पूज्य गुरुवर ने कहा मोक्ष मार्ग बहार कम भीतर ज्यादा है। हमारी दृष्टि बहार की तरफ है जबकि अन्तर्दृष्टि की और जाने की जरूरत है। आगे देख सकते हैं परंतु पीछे नहीं देख सकते ऊपर भी नहीं देख सकते हैं। व्यक्ति यहां बहा सब जगह दृष्टि दौड़ाता रहता है । अपनी आत्मा में लींन होना ही ब्रह्मचर्य है क्योंकि आत्मा को ब्रहम् कहा गया है। फोटो लगाने के लिए या चस्मा लगाने के लिए फ्रेम लगानी पड़ती है। जिनके पास अनंत है हम उसे नमस्कार करते हैं क्योंकि बो उपाधि एक तरह से फ्रेम होती है । चित्रकार जब चित्र बनाता है तो हरेक कोण का बिशेष ध्यान रखता है तब जाकर सूंदर चित्र बनता है। अनंत को देखने का प्रयत्न करो किसी भी चोखट के बिना, आप अपने अंतरंग का चित्र स्वयं बनाओ और अंतरंग में डूब कर बनाओ। जब सफ़ेद कागज पर सफ़ेद रंग से लिखा जाता है उसे समझने में दिक्कत होती है। आत्मा अक्षर रहित होती है जबकि आप अक्षर खोजते हो। चित्रकार कृष्ण के साथ हमेशा सफ़ेद गाय का चित्र बनाता है जबकि कृष्ण को सभी रंग की गाय पसंद थी। गाय सफ़ेद हो या काली दूध सफ़ेद ही देती है। कोण कैंसा ही हो दृष्टिकोण स्पष्ट होना चाइये दृष्टिकोण में बिशालता लाने की आवश्यकता है। दृष्टि फ्रेम या चौखट तक सीमित न रखें केंद्रबिंदु तक ले जाएँ। श्रद्धान कीजिये सम्यक ज्ञान को प्रकट कीजिये आपकी दृष्टि नासा दृस्टि बन सकती है। ब्रह्मचर्य की सुगंधि लेना चाहते हो, उसकी सुंदरता को महसूस करना चाहते हो तो बहिरंग की छाया को देखना बंद करो अंतरंग की तरफ दृष्टिपात करो।
उन्होंने कहा की परमात्मा की सुगंधि फूटती है तो अंतरात्मा तक जाती है और फिर अंतरात्मा ब्रह्म में लीं” होने की और आकृष्ट हो जाती है। आज का विकास चित्र से विचित्र की और जा रहा है इसलिए दिशाहीन है। जब तक गहराई में उतरेंगे नहीं , जब तक ज्ञान में डूबेंगे नहीं और जब तक हीरे को चारों तरफ से अच्छे से देखेंगे नहीं तब तक उसकी सही पहचान नहीं कर पाएंगे। जब दर्शन करते हैं तो परमात्मा की प्रतिमा को दर्पण के प्रतिबिम्ब के माध्यम से अनेक रूप में देखते हैं ऐंसे ही ज्ञान के प्रतिबिम्ब के माध्यम से आत्मा का स्वरुप भी विराट दिखाई देता है। जीवन में जब भार बढ़ता है तो झुकना पड़ता है उसी तरह जब साधना में ब्रह्म का भार बढ़ता है आत्मा भी मोक्ष मार्ग की और नबता जाता है। आत्म तत्व के बारे में जब पूर्ण बोध हो जाता है तो मोक्ष मार्ग की सीढ़ी मिल जाती है।
अपने पर्यायों को जानता है या प्राप्त करता है बह आत्मा है। हम अपनी गिनती भूल कर ज़माने की गिनती में रमे हुए हैं हमारी गिनती भी भव्य आत्माओं में हो ऐंसा पुरुषार्थ करो । श्रद्धा के माध्यम से ही आत्मा के अनन्त स्वरूप को जाना जा सकता है। आत्मा को चैतन्य रूप मानकर ही उसका रूप जाना जा सकता है। आत्म तत्व को जानने के बाद दुनिया के समस्त तत्वों से मोहभंग हो जाता है। दुनिया की सभी पीड़ाएं पुदगल की पर्यायें हैं स्वयं में स्थिर होने का अभ्यास किया जाय तो स्थिरता आ सकती है। मन को ठन्डे बस्ते में रखकर ही मोक्ष मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है तभी सम्यक दर्शन , ज्ञान और चारित्र को प्रकट किया जा सकता है । श्रद्धान और अभ्यास के बल पर ही आत्मतत्व का अनुभव किया जा सकता है। दूध की बिभिन्न पर्यायें हैं परंतु घी की पर्याय से ही प्रकाश फैलता है ऐंसे ही आत्मा के मूल स्वाभाव बाली पर्याय में ही प्रकाश का पुंज होता है, इसलिए उस प्रकाश पुंज तक पहुँचने का प्रयास करो अपने ब्रह्म स्वरुप को प्राप्त करने का प्रयास करो। मन के हारे हार है मन के जीते जीत है इसलिए मन को हरने मत दो।
योगेश जैन ,संवाददाता ,टीकमगढ़ 6261722146