आहिंसा की महत्ता

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दक्षिण कर्नाटक स्थित एक छोटा शहर मुदबिद्री, जहाँ 18 प्राचीन जैन मन्दिर हैं, तथा जहाँ हजारों वर्षों से जैन संस्कृति अक्षुष्ण है, उसे निकट भविष्य में समुचित प्रक्रिया के बाद, विश्व धरोहर घोषित किया जा सकता है। यह शहर जैन धर्मावल्मिबियों के लिये काशी‘‘ के रुप में जाना जाता है। यहां 35 फीट ऊंची अखंड एक पत्थर की भगवान बाहुबलि की मूर्ति है जो निरस्त्रीकरण, वैराग्य, तपस्या, आत्मसंयम, अहिंसा, शांति, सद्भावना, करूणा और भाईचारा का प्रतीक है।

आदि तीर्थंकर रिषभदेव के द्वितीय पुत्र तथा चक्रवर्ती सम्राट भरत के भाई, बाहुबली जी अपने पिता के साम्राज्य के उतराधिकारी हेतु अपने भाई से भीषण युद्ध के उपरान्त भौतिक संसार को नश्वर बताया। अपने भाई को युद्ध में पराजित करने के पश्चात वें अत्यधिक आहत हुये और साधु बनकर 12 वर्षों तक खड़े होकर कठोर साधना की। बेल और लतायें उनके पैरों पर पनप गये। तदुपरान्त उन्हें केवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। वे तीर्थंकर नहीं थे क्योंकि उन्होंने कोई उपदेश नहीं दिया। वे एक सिद्ध पुरूष थे। तथा उन्होंने कैलाश पर्वत पर मोक्ष की प्राप्ति की।

दक्षिण कर्नाटक, के इस क्षेत्र में बाहुबलि की वृहत्काय पाँच मुर्तियंाः श्रवणबेलगोला, करकाला, धर्मस्थल, वेनुर और गोम्मतगिरी में हैं। हाल ही में वेनुर में सम्पन्न महामस्तकाभिषेक जो 12 वर्षों में एक बार सम्पन्न होता है, बाहुबलि भगवान को बारह विभिन्न प्रकार के तरल पदार्थों से अभिषेक किया गया। हेलीकाप्टर से फूलों की पंखुरी की बारीश की गई। महामस्तकाभिषेक का आयोजन 22 फरवरी से 01 मार्च 2024 तक किया गया। प्रथम दिवस के अभिषेक का उद्घाटन तथा समारोह की तैयारी श्री दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र समिति के कार्याध्यक्ष तथा अजिला वंश के वत्र्तमान प्रमुख श्री अरासु पद्मप्रसाद जो एक आयुर्वेदिक डाॅक्टर हैं, उनकी निगरानी में हुआ। वेनुर अजिला साम्राज्य की राजधानी था।

श्रद्धालुओं को भगवान बाहुबली के मस्तकाभिषेक तथा आहुति हेतु एक विशाल तथा ऊंचे चबूतरे का निर्माण एक करोड़ रुपये की लागत से किया गया था। प्रत्येक दिन की पूजा व अभिषेक का प्रायोजक एक परिवार द्वारा किया जाता था। एक दिन के अभिषेक का खर्च लगभग 30 लाख होता था। पेरिनाजे ग्रामवासी जीवंधर कुमार चतुर्थ दिन के अभिषेक का खर्च वहन किया था। जीवंधर कुमार स्थानीय शिव मन्दिर की देखभाल करते हैं। वहां के जैन परिवारों द्वारा भी हिंदू मन्दिरों की देखभाल की जाती है।

महामस्तकाभिषेक के खर्च की व्यवस्था हजारों श्रद्धालुओं के आर्थिक सहयोग से होता है। उसी सहयोग से सड़क,पानी, बिजली तथा अन्य मानवीय संसाधनों की व्यवस्था होती है। सम्पूर्ण देश के विभिन्न भागों से श्रद्धालु यहां आते हैं। सारी व्यवस्था पर्यावरण तथा जीव-जन्तुओं के हितों को ध्यान में रखकर जैन दर्शन के अनुसार अहिंसक और अशोषित तरीके से किया जाता है।

मुदविद्री मठ के महास्वामी चारूकीर्ति स्वामी जी के अनुसार महामस्तकाभिषेक में अन्नदान, अभयदान, आयुषदान और विद्यादान का विशेष ध्यान रखा जाता है। सद्कार्य कर कोई भी इश्वरत्व को प्राप्त कर सकता है। इस महापर्व में पर्यावरण की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता है तथा प्लास्टिक की चीजों के उपयोग प्रतिबंधित होता है। प्लास्टिक के उपयोग के निषेध की शिक्षा प्राथमिक विद्यालय से ही छात्रों को दी जानी चाहिये।

तुमकुर निवासी केसर विक्रेता श्रेयांस कुमार, उनके पुत्र राजेन्द्र तथा परिवार के अन्य सदस्य के अनुसार अभिषेक में उपयुक्त कश्मीरी केसर से आस-पास के क्षेत्रों में शांति का माहौल रहता है।

अन्नदान श्री जगदीश हेगड़े की निगरानी में 60 रसोइयो द्वारा किया जाता था जिसमें २० हजार श्रद्धालुओं को सात्विक नाश्ता, भोजन अलग-अलग परिवारों द्वारा प्रत्येक दिन दिया जाता था। 50 व्यक्तियों की एक समिति थी जिसके देखरेख में स्वास्थ्य, रक्तदान शिविर और मुफ्त चश्मा तथा ह्वील चेयर दिया जाता था।

सन 2028 में करकाला में, 2030 में श्रवणबेलगोला में, 2031 में धर्मस्थल में महामस्तकाभिषेक का आयोजन होगा जिसमें भाग लेने हेतु श्रद्धालुओं को प्रेरित किया जा रहा है तथा जीवन के मूलभूत मूल्यों और आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा दी जा रही है।

– लेखिका -नारायणी गणेश
– प्रस्तुति- स्वराज जैन,टाइम्स आॅफ इण्डिया, नई दिल्ली

98996 14433

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