विद्वान जैनधर्म के सैनिक हैं : गणनी आर्यिका स्वस्ति भूषण माताजी
सोनागिर, दतिया। अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद के तत्वावधान में सिद्धक्षेत्र सोनागिर के आतिथ्य में मुनि श्री पुण्य सागर जी महाराज ससंघ,गणिनी आर्यिका स्वस्ति भूषण माताजी के ससंघ सान्निध्य में सिद्धक्षेत्र सोनागिर में अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि-परिषद का प्रशिक्षण शिविर, अधिवेशन व पुरस्कार अलंकरण, समारोह 29 मई से 4 जून 2023 तक डॉ श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत की अध्यक्षता में उत्साह पूर्वक सम्पन्न हुआ। प्रशिक्षण शिविर में वरिष्ठ विद्वानों द्वारा विविध विषयों का प्रशिक्षण दिया गया। जिसमें तत्त्वार्थ सूत्र- डॉ श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत, मंत्र विन्यान्स एवं मंत्र प्रयोग- ब्र. जयकुमार निशांत टीकमगढ़, वास्तु- राजेन्द्र जैन वास्तुविद इंदौर, ज्योतिष- ब्र. रविन्द्र भैया ने प्रशिक्षण प्रदान किया।
3 और 4 जून को वार्षिक अधिवेशन, कार्यकारिणी बैठक, पुरस्कार अलंकरण एवं स्मृति ग्रंथ लोकार्पण समारोह आयोजित हुआ। आयोजन में आचार्य श्री सौभाग्य सागर जी महाराज, आर्यिका लक्ष्मी भूषण माता जी, क्षुल्लिका पूजा -भक्ति माता जी का भी सान्निध्य प्राप्त हुआ।
अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद द्वारा विद्वान हुए पुरस्कृत : 3 जून को प्रातः बेला के सत्र में अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद द्वारा प्रतिवर्ष प्रदान किए जाने वाले पुरस्कार एवं उपाधि अलंकरण के अंतर्गत श्रीमती हीराबाई जैन स्मृति शास्त्रि-परिषद पुरस्कार ब्रह्मचारी विनोद भैया छतरपुर, श्रेष्ठी जोरावल-रजनी देवी स्मृति शास्त्रि-परिषद पुरस्कार- पंडित हजारी पार्श्वनाथ शास्त्री श्रवणबेलगोला, श्रेष्ठी पवन विद्रोही स्मृति शास्त्रि-परिषद पुरस्कार- पंडित कोमल चंद जैन नसीराबाद, डॉ कपूर चंद्र जैन स्मृति शास्त्रि-परिषद पुरस्कार-डॉ. सोनल शास्त्री दिल्ली , अध्यात्म योगी आचार्य श्री विशुद्ध सागर शास्त्रि-परिषद पुरस्कार-डॉ निर्मल जैन विदिशा, पंडित प्रसन्न कुमार जैन स्मृति शास्त्रि-परिषद पुरस्कार-पंडित मनीष जैन संजू टीकमगढ़ , श्रेष्ठी फूलचन्द्र सेठी स्मृति शास्त्रि-परिषद पुरस्कार-पंडित अरविंद जैन शास्त्री रुड़की, पंडित बाबूलाल जमादार स्मृति शास्त्रि-परिषद पुरस्कार- पंडित अरुण जैन जबलपुर, पंडित मन्नूलाल जैन प्रतिष्ठाचार्य स्मृति ट्रस्ट शास्त्रि-परिषद पुरस्कार- पंडित उदय चंद्र जैन कोटा , आर्यिका सर्वश्रेष्ठ मती माता जी स्मृति शास्त्रि-परिषद पुरस्कार-पंडित मनीष विद्यार्थी शाहगढ़ को समारोह पूर्वक समर्पित किया गया। प्रत्येक विद्वान को 11 हजार रुपये की राशि के साथ शाल, श्रीफल, माला, प्रशस्ति पत्र के साथ सम्मानित किया गया वहीं इन विद्वानों के अतिरिक्त वरिष्ठ विद्वान पंडित देवेंद्र जैन सौरई को प्रतिष्ठाचार्य की उपाधि एवं पंडित संतोष कुमार जैन शाहगढ़ को विधानाचार्य की उपाधि से अलंकृत किया गया। संचालन परिषद के महामंत्री ब्र. जय कुमार निशांत भैया टीकमगढ़ ने किया। संयुक्त मंत्री पंडित विनोद कुमार जैन रजवांस ने परिषद का परिचय प्रस्तुत किया।
दोपहर में डॉ. कपूरचंद जैन खतौली को समर्पित श्रुत सेवी स्मृति ग्रंथ एवं परिषद की पत्रिका बुलेटिन का प्रोफेसर वृषभ प्रसाद जैन लखनऊ स्मृति विशेषांक का विमोचन समारोह पूर्वक किया गया। 3 जून की रात्रि में डॉ श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत की अध्यक्षता में कार्यकारणी बैठक का आयोजन किया गया। 4 जून को परिषद का वार्षिक खुला अधिवेशन किया गया जिसमें अनेक विद्वानों ने अपने सुझाव-विचार रखे।
प्रस्ताव हुए पारित : अधिवेशन में विभिन्न प्रस्ताव परिषद द्वारा पारित किए गए, जिसमें जैन समाज में हाल में आए कुछ धर्मांतरण के मामलों पर गंभीर चिंता व्यक्त की गयी तथा इस ओर संतों, विद्वानों, अभिभावकों को विशेष ध्यान देने की अपील की गई। कोरोना काल में सोनागिर सिद्धक्षेत्र में जिन ट्रेनों का ठहराव बंद कर दिया गया था उनका ठहराव पुनः चालू करने की मांग की गई। विगत वर्ष में दिवंगत विद्वानों एवं समाधिस्थ मुनिराजों, माता जी को श्रद्धांजलि दी गई। साथ ही सिद्धक्षेत्र सोनागिर समिति के प्रति विद्वानों की सुंदर व्यवस्था करने के लिए आभार व्यक्त किया गया।
इस अवसर पर गणिनी आर्यिका स्वस्ति भूषण माता जी ने कहा कि आकांक्षा रहित होकर कार्य करना चाहिए। विद्वान के रोम-रोम से प्रभावना होनी चाहिए। विद्वान को चहुमुंखी ज्ञान होना चाहिए। विद्वान स्थानीय स्तर पर पाठशाला व स्वाध्याय जरूर चलाएं।
विद्वान जैनधर्म के सैनिक हैं। जिसप्रकार सैनिक देश की सेवा करता है वैसे ही विद्वान का हथियार ज्ञान है। जिससे जैन समाज की रक्षा करता है। सभी विद्वान एकमाला में बंधें। हमें क्या मिला है इसे न सोंचें, हमने क्या दिया है, यह सोचें। हमें बोलने के साथ सुनना भी आना चाहिए। शास्त्रि-परिषद निरंतर प्रभावना के कार्यों में संलग्न है, इसी तरह वह अच्छे-अच्छे कार्य करती रहे यही मेरा आशीर्वाद है।
शास्त्र और शास्त्री की महत्वपूर्ण भूमिका : आचार्य सौभाग्यसागर
आचार्य श्री सौभाग्य सागर जी महाराज ने कहा कि जैनागम में शास्त्र और शास्त्री की महत्वपूर्ण भूमिका है। इनकी सही भूमिका हो तो शस्त्र उठने से बच जाते हैं। आज मंच पर दक्षिण, छाणी और अंकलीकर तीनों परंपराओं के साधु , माता जी मंच पर विराजमान हैं।
विद्वान समाज के गौरव हैं : मुनि श्री पुण्य सागर
मुनि श्री पुण्यसागर जी महाराज ने कहा कि विद्वान समाज को जाग्रत करते हैं। जिनागम को सूत्र रूप में विद्वान बोलते हैं। विद्वान समाज के गौरव हैं।
आर्ष परम्परा के अनुयायी विद्वानों की एक जागरुक संस्था : डॉ. श्रेयांस जैन बड़ौत
इस मौके पर शास्त्रि-परिषद के अध्यक्ष डॉ श्रेयांस कुमार जैन जी बड़ौत ने कहा कि अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि-परिषद् दिगम्बर जैन परम्परा में देव-शास्त्र-गुरु, जैनधर्म, दर्शन और संस्कृति के संरक्षण तथा दिगम्बर जैन आर्षमार्गीय साहित्य के प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार में समर्पित आर्ष परम्परा के अनुयायी विद्वानों की एक जागरुक संस्था है, जिसे अद्यावधि अनेक मुनिराजों, माता जी का आशीर्वाद प्राप्त है। उन्होंने अपील की कि विद्वानों को संस्था के लिए समर्पित भाव से कार्य करने के लिए आगे आना चाहिए। शास्त्रि-परिषद के प्रति असीम वात्सल्य, स्नेह के लिए पूज्य गणिनी आर्यिका स्वस्ति भूषण माता जी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।
तीन परंपरा के साधुओं का मिला सान्निध्य :
उल्लेखनीय है कि शास्त्रि-परिषद के अधिवेशन और पुरस्कार अलंकरण समारोह में चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी दक्षिण, आचार्य श्री शांतिसागर जी ‘छाणी’ , आचार्य श्री आदिसागर जी अंकलीकर तीनों आचार्य परंपरा के साधुओं-माता जी का मंगल सान्निध्य प्राप्त हुआ जो अपने आपमें महत्वपूर्ण है।
आयोजन में डॉ शीतलचंद्र जैन प्राचार्य जयपुर, डॉ जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर, पंडित विनोद कुमार जैन रजवांस, डॉ सुरेन्द्र जैन भारती बुरहानपुर, डॉ. ब्र. अमित जैन आकाश वाराणसी, डॉ. नरेंद्र जैन टीकमगढ़, डॉ विमल जैन जयपुर, पंडित राजकुमार जैन शास्त्री सागर, डॉ पंकज जैन भोपाल, डॉ सुनील जैन संचय ललितपुर, डॉ सोनल जैन दिल्ली, पंडित जयंत जैन सीकर, पंडित उदय चंद्र जैन सागर, इंजी. दिनेश भिलाई, डॉ. ऋषभ जैन, पंडित अरुण जैन आदि विद्वानों ने अपने विचार-सुझाव रखे। परिषद के कोषाध्यक्ष पंडित सुखमाल जैन सहारनपुर ने परिषद का आय-व्यय प्रस्तुत किया। भजन सम्राट रूपेश जैन टीकमगढ़ ने आयोजन से संबंधित सुंदर भजन प्रस्तुत किया। आयोजन में पंडित चंद्र प्रकाश जैन चंदर ग्वालियर व पंडित सोमचन्द्र शास्त्री मैनवार का महत्वपूर्ण योगदान रहा। पंडित पवन दीवान सागर की नवीनतम कृति का विमोचन किया गया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में भारत सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य व प्रवीण जैन झांसी आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
इस मौके पर देशभर के विभिन्न अंचलों से 125 विद्वानों की गरिमा पूर्ण उपस्थिति रही। श्री स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी व गोपाल दिगम्बर जैन संस्कृत विद्यालय मुरैना के विद्यार्थी प्रशिक्षण शिविर में सम्मिलित रहे।