लोग अधिकतर यह कहते मिलते हैं कि समय बहुत बदल गया . पर समय नहीं बदला समय जैसा का तैसा हैं दिन में चौबीस घंटे होते हैं ,सूर्य पूर्व से निकलता हैं ,मनुष्य हाथ से ही खाना मुंह तक ले जाता हैं और खाता हैं ,स्त्रियां ही बच्चों को जन्मती हैं .समय नहीं बदला ,हमारी सोच बदली हैं .
सब कुछ हमारे देश में, रोटी नहीं तो क्या ?
वादा लपेट लो ,लंगोटी नहीं तो क्या ?
आज समाचार पढ़कर दिल दहल गया “माँ ने जुड़वाँ नवजात को गला घोंटकर मार डाला ”
गरीबी और आर्थिक तंगी से परेशान थी खुद पुलिस को बुलाकर हत्या की बात कबूली .”२८ दिन की बेटी की कातिल माँ को उम्र कैद ” बीमारी और आर्थिक तंगी के कारण गला घोंट दिया था .”माँ की हत्या करने वाले बेटे को आजीवन कारावास “अंकिता काण्ड में वीआईपी के लिए लड़कियों पर दबाव डाला जाता था जिस्म फरोशी के लिए ”
इसके मूल कारण अनेक हो सकते हैं पर अंत सबका दुखद हैं .इसके कारण यदि हम कई पहलुओं से समझे तो अलग अलग होंगे और हैं और यह सिलसिला थमने वाला भी नहीं हैं कारण —–
पहला कारण गरीबी — इस प्रमुख कारणों में से अहम हैं .गरीबी के सम्बन्ध में हमारे धर्म ग्रंथों में यह भी बताया हैं कि पूर्व जन्म में आपने कोई दान नहीं दिया था इस कारण इस जीवन में गरीबी मिली .इसके साथ धन का असंतुलन .जैसे कोई इतना अमीर के उसके पास धन रखने जगह नहीं और एक जिसके पास फूटी कोड़ी नहीं !
इसके लिए शासन बहुत कुछ योजनाए चला रही हैं जो लोककल्याणकारी हैं पर गरीब ,मजदूरी करने वाले बुरी आदतों से ग्रसित हैं जैसे शराब ,नशा करना ,जुआ खेलना .अज्ञानता के कारण कुछ भी नहीं समझना और कोई समझाए तो भी न समझना ..मजदुर अपनी मजदूरी से रूखी सुखी रोटी खा कर जीवन यापन कर सकता हैं पर इन आदतों के कारण हमेशा गरीबी का सामना करता हैं और गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप हैं .
सब कुछ लुटा के बैठी हैं एक लड़की अपने कोठे पर !
मुझे ख्याल आता हैं कितनी ताकत होती हैं एक रोटी में .
गरीबी के कारण कोई भी परेशान हो सकता हैं और हो रहा हैं .
दूसरा कारण बेरोजगारी –बेरोजगारी के कारण ,आर्थिक तंगी होने पर मनुष्य कुछ भी करने को तैयार रहता हैं जैसे चोरी ,डकैती ,लूटजनी ,जैसे कृत्य के साथ अशांत मन होने से घर का वातावरण स्वस्थ्य न होने से लड़ाई झगड़ा का होना सामान्य बात होती हैं .कभी कभी छोटी सी बात बड़ी बन जाती हैं .मानसिक असंतुलन के कारण मनुष्य विवेकहीन हो जाता हैं .
भुखमरी —भुखमरी आज देश में बहुत अधिक हैं .सरकारी आंकड़ों में सिर्फ मन का बहलाना हैं हकीकत में जिसके ऊपर बीत रही हैं वह ही समझता हैं .
आज देश विकासशील बनने जा रहा हैं और प्रगति बहुत कर ली हैं पर इस पर में बहुत कुछ छुपा हैं .आज पैसा प्रधान होने के कारण भी कोई भी कुछ कर रहा हैं ,उसको सब बचाते कारण वह स्वयं वजनदार होता हैं या वजनदार बनाने की ताकत रखता हैं .जैसे गरीबी सब कुछ करा देती हैं वैसे अमीरी भी सब कुछ करा सकती हैं .अमीरों की स्थिति भी कोई सुखद नहीं हैं .
व्यापार में गलाकाट प्रतिस्पर्धा होने से भी तरह तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं और धन की पीछे भी हत्याएं हो रही हैं .
राजनीती और प्रशासन का स्तर इतना घटिया हो चूका हैं की पदोपलब्धि हेतु किसी को भी दलित करने /रौदने को तैयार हैं .आज नेता मर्यादाहीन हो गए हैं और प्रशासन हृदयहीन हैं .सामान्यजनों की कोई सुनवाई नहीं हैं .घटना घटने के बाद यदि कोई कार्यवाही की जाती हैं वह भी किसी की कृपा पर .
वर्तमान काल में कोई भी सुरक्षित नहीं हैं और खास तौर पर महिला वर्ग .और महिलाएं समानता के अवसर के कारण स्वच्छंद होने से अधिक पीड़ित हो रही हैं .
वैसे शासक या नेता का प्रभाव जनता पर पड़ता हैं .नेताओं के क्रियाकलाप मुख में राम बगल में छुरी लिए होते हैं .उनमे घमंड .मायाचारिता ,छल कपट का भरपूर उपयोग करते हैं .आज जो जितना अधिक अपराधी ,दगाबाज़ ,झूठ बोलने वाला ठगने वाला वह समझदार और सफल माना जाता हैं .
ईंति भीति व्यापै नहीँ जग में वृष्टि समय पर हुआ करे .
धर्म निष्ठ होकर राजा भी न्याय प्रजा का किया करे .
शासक दोगले होने से वे बगुला भगत बने बैठे हैं और उनसे न्याय की अपेक्षा करना बेमानी होगी .इसलिए पुराने ग्रंथो ,वेदों पुराणों में सच लिखा हैं कि जब राजा अपनी प्रजा का दोहन /शोषण करने लगेगा .मांएं अपनी संतानों को अपने हाथों से मारने लगेगी ,बेटा -बेटी अपने माँ बाप के हत्यारे होने लगेंगे .बहिने अपने घर में सुरक्षित नहीँ रहेगी ,चोरी चमारी मक्कारी बढ़ने लगेगी और हर कदम पर अविश्वास का बोलबाला रहेगा ,धन प्रधान सामाजिक व्यवस्था रहेगी और मनुजता ख़तम होने लगेगी समझलो हम कलियुग में रह रहे हैं .कलयुग यानी कलपुर्जो के युग आना यानी कलपुर्जों में आत्मीयता नहीँ होती ,बेदर्द होते हैं और उनसे जितना अधिकतम उपयोग किया जा सके करो .
भुखमरी आर्थिक तंगी ,दौलत के पीछे नृशंस हत्याए होने लगे समझलो राजा बेदर्द हो चूका हैं .और उससे उम्मीद करना बेकार हैं .
वैसे संसार में कर्मों के अनुसार सुख दुःख भोगना पड़ता हैं और जिसकी जैसी होना होगी वैसी
होकर रहेगी .इस विषम दौर में हमारा कल्याण बहुत सीमा तक धर्म ,सदाचार ,सदाचरण से होना संभव हैं .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
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