समाज में प्रभावना के लिए जैन पत्रकारों, कलमकारों व लेखकों,शिक्षाविदों व विद्वानों की कलम आवश्यक रूप से चलनी चाहिए। लेकिन जहां समाज हित की बात आती है तो वहां कुछ कठोर कहने के लिए भी कलम का उपयोग होना बहुत जरूरी है।
कुछ कठोर लिखना या यूं कहें कि सही के लिए अपनी कलम का उपयोग करना आपके हृदय पर थोड़ा सा आघात जरूर कर सकता है। किंतु बात कड़वी हो लेकिन सत्य हो और समाज हित की हो तो कलमकार को अपनी कलम का उपयोग करना ही चाहिए।
वर्तमान में जैन समाज मे बहुत बड़े-बड़े आयोजन बड़ा ही धन खर्च कर एवं वैभव के साथ आयोजित किये जा रहे हैं। जिसमें देश के बड़े-बड़े नेताओं को आमंत्रित किया जाता है जो कि सराहनीय तो हैं ही साथ ही कार्यक्रम के आयोजकों की पहुँच को व्यक्त करता है। किंतु संपूर्ण समय आयोजकों द्वारा उनकी चापलूसी या अपने सम्बन्ध बनाने, सम्मान में ही जाया कर दिया जाता है। लेकिन जैन समाज के हित की बात मंचों से रखने की हिम्मत जुटा नहीं पाते हैं। यहां तक की उन्हें ऐसी उपाधियों से भी नवाजा जाता है जिन उपाधियों की गरिमा के अनुरूप वो दिखाई भी नहीं देते हैं।
*मंथन चिंतन कीजिए* क्यों नहीं समाज हित की बात नेताओं के समक्ष रखी जाती? क्यों नहीं उस मांग को मानने के लिए नेताओं पर दबाव बनाया जाता है? केवल समाज का समय और धन यूं ही व्यर्थ कर दिया जाता है। यह क्रम कब तक चलेगा,जब नेताजी हमारे पास आते हैं तो मौन धारण नही अपितु शालीनता के साथ अपनी मांग आवश्यक रूप से रखनी चाहिए उसका सीधा प्रभाव पड़ता है और मीडिया में भी वह सब जाता है।
हमारे पूजनीय बड़े आचार्यो,संतो,आर्यिकाओं को भी इस बारे में विचार और मंथन करना चाहिए तीर्थो के संरक्षण के साथ-साथ जैन समाज के हितों की बात को रखना हमारा कर्तव्य ही नहीं अधिकार भी है जिसका उपयोग हमें करना ही चाहिए। आइए अपने धर्म और समाज के लिए आज से चिंतन प्रारम्भ करे और अपनी अप्रोच का समाज हित मे उपयोग करें। बात कड़वी है किंतु सत्य है। गलती की हो तो क्षमा के साथ जय जिनेंद्र।
– संजय जैन बड़जात्या,सवांददाता जैन गजट,कामां