, जहा मं समणो तित्थयराओ॥”
(कोई भी जीव आत्मकल्याण वैसा नहीं कर सकता जैसा तीर्थंकर भगवान की वाणी बताती है।)
जिनवाणी का अध्ययन केवल ज्ञानवर्धन नहीं करता, यह चारित्र के पालन की प्रेरणा देता है। जिनमार्ग की जानकारी के बिना आत्मशुद्धि संभव नहीं, और जिनवाणी ही वह माध्यम है जिससे यह ज्ञान प्राप्त होता है।
आज के आपाधापी भरे जीवन में जहाँ मानसिक तनाव, असंतोष और उलझनें घर कर चुकी हैं,, वहाँ जिनवाणी का स्वाध्याय आत्मा को शांति और स्थिरता प्रदान करता है। यह पर्व हमें स्मरण कराता है कि सांसारिक चकाचौंध से हटकर आत्मकल्याण का मार्ग ज्ञान और आचरण से ही संभव है।
श्रुतपंचमी का पर्व एक आत्मावलोकन का दिन है — क्या हम जिनवाणी का नियमित स्वाध्याय करते हैं? क्या हमारे घर में शास्त्रों का यथोचित सम्मान होता है? क्या हम अपने बच्चों को जिनवाणी का महत्व समझाते हैं?
पूजन एवं आराधना — इस दिन जिनवाणी माता की भक्ति भाव से पूजन, शास्त्रों का अभिषेक, नव वस्त्रों से सज्जा, एवं वैयावृत्ति (संरक्षण व मरम्मत) का कार्य किया जाता है। कई स्थानों पर प्रभावना यात्रा, श्रुतज्ञान प्रतियोगिता, एवं भजन संध्या जैसे आयोजनों द्वारा पर्व को गरिमा प्रदान की जाती है।
“श्रुत ज्ञानं न विना मोक्षो, न मोक्षो यदि मानव!
श्रुतं तस्मात् पूज्यतमं, स्वाध्यायः सर्वदा भवेत्॥”
(श्रुतज्ञान के बिना मोक्ष नहीं, इसलिए जिनवाणी का पूजन और स्वाध्याय सदा होना चाहिए।)
श्रुत आराधना ही आत्मकल्याण का मूल — हमने मनुष्य जीवन पाया है,, यह अत्यंत दुर्लभ है। यदि इस पर्याय में भी हम जिनवाणी का स्वाध्याय नहीं करेंगे तो फिर कब? आइए, इस श्रुतपंचमी पर हम सभी यह संकल्प लें कि — हम नियमित रूप से स्वाध्याय करेंगे,, अपने बच्चों को शास्त्रों से जोड़ेंगे,, जिनालय में विराजमान शास्त्रों की सेवा करेंगे,, और जिनवाणी माता के प्रति अपार श्रद्धा रखेंगे।
श्रुतपंचमी महापर्व की सभी को अनंत शुभसंशाओ सहित आशीर्वाद।                  नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद
Regards,

Piyush Kasliwal
9860668168

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