देश में अनाज और सब्जियों की खेती में कीटनाशक रसायनों का जोरशोर से उपयोग करने से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा हो गया है। रासायनिक खाद का उपयोग अधिक पैदावार लेने किया जा रहा है। रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के कृषकों द्वारा खेती में उपयोग करने से आम जनता के जीवन को खतरा पैदा हो गया है।
समस्त कीटनाशक जैविक जहर हैं। विभिन्न प्रकार के जहर अलग अलग तरह से प्रभावी होते हैं। सभी जहर जीव कोशिकाओं में सतत चल रही रासायनिक जीवन प्रक्रिया को बाधित कर देते हैं। ऐसे कीटनाशकों के प्रयोग से रक्त कैंसर, ब्रेन केंसर और साफ्ट टिश्यू सरकोमा नामक कैंसर होने की दर अधिक होती है। मानव शरीर में रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति क्षीण होने से भी कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। विभिन्न प्रकार के रासायनिक जहर होते हैं। मानव शरीर पर इनका कुप्रभाव पड़ता है। इनसे कैंसर भी हो सकता है।
यह साक्ष्य कीटनाशकों के व्यापक प्रयोग पर धीरे धीरे सामने आये है। कीटनाशकों के व्यापक प्रयोग से अमेरिका में पक्षी विलुप्त हो गये। पक्षियों का कलरव बंद हो गया। इसी को आधारित कर “रेेचल कारसन” ने सन 1962 में “साइलेंट स्प्रिंग” पुस्तक लिखी जो क्रांतिकारी सिद्ध हुई। पहलीबार कीटनाशकों के घातक प्रभाव उजागर हुए और मीडिया ने भी इसे प्रमुखता से उठाया। जिसके कारण जनसाधारण भी उद्वेलित हुआ और सरकार जागी। विश्व भर में प्रतिक्रिया हुई।
कृषि विभाग द्वारा हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार देश के विभिन्न क्षेत्रों में फल, सब्जियों, अण्डों और दूध में कीटनाशकों की उपस्थिति के अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि इन सभी में इनकी न्यूनतम स्वीकृत मात्रा से काफी अधिक मात्रा पाई गई है। हाल ही में देश के विभिन्न हिस्सों से एकत्र किये गये खाद्यान्न के नमूनों का अध्ययन देश के 20 प्रतिष्ठित प्रयोगशालाओं में किया गया। अधिकांश नमूनों में डी.डी.टी., लिण्डेन और मोनोक्रोटोफास जैसे खतरनाक और प्रतिबंधित नीटनाशकों के अंश इनकी न्यूनतम स्वीकृत मात्रा से अधिक मात्रा में पाये गये हैं।
इलाहाबाद से लिये गये टमाटर के नमूनों में डी.डी.टी. की मात्रा न्यूनतम से 108 गुनी अधिक पाई गई, यहीं से लिये गये बेंगन भटे के नमूने में प्रतिबंधित कीटनाशक हेप्टाक्लोर की मात्रा न्यूनतम स्वीकृत मात्रा से 10 गुनी अधिक पाई गई है, उल्लेखनीय है हेप्टाक्लोर लीवर और तंत्रिका तंत्र को नष्ट करता है। गोरखपुर से लिये सेव के नमूने में क्लोरडेन नामक कीटनाशक जो कि लीवर, फेफड़ा, किडनी, आँख और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुँचाता है। अहमदाबाद से एकत्र दूध के प्रसिद्ध ब्रांड अमूल में क्लोरपायरीफास नामक कीटनाशक के अंश पाये गये है यह कीटनाशक कैंसरजन्य और संवेदीतंत्र को नुकसान पहुँचाता है।
मुंबई से लिये गये पोल्ट्री उत्पाद के नमूने में घातक इण्डोसल्फान के अंश न्यूनतम स्वीकृत मात्रा से 23 गुनी अधिक मात्रा में मिले हैं। अमृतसर से लिए गए फूलगोभी के नमूने में क्लोरणयरीफास की उपस्थिति दर्ज हुई है। असम के चाय बागान से लिए गए चाय के नमूनों में जहरीले फेनप्रोपथ्रिन के अंश पाए गये, जबकि यह चाय के लिए प्रतिबंधित कीटनाशक है। गेहूं और चावल के नमूनों में ऐल्ड्रिन और क्लोरफेनविनफास नामक किटनाशकों के अंश पाए गए है ये दोनों कीटनाशक कैंसर कारक हैं। इस तरह स्पष्ट है कि कीटनाशकों के जहरीले अणु हमारे वातावरण में कण-कण में व्याप्त हो गये है। अन्न,जल, फल,दूध और भूमिगत जल सबमें कीटनाशकों के जहरीले अणु मिल चुके है और वे धीरे धीरे हमारी मानवता को मौत की ओर ले जा रहे है। ये कीटनाशक हमारे अस्तित्व को खतरा बन गये है। कण-कण में इन कीटनाशकों की व्याप्ति का कारण है आधुनिक कृषि और जीवनशैली। कृषि और बागवानी में इनके अनियोजित और अंधाधुंध प्रयोग से कैंसर, किडनीरोग, अवसाद और एलर्जी जैसे रोगों को बढ़ाया है। साथ ही ये कीटनाशक जैव विविधता को खतरा साबित हो रहे हैं। आधुनिक खेती की राह में हमने फसलों की कीटों से रक्षा के लिये डी.डी.टी.,ऐल्ड्रिन, मेलाथियान एवम् लिण्डेन जैसे खतरनाक कीटनाशकों का उपयोग किया इनसे फसलों के कीट तो मर गये साथ ही पक्षी, तितलियाँ फसल और मिट्टी के रक्षक कई अन्य जीव भी नष्ट हो गए तथा इनके अंश अन्न, जल और हम मनुष्यों में आ गये।राघौगढ़ निवासी कृषि विशेषज्ञ आर. बी. एस. परिहार का कहना है खेती एवं बागवानी में कीटनाशकों के मनमाने उपयोग से मानव शरीर में बढ़ रही गंभीर जानलेवा बीमारियों से बचने जैविक खेती का व्यापक प्रचार प्रसार किया जा रहा है।अनेक परिवारों में जैविक खेती से उत्पादित अनाज एवं सब्जियों का उपयोग किया जा रहा है। इसी प्रकार दूध का उपयोग सावधानी से किया जा रहा है। मगर फिर भी देश की वहुसंख्यक जनता इस ओर से अनभिज्ञ है। इंदौर निवासी सुप्रसिद्ध समाज सेवी स्वयंभू कुमार जैन का कहना है देश के विभिन्न हिस्सों में फल एवं सब्जी उत्पादन में गंदे नालों के दूषित पानी से सिचाई की जाती है। इंदौर महानगर में खान नदी बहती है इस नदी का पानी गंदा एवं दूषित है। फल एवं सब्जी उत्पादन में खान नदी के पानी से अनेक स्थानों पर सिचाई की जा रही है। कीटनाशक विक्रेताओं और कृषि विभाग की जिम्मेदारी बनती है कि वो किसानों को कीटनाशकों के उचित उपयोग के विषय में शिक्षित करें परन्तु प्रशासनिक लापरवाही के चलते न तो कीटनाशक विक्रेता यह कार्य कर रहे हैं और न ही किसान कल्याण विभाग के कर्ताधर्ता। इससे प्रतीत होता है कि आज कीटनाशक बिल्कुल निर्वाध हमारी प्रकृति को मौत की नींद में ले जाने की तैयारी में लीन है। अगर हम मानवता के प्रति तनिक भी जिम्मेदार हैं तो इनसे बचने के उपायों पर मनन करें।
नोट-लेखक राज्यस्तरीय स्थायी मान्य स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय संरक्षक है।