इंदौर /भारत की पावन वसुंधरा सदियों से मुनियों, संतों और आचार्यों की तपोभूमि रही है, जिन्होंने सत्य, अहिंसा, समता, जियो और जीने दो तथा वसुधैव कुटुम्बकम् जैसे शाश्वत मूल्यों को जनमानस में जागृत किया। इसी महान परंपरा को 21वीं सदी में नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने वाले दूरदृष्टा, श्रंमण संस्कृति के महामहिम धरती के देवता अध्यात्मयोगी एवं चर्या शिरोमणि, श्रमण संस्कृति के महामहिम श्रेष्ठ पट्टाचार्य आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज आज अपने 54वें अवतरण दिवस पर विशेष रूप से श्रद्धावंदित किए गए।
समाधिस्थ गणाचार्य विराग सागर जी महाराज से दीक्षित आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी तन, मन और चर्या से पूर्णतः विशुद्ध, वीतरागी एवं धरती के देवता स्वरूप माने जाते हैं। उनका ज्ञान घट तीनों लोकों के तत्वज्ञान से परिपूर्ण है। उनकी अनुपम चर्या, कठोर तप, त्याग, अनुशासन और आगमयुक्त पीयूषवर्षिणी वाणी से न केवल साधक-श्रावक अपितु विद्वज्जन भी गहन सत्यार्थ का बोध प्राप्त करते हुए नमोस्तु शासन जयवंत हो का गुणगान करते हैं।
आचार्य श्री का वात्सल्यपूर्ण सानिध्य शीतलता और आत्मिक शांति प्रदान करता है। उनके रोम-रोम से जिनेंद्र भगवान की जगत कल्याणी वाणी की अनुगूंज अनुभव होती है, जो श्रमण संस्कृति एवं नमोस्तु शासन जयवंत हो को निरंतर जयवंत बना रही है। आज अवतरण दिवस के शुभ अवसर पर श्रद्धालुओं ने कोटि-कोटि नमन करते हुए कामना व्यक्त की कि आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी की यश कीर्ति चक्रवर्ती ब्याज की गति से निरंतर द्विगुणित होती रहे और उनका पावन सानिध्य व आशीर्वाद दीर्घकाल तक भारत की वसुंधरा और समाज को प्राप्त होता रहे।
— डॉ. जैनेंद्र जैन, राजेश जैन दद्दू












