अनंत चतुर्दशी जैन समाज का सबसे बड़ा और पावन पर्व है, यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं बल्कि आत्मशुद्धि, तप, संयम और मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर होने का एक दिव्य अवसर है। जैन धर्म में यह पर्व विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसे छह आवश्यक कार्यों की पूर्णाहुति का दिन माना जाता है। इसी पावन अवसर पर जैन तीर्थ श्री पार्श्व पद्मावती धाम, पलवल में भव्य धार्मिक आयोजन संपन्न हुआ। इस आयोजन की पवित्रता और दिव्यता ने न केवल उपस्थित जनसमूह को अभिभूत किया बल्कि प्रत्येक हृदय को धर्म, संयम और साधना की गहराई का अनुभव कराया।
धाम में सर्वप्रथम भूगर्भ से अवतरित शनि ग्रह अरिष्ट निवारक श्री मुनि सुव्रतनाथ भगवान का पंचामृत अभिषेक एवं शांतिधारा की गई। पंचामृत की धाराओं से भगवान का अभिषेक करते समय वातावरण मंत्रोच्चार और श्रद्धा से परिपूर्ण हो उठा। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो प्रत्येक आत्मा अपने भीतर की मलिनताओं को धोकर शुद्धि की ओर अग्रसर हो रही हो। इसके उपरांत शासन रक्षक प्रकट प्रभावी बाबा क्षेत्रपाल का दिव्य चोला चढ़ाया गया। बाबा क्षेत्रपाल का चोला चढ़ाने का दृश्य श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत भावविभोर करने वाला रहा, मानो स्वयं धर्म की रक्षा का संकल्प प्रत्येक हृदय में पुनः जाग्रत हो उठा हो।
इस अवसर पर विशेष रूप से उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की पूजन आयोजित की गई। ब्रह्मचर्य, जैन धर्म के पाँच महाव्रतों में से एक है और इसे आत्मशुद्धि का सर्वोच्च मार्ग बताया गया है। पूजन के दौरान उपस्थित श्रद्धालुओं ने संयमित जीवन जीने, इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने और अपने विचारों में शुद्धता लाने का संकल्प लिया।
इस मौके पर वक्तव्य देते हुए संयोजक नितिन जैन ने कहा—
“अनंत चतुर्दशी पर्व केवल एक परंपरा नहीं है, यह आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप की ओर ले जाने वाली साधना है। भगवानों ने अनंतकालीन बंधनों को तोड़कर, तप और संयम से मोक्षपद प्राप्त किया और यही संदेश हमें भी इस पर्व पर मिलता है। हमें भी सांसारिक मोह, राग-द्वेष और विकारों से मुक्त होकर आत्मशुद्धि की साधना करनी चाहिए। ब्रह्मचर्य धर्म का महत्व केवल दैहिक संयम तक सीमित नहीं है, यह मन, वचन और कर्म तीनों की पवित्रता है। जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य को अपनाता है, उसका जीवन अनुशासित, संयमित और आत्मबल से परिपूर्ण हो जाता है। ब्रह्मचर्य आत्मा को उच्चतम शुद्धि की ओर ले जाने वाला सेतु है और यही मार्ग मोक्ष और परम शांति की प्राप्ति का द्वार खोलता है।”
उन्होंने आगे कहा—
“आज आवश्यकता है कि हम इस पर्व को केवल उत्सव न मानें, बल्कि इसे जीवन का आदर्श बनाएं। अनंत चतुर्दशी हमें यह संदेश देती है कि आत्मबल, संयम और तप ही वे आधार हैं जिनके सहारे हम किसी भी प्रकार के दुख, भय और क्लेश से मुक्त होकर आत्मानंद प्राप्त कर सकते हैं। जब तक हम ब्रह्मचर्य और संयम के बिना जीवन जीते हैं, तब तक हमारा आत्मबल दुर्बल रहता है। किन्तु यदि हम इन सिद्धांतों को आत्मसात कर लें, तो न केवल व्यक्तिगत जीवन बल्कि सम्पूर्ण समाज का कल्याण सुनिश्चित होता है।”
अनंत चतुर्दशी के इस पावन पर्व के साथ ही दशलक्षण महापर्व का भी सफल समापन हुआ। दशलक्षण पर्व, जो आत्मा के दस धर्मों (क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य) की साधना के लिए मनाया जाता है, अपने चरम बिंदु पर अनंत चतुर्दशी के दिन पहुँचकर प्रत्येक साधक को संयम, तप और मोक्षमार्ग की ओर प्रेरित करता है।
कार्यक्रम का समापन मंगलकामना के साथ हुआ कि प्रत्येक आत्मा संयम, तप और धर्ममार्ग पर चलकर मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर हो और आने वाला हर दिन आत्मोन्नति एवं धर्म-आराधना का संदेश देता रहे।